राजेंद्र शर्मा
कल रात में सूचना मिली कि सहारनपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी भाई वसी-उर-रहमान इस फ़ानी दुनिया से रूखसत हो गये हैं और देर शाम उन्हें गोटेशाह क़ब्रिस्तान में खाक-ए- सुपुर्द किया गया। इसे समय की विडम्बना ही कहा जाये कि जिन रंगकर्मी दोस्तों के साथ जीवन भर अभिनय करते रहे, सैट बनाते रहे, मंच पर कील गाड़ते रहे, उनमें से ज़्यादातर का कंधा भी वसी भाई को अंतिम यात्रा में नसीब नहीं हो सका।
एक दौर में सहारनपुर के रंगमंच से जुड़ा रहा हूँ और वसी भाई से एक बेहद करीबी रिश्ता रहा। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
अभी जनवरी में ही सहारनपुर के एक अन्य वरिष्ठ रंगकर्मी भाई शम्स तबरेज इस दुनिया से रूखसत हुए थे। दोनों ने सहारनपुर के रंगमंच के लिये जीवन भर काम किया। एक से एक बेहतरीन नाटक, बेजोड़ अभिनय। आजीविका के लिये वसी भाई आई टी सी कंपनी (इंडियन टौबको कंपनी) के मुलाजिम रहे और साल 2008 में रिटायर हुए थे। वसी भाई का फ़ोटो देखिये कोई कह सकता है कि यह आदमी बहात्तर साल की उम्र का था, क़तई नहीं। अपने आप को हमेशा फ़िट रखने वाले वसी भाई सौ फ़ीसदी रंगकर्मी थे। पंद्रह बरस तक आईटीसी ड्रामेटिक क्लब के डायरेक्टर रहे। नाटकों से उनकी शुरुआत प्रोग्रेसिव थियेटर के जमाने में जनाब मंसूर अली खां सरोहा और सोम प्रकाश नैब के दौर में हुई थी। फिर यूनाइटेड थियेटर से जुड़े और अंतोगत्वा अदाकार ग्रूप से जुड़े और कल आख़िरी साँस तक अदाकार से जुड़े रहे। रंगमंच का इतना लंबा अनुभव कि किसी जमाने में यानि बीती सदी के सातवें दशक में जनाब मंसूर अली खान सरोहा के डायरेक्शन में एक्टिंग किया करते थे तो इस सदी के पहले से अब तक के दशक में मंसूर साहब के साहबजादे जावेद ख़ान सरोहा के डायरेकशन में नाटक करते रहे। यही हाल शम्स तबरेज का था।
सहारनपुर में ऐसे समर्पित रंगकर्मियों की एक पूरी फ़ौज हुआ करती थी, आज के नगर विधायक श्री संजय गर्ग स्वयं एक रंगकर्मी रहे हैं और सहारनपुर में इप्टा की स्थापना संजय भाई ने ही थी। यह फ़ौज दीवानगी से भरी हुआ करती थी। अपनी अपनी नौकरी या धंधा लेकिन शाम को नाटक की रिहर्सल। यही ज़िंदगी का मक़सद। कोई अहम नहीं। जो नाटक का हीरो होता था पता लगा कि वही सामने से साथी कलाकारों के लिये चाय भी ला रहा है। यही था अलमस्त जीवन।
क्या इस पूरी फ़ौज में सब बेवडे थे? या फिर फ़िल्मों में जाना चाहते थे? नहीं. कोई बेवडा नहीं था। जिस शहर का एसडीएम श्री केके सिंहा शतरंज के खिलाड़ी (मैंने भी इस नाटक में अभिनय किया था) जैसा नाटक डायरेक्ट कर रहा हो, जिस शहर में बाल रंगमंच व रंगमंच को बेहतर बनाने के लिये विजेश जोशी जैसा जीवट रंगकर्मी समय से बहुत पहले नौकरी से रिटायरमेंट ले लें, जिस शहर में डा० गिरीश डांग जैसा डाक्टर और जितेंद्र तायल व प्रवेश धवन, राजीव सिंघल, विश्व विजय बहल जैसे लोग अपना व्यापार संबंधी काम पाँच बजे तक निपटा रेगुलर रिहर्सल के लिये पहुँचते हो, उन्हें कोई बेवडे किस आधार पर मान सकता है। गरज यह कि इनमें से सब आश्वस्त कि उन्हें कोई फ़िल्मों-विल्मो में नहीं जाना है और जीवन इसी शहर में गुज़ारना है।
फिर क्या था इन सब का मक़सद? दरअसल यह सब लोग सहारनपुर की गंगा जमुनी तहज़ीब में पले बढे थे और उसी को बचाये रखने के लिये नाटकों के ज़रिये एक महकता हुआ माहौल क़ायम रखने की जद्दोजहद में जुटे थे। यह अलग बात है कि वक्त ने समय-समय पर शहर के चेहरे पर कुछ बदनुमा निशान भी छोड़े है, इस सब के बावजूद सहारनपुर आज भी सहारनपुर ही है। क्यों न हो? मंसूर अली खान सरोहा, अमरीक सिंह प्रेमी, प्रेमनाथ गर्ग सोम प्रकाश नैब जैसे बड़े पत्थर इस शहर की नींव में है, शम्स तबरेज और वसी भाई भी नींव में समा गये है। मुझ सहित जो शेष बचे हैं, उन्हें भी एक दिन इसी शहर के नींव में समाना है। यह दीगर बात है कि जवानी के दिनों में बतौर ईनाम मिले कप व शील्डो को गाहें-बगाहे चमका कर बच्चों को, पौते पोतियों को दिखाते रहते है। थे तो हम सब नींव के पत्थर जिनकी नियति शहर की नींव में ही समीना है, इस भरोसे के साथ कि नींव मज़बूत हो तो इमारत बुलंद होगी ही। आमीन।
राजेन्द्र शर्मा : सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में जन्म. 1984 -1985 में नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, दिनमान के लिए रिपोर्टिग तत्पश्चात उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर विभाग में नौकरी, वर्तमान में वाणिज्य कर अधिकारी खण्ड -09 नोएडा के पद पर कार्यरत। इस बीच कुछ कवितॉए, कुछ लेख, कुछ संस्मरण विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा त्रैमसिक साहित्यिक पत्रिका शीतल वाणी के सहायक सम्पादक । भारतीय शास्त्रीय संगीत में विशेष रूचि व लेखन. राजेंद्र जी से इस ईमेल पते पर संपर्क किया जा सकता है— pratibimb22@gmail.com
Comments
बहुत बढ़िया . शानदार . बधाई आपको . हर संभव सहयोग के लिये तैयार हू
Good
Good
राजेंद्र शर्मा जी नें बेहतरीन लिखा है। वसी जी को सादर नमन।
Bबहुत अच्छा लिखा है ऐसे व्यक्तित्व को सलाम । हस्ताक्षर समूह श्रद्धांजलि अर्पित करता है । ऐसे व्यक्ती पूरे समाज और देश की क्षति होते है ।
सुरेश हंस
हस्ताक्षर
वसी भाई बहुत बेहतरीन इंसान रहे हैं वह एक मंजे हुए कलाकार और सादा जीवन जीने वाले बेहतरीन रंगकर्मी थे। उनका जाना सहारनपुर के रंगमंच और उस पीढ़ी के लिए नुकसान है जो रंगमंच में अपने बुजुर्गों से कुछ सीखना चाहती है । भाई राजेंद्र शर्मा जी ने कम शब्दों में वही भाई के साथ ही शम्स तबरेज का भी स्मरण किया है । इन दोनों रंगकर्मियों को विनम्र श्रद्धांजलि। भाई राजेंद्र ने और बहुत सारी पुरानी यादें भी ताज़ा की है । इस अच्छे लेखन के लिए उन्हें बधाई और शुभकामनाएं- डा. वीरेन्द्र आज़म