राजेन्द्र शर्मा इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के निकट गाँव हदिया। इस गाँव में 989 परिवारों वाले कथक बिरादरी का ख़ानदान, जिसके मुखिया ईश्वरी प्रसाद। यह ख़ानदान खेतीबाड़ी और मंदिरों में गायन नर्तन के सहारे अपनी आजीविका जुटाता। इस ख़ानदान की गायन-नर्तन की एक विशिष्ट शैली में धार्मिक कथा के पात्रों के अनुसार लय और शरीर की भाव भंगिमाओं सम्मिलित …
Month: April 2020
विमल कुमार भारतीय वांग्मय, भाषा और साहित्य के निर्माण में विदेशी विद्वानों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। सर विलियम जोन्स से लेकर मैक्समूलर और जॉर्ज ग्रियर्सन ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन हिंदी साहित्य के जो पाठ्यक्रम बने, उसमें इन तीनों विद्वानों की चर्चा आमतौर पर नहीं है लेकिन जब कोई शोधार्थी …
वीरेंद्र यादव प्रायः ऐसा कम होता है कि कोई कृति तुरंता समय के पार जाकर पाठक को उस टाइम जोन में अवस्थित कर दे जिसमें वह सचमुच जीने को अभिशप्त हो. चंदन पांडे की उपन्यासिका या लंबी कहानी ‘ वैधानिक गल्प’ का पढ़ना कोरोना कैद के पार जाकर उस वास्तविक समय को महसूस करना है, …
हरिशंकर शाही “और तुम्हारी वह ज़बरदस्त चुटिया क्या हुई?” “तुम्हारी दाढ़ी के काम आई गई?” टोपी ने जलकर कहा। हिंदी साहित्य की किताबों में तमाम एक से बढ़कर एक कहानियाँ हैं, उपन्यास हैं, और कथाएँ हैं जो कहीं तो आत्म-कथा हैं तो कहीं आंखों देखी कथा और या किसी ऐतिहासिक काल की कथाएँ हैं। यह …
मनोज मोहन जयशंकर 1989-2019 के तीस बरसों के अंतराल में पत्रिकाओं में लिखे-छपे गद्य को ‘गोधूलि की इबारतें’ में संकलित किया है। इस गद्य पुस्तक में उनके लिखे सृजनात्मक निबंध, संस्मरण, डायरी और टिप्पणियाँ हैं। उनकी भाषा इतनी संवेदनशील और उसका प्रवाह इतना प्रांजल है कि पूरी पुस्तक को एक साँस में पढ़ लिया जा सकता है। लेखक का स्वयं कहना …
प्रेम शशांक ’’एक कलाकृति कुछ बताती या सिखाती नहीं, वह सिर्फ एक चमत्कारिक रहस्योद्घाटन है— जिसमें एक सत्य की तानाशाही नहीं—अनेक विरोधी-अंतर्विरोधी सत्यों का एक ऐसा यथार्थ उद्घाटित होता है, जो हमारे अपने जीवन के खंडित, बहदवास, विश्रंखलित अनुभवों को एक संगति, एक पैटर्न, एक व्यवस्था देता है।’’—निर्मल वर्मा, (शताब्दी के ढलते वर्षो में) किसी …
दया दीक्षित अभी वे यह चौकडि़या कह ही रहे थे कि इतने में ही रेलवे लाइन की तरफ वाले टोले के कुछ लोग उनके पास आकर रुक गए! लंबे लंबे डग भरके आ रहे इन लोगों के शरीर पसीने से भीगे हुए थे! पिछौरा से मुख और गले का पसीना पोंछता व्यक्ति कहने लगा— फगुवारे …
‘अग्निलीक’ नाटककार-कथाकार हृषीकेश सुलभ का पहला उपन्यास है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह उपन्यास इनदिनों काफी चर्चा में हैं। प्रस्तुत है उपन्यास का एक बहुत ही रोचक अंश- हृषीकेश सुलभ रेशमा की कोठरी से निकल कर जब बाज़ार की मुख्य सड़क पर आयी गुल बानो, बाज़ार में सन्नाटा था। बिजली की रोशनी थी, पर लोगबाग …
इरा टाक लेखक, चित्रकार और फिल्मकार हैं। वर्तमान में मुंबई रह कर अपनी रचनात्मक यात्रा में लगी हैं। दो काव्य संग्रह – अनछुआ ख़्वाब, मेरे प्रिय, कहानी संग्रह – रात पहेली, नॉवेल – रिस्क @ इश्क़, मूर्ति, ऑडियो नावेल- गुस्ताख इश्क, लाइफ लेसन बुक्स- लाइफ सूत्र और RxLove366, ये काव्य संग्रह कैनवस पर धूप उनकी …
इश्राकुल इस्लाम माहिर मण्टो ने कहा है कि “ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं अगर आप उससे वाकिफ नहीं तो मेरे अफसाने पढ़िये और अगर आप उन अफसानों को बरदाश्त नहीं कर सकते इसका मतलब है कि ज़माना नाकाबिले–बरदाश्त है।” साहिर लुधियानवी का मशहूर शे’र है– दुनिया ने तज्रिबातो–हवादिस की शक्ल में …
विमल कुमार क्या आप ग्लोरिया स्टायनेम को जानते है? शायद नही जानते होंगे। सेकंड सेक्स की मशहूर लेखिका सिमोन द बुआ की तरह वह भारत के हिंदी जगत में नही जानी जाती है। वह जर्मन ग्रीयर और केट मिलेट की तरह भी शायद जानी जानी होंगी लेकिन पिछले कुछ सालों से हिंदी में स्त्रीवादी लेखन …
शशिभूषण द्विवेदी कई बार कुछ किताबें भविष्यवाणी की तरह होती हैं। स्कॉटलैंड में जन्में और पले-बढ़े पीटर मे का ‘लॉकडाउन’ एक ऐसा ही उपन्यास है जो 2005 में बर्डफ्लू की महामारी के परिप्रेक्ष्य में लिखा गया था। अब कोविड-19 महामारी के दौर में यह नए रूप में नए संदर्भों के साथ सामने आया है। पीटर …
राकेश बिहारी इह शिष्टानुशिष्टानां शिष्टानामपि सर्वथा। वाचामेव प्रसादेन लोकयात्रा प्रवर्तते॥ (इस संसार में शिष्टों अर्थात शब्दशास्त्रियों द्वारा अनुशासित शब्दों एवं उनसे भिन्न अननुशासित शब्दों की सहायता से ही सर्वथा लोक व्यवहार चलता है।) —आचार्य दण्डी उदारीकरण और भूमंडलीकरण के नाम पर नब्बे के दशक में जिन संरचनात्मक समायोजन वाले आर्थिक बदलावों की शुरुआत हुई थी, …
वंदना राग हर चर्च में एक क्वायर होता है.लड़के-लड़कियों का, स्त्रियों और पुरुषों का, जो आस्थावान और बे- आस्था सबको अपने धीमे गायन से आध्यात्मिक दुनिया की ऐसी गलियों में लिए चलता है कि मन भीग जाता है। उपन्यास ‘अँधेरा कोना’ पढ़ते हुए एक ऐसा ही धीमा दुःख मन को जकड़ने लगता है और फिर …