संजीव श्रीवास्तव
सिनेमा में साहित्य से सीधा सरोकार रखने वाले लेखकों, कवियों की संख्या कभी कम नहीं रही। शैलेन्द्र ऐसे ही कवि, गीतकार थे जिनकी शख्सियत को आम सिनेमा प्रेमियों से लेकर सरोकारी साहित्यकारों के बीच भी प्रतिष्ठा हासिल थी। संभवत: शैलेन्द्र अकेले ऐसे गीतकार हुए जिनकी लेखनी पर नामधन्य साहित्यकारों ने भी काफी लिखा है।
हिन्दी साहित्य के ख्यातलब्ध आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा ने कहा था-जिस साहित्य से जनता जागृत हो, वह साहित्य श्रेष्ठ है। साहित्य और सिनेमा प्रेमी, विद्वान लेखक शैलेन्द्र सम्मान के संस्थापक डॉ. इंद्रजीत सिंह ने इन्हीं शब्दों के आलोक में शैलेन्द्र पर अब तक दो किताबें लिखी हैं। डॉ. इंद्रजीत सिंह मानते हैं हिन्दी कथा साहित्य में जो स्थान प्रेमचंद का है, संस्कृत साहित्य में जो स्थान कालिदास का है, फिल्म गीत लेखन में वैसा ही स्थान शैलेन्द्र का है। चूंकि शैलेन्द्र के गीतों में सहजता और सौन्दर्य ही नहीं बल्कि विकासवादी समाज के अनुकूल गतिशीलता भी है। शैलेन्द्र जब पान खाये सइयां हमार…लिखते हैं तो तू जिंदा है तो जिंदगी के नाम पर यकीन कर…भी लिखते हैं। यही आशावादी संघर्ष उनके गीतों का प्राणतत्व है। इसीलिए डॉ. इंद्रजीत सिंह ने इन किताबों को तैयार करते हुए शैलन्द्र को इश्क, इंक़लाब और इंसानियत का कवि-गीतकार माना है।
डॉ. इंद्रजीत सिंह जनकवि शैलेन्द्र के संपादक हैं, उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की है, तीन साल मास्को में रह चुके हैं और वो पिछले कुछ साल से शैलेन्द्र सम्मान का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने लंबे प्रयास और अथक मेहनत के बाद करीब साढ़े तीन सौ पृष्ठों का पहला खंड तैयार किया जिसमें रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, त्रिलोचन, फणिश्वरनाथ रेणु, भीष्म साहनी, कमलेश्वर, राजेंद्र अवस्थी, असरगर वजाहत, मैनेजर पांडेय, नरेश सक्सेना, लीलाधर जगूड़ी, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, आचार्य विष्णुदत्त राकेश, प्रह्लाद अग्रवाल, अजय तिवारी, शरद दत्त, भारत यायावर, राज कपूर, मन्ना डे, बासु चटर्जी, गोपाल दास नीरज, गुलजार, गुलशन बावरा, हसरत जयपुरी, निदा फाजली, योगेश, इरशाद कामिल आदि अट्ठावन कवियों, गीतकारों, लेखकों, आलोचकों, कहानीकारों के लेख, संस्मरण शामिल किये हैं। इनको पढ़ते हुए शैलेन्द्र को समग्र जीवन और साहित्य को बखूबी समझा जा सकता है। पुस्तक में खुद की नजर में शैलेन्द्र में उनका यह कथन आज के गीतकारों के लिए काफी अहम है—
“फिल्म गीत लिखना बहुत आसान समझा जाता है। सीधे सादे शब्द, घिसी-पिटी तुकें, कहा जाता है कि फिल्म गीत और है क्या? मेरा अनुभव कुछ और है। फिल्म-गीत-रचना मेरी समझ से एक विशेष कला है, चूंकि हमारी फिल्में शत प्रतिशत गीत प्रधान होती हैं, गीत उनमें होते ही हैं, इसलिए गीत जैसे पात्रों के संवाद का काम करते हैं, अन्यथा गीत कहानी को रोकेगा और ठूंसा हुआ मालूम होगा। इसलिए भावना और शब्दों का चुनाव कहानी के अनुसार बड़ी से सावधानी से करना होता है।”
सिनेमा की दुनिया में साहित्यकार आमतौर पर सफल नहीं होते-ऐसा माना जाता है। दरअसल सिनेमा की दुनिया में जो रचनाकार अपनी आत्मा की आवाज़ और वाजिब जरूरत के बीच तालमेल बैठा लेता है वही रचनात्मकता को इश्क, इंक़लाब और इंसानियत दे पाता है। शैलेन्द्र ने भी गीतकार के तौर पर अपनी पहचान स्थापित की। वास्तव में शैलेन्द्र में वह प्रतिभा थी कि उन्होंने बदलते समय के मिजाज और सिनेमा की मांग को अपनी रचनात्मकता पर कभी हावी नहीं होने दिया और हर परीक्षा की घड़ी में सफलता हासिल की। उनका यह कथन सिनेमा की दुनिया में असफल साहित्यकारों के लिए प्रगतिशील सोच को जाहिर करता है
“गीत पहले लिखा जाए या धुन पर गीत लिखा जाए, इस सवाल को लेकर काफी कुछ लिखा गया है। बहुत-से लोगों का मत है कि धुन पर लिखा गीत बढ़िया नहीं होता, मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा ख्याल है कि यदि गीतकार को संगीत की थोड़ी बहुत समझ है तो वह धुन पर अच्छा गीत लिखेगा-नये नये छंद उसे मिलेंगे और दूसरी ओर यदि संगीतकार को काव्य की थोड़ी बहुत समझ है तो वह लिखे हुए गीत पर बढ़िया धुन बनाएगा, शब्दों और भावनाओं को फूल की तरह खिलाता हुआ।”
आने वाली पीढ़ी जब कवि, गीतकार शैलेन्द्र की रचनाओं से रू-ब-रू होंगी तो उनके मन में शैलेन्द्र को जानने का कौतूहल भी कम नहीं होगा। एक ऐसे गीतकार जिनके गीतों में जिंदगी के सारे मर्म सिमटे हुये हैं, समाज का हर रंग पटा पड़ा है। बलिदान, संघर्ष, जिजीविषा, उत्साह, प्रेम और सौंदर्य कौन से तत्व नहीं हैं शैलेन्द्र के गीतों में! और हर तत्व का तार्किक आधार और उसका सरल प्रवाह। होठों पर सचाई, दिल में सफाई-शैलेन्द्र के गीतों में यही ईमानदारी और सौम्यता उसकी विशिष्ठता रही है। जाहिर है आने वाली पीढ़ी जब ऐसे महान् गीतकार के गीतों को सुनेगी तो कवि को विस्तार और समग्रता से भी जानना चाहेगी।
शैलेन्द्र साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. इंद्रजीत सिंह द्वारा संपादित शैलेंद्र पर दूसरे खंड में “तू प्यार का सागर है” में सिनेमा और साहित्य से जुड़े चौंतीस रचनाकारों के लेख प्रकाशित किये गये हैं। इनमें कुछ के नाम हैं—विश्वनाथ त्रिपाठी, ऋतुराज, मुकेश, विट्ठल भाई पटेल, बाबू राम “इशारा”, लाल बहादुर वर्मा, मनमोहन चड्ढ़ा, प्रसून जोशी, स्वानंद किरकिरे, कमलेश पांडेय, लीलाधर मंडलोई, रमेश चौबे, यतीन्द्र मिश्र और डॉ. पुनीत बिसारिया आदि।
डॉ. इंद्रजीत सिंह लिखते हैं-“शैलेन्द्र प्रगतिशील चेतना के अप्रतिम ऊर्जावान कवि-गीतकार हैं। उन्होंने मनुष्यता से लबरेज मानीखेज, उदात्त जीवन मूल्यों से भरपूर गीत रचकर साहित्यिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। ‘जख्मों से भरा सीना है मेरा हंसती है मगर ये मस्त नजर’ गीत के माध्यम से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जिजीविषा, आत्मविश्वास और आत्म सम्मान का मंत्र देकर लोगों को जीतने का हौसला व हुनर देते हैं। शैलेन्द्र की कविताएं कोरी कल्पना की उड़ान न होकर जीवनानुभव से रची-बसी अपने समय और समाज का जीवंत दस्तावेज है।”
इस किताब में साहित्य के साथ-साथ सिनेमा की दुनिया से जुड़े कलाकारों व लेखकों की निराली बातें लिखी हुई हैं। शैलेन्द्र के तमाम गीतों को अपनी आवाज देने वाले गायक मुकेश के शब्द हैं—“मैं उन्हें उस दिन से जानता हूं जब वे फिल्मों में आए थे। उनका व्यक्तित्व कुछ निराला ही था। वे बैठते भी अपने ही तरीके से थे, सिरगेट पीने की अदा भी उनकी अपनी ही थी, हंसने मुस्कराने में भी शैलेन्द्र, शैलेन्द्र ही थे।” शैलेन्द्र के बारे में यह बहुत ही प्रामाणिक संस्मरण है। आगे मुकेश तीसरी कसम को याद करते हैं तो कहते हैं-“फिल्म बनाने का काम उनके लिए बहुत ही कठिन था…।”
विट्ठल भाई पटेल तो कहते हैं कि शैलेन्द्र के गीतों में राष्ट्रीयता, भारतीयता के साथ-साथ तुलसी, सूर और मीरा की मार्मिकता और ज्ञान भी है। किताब में शामिल बाबू राम “इशारा” का संस्मरण तीसरी कसम की पार्श्व कथा का जीवंत दस्तावेज है। उनके सामने तीसरी कसम फिल्म का निर्माण हुआ था।
पटकथा लेखक कमलेश पांडेय कहते हैं—“शैलेन्द्र शायद वो पहले गीतकार थे, शायर तो बहुत हुए हैं…साहिर, शकील, मजरूह, कैफी साहब। मगर खुद साहिर ने, जब उन्हें शैलेंन्द्र के फिल्म बंदिनी के गीत ‘मत रो माता तेरे बहुतेरे’ के मुकाबले उनके फिल्म ताजमहल के गीत ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’ के लिए फिल्मफेयर दिया गया तो कहा था—इस इंडस्ट्री में अगर कोई लिरिसिस्ट है तो शैलेन्द्र है, हमलोग तो शायर हैं।”
वहीं यतीन्द्र मिश्र लिखते हैं—“शैलेन्द्र के गीतों में विविधता और व्यापकता की रेंज बहुत बड़ी है। एक तरफ प्रणय के स्नेहिल गीत रचकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हैं, दूसरी ओर इंकलाब की आवाज़ को बुलंद करके प्रगतिशील चेतना के प्रखर कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। सदाबहार साहित्यिक गीतों के रचयिता शैलेन्द्र का महत्व काल प्रवाह के साथ बढ़ता ही जाएगा।“
मशहूर गीतकार प्रसून जोशी के शब्दों में—“मेरे जैसे नए गीतकार के लिए शैलेन्द्र जी एक आदर्श हैं। शैलेन्द्र जी ने फिल्म गीतों में साहित्य दिया है, सामाजिक सरोकार को प्रधानता दी है। वंचितों-शोषितों की वाणी को मुखरित करने में अहम योगदान दिया है। उन्होंने प्रकृति और प्रेम के अदभुत गीत लिखे हैं।” और वहीं साहित्य, सिनेमा समीक्षक डॉ.पुनीत बिसारिया अपने लेख में शैलेन्द्र के समग्र गीतों की विस्तार से प्रवृतिगत व्याख्या करते हुए लिखते हैं-“शैलेन्द्र बहुआयामी प्रतिभा के धनी कवि-गीतकार थे जिन्होंने मात्र 43 वर्ष की अल्पायु में ही अपने गीतों, कविताओं से दुनिया को चमत्कृत कर दिया। उनके गीतों में जीवन के प्राय: सभी पक्ष आकर एकाकार हो जाते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि एक साहित्य सृष्टा के रूप में उनका अभी तक निष्पक्ष मूल्यांकन नहीं किया गयाहै।”
शैलेन्द्र पर ऐसे बहुमूल्य विचारों और संस्मरणों के अलावा उनकी रचनाओं की साहित्यिक विवेचनाएं भी पढ़ने को मिलेंगीं। इस श्रेणी में विश्वनाथ त्रिपाठी, ऋतुराज, लीलाधर मंडलोई, लाल बहादुर वर्मा, ब्रज भूषण तिवारी आदि के लेख भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मैंने शुरुआत में ही कहा कि आने वाली पीढ़ी के दिल में शैलेन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जब गहन अध्ययन करने की तड़प तेज होगी तो इसके लिए डॉ. इंद्रजीत सिंह का ये एतिहासिक कार्य धरोहर से कम साबित नहीं होगा। उन्होंने शैलेन्द्र को सिनेमा के कवि के तौर पर मूल्यांकन करने का प्रयास किया है। आज जिन विश्वविद्यालयों में सिनेमा पर अनुसंधान होते हैं वहां के अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए भी ये दोनों पुस्तकें ज्ञान का खजाना हैं।
तू प्यार का सागर है व धरती कहे पुकार के : इंद्रजीत सिंह [शैलेंद्र के गीत] मू. 200, वीके ग्लोबल पब्लिकेशन्स प्रा.लि., फ़रीदाबाद। आप इसे यहाँ मेल करके email–mail@vkpublications.com करके भी मँगवा सकते हैं.

संजीव श्रीवास्तव : कथाकार, कवि तथा फिल्म विश्लेषक. पेशे से टीवी पत्रकार. फिल्म पर किताब ‘समय, सिनेमा और इतिहास’ प्रकाशित. एक उपन्यास ‘मुंबई पज्जल’ प्रकाशित. दिल्ली में निवास. संप्रति-‘पिक्चर प्लस’ के संपादक. आप इनसे इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं– pictureplus2016@gmail.com