सामाजिक सरोकारों की कहानियों का अनूठा संग्रह

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दीपक गिरकर

प्रवास में आसपाससुपरिचित प्रवासी कथाकार डॉ. हंसा दीप का दूसरा कहानी संग्रह है। डॉ. हंसा दीप टोरंटो में कई वर्षों से रह रही हैं। वे अमेरिकी-कनाडा संस्कृति से अच्छी तरह से परिचित होने के बावजूद अपनी भारतीय संस्कृति तथा भारतीय रीति-रिवाजों को नहीं भूली हैं। भारत के मेघनगर (जिला झाबुआ, मध्यप्रदेश) में जन्मीं डॉक्टर हंसा दीप भारत में भोपाल विश्वविद्यालय और विक्रम विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक, न्यूयार्क, अमेरिका की कुछ संस्थाओं में हिंदी शिक्षण, यॉर्क विश्वविद्यालय टोरंटो में हिंदी कोर्स डायरेक्टर का कार्य करने के पश्चात वर्तमान में यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत है। हंसा जी के लेखन का सफ़र बहुत लंबा है। इनकी रचनाएं निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। हंसा जी की प्रमुख रचनाओं में बंद मुट्ठी, कुबेर (उपन्यास), चश्मे अपनेअपने (कहानी संग्रह), बारह चर्चित कहानियाँ (साझा संग्रह), बंद मुट्ठी उपन्यास गुजराती भाषा में और कुछ कहानियाँ मराठी में अनुदित, कैनेडियन विश्वविद्यालयों में हिन्दी छात्रों के लिए अंग्रेज़ी-हिन्दी में पाठ्य-पुस्तकों के कई संस्करण शामिल हैं। हंसा जी की कहानियों में आधुनिकता का बोध है। विषयवस्तु और विचारों में नयापन है।

इस कहानी संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से सुप्रसिद्ध कथाकार व कथाबिंब की सम्पादिका मंजुश्री ने लिखी है। मंजुश्री ने भूमिका में लिखा है “अलग-अलग विषयों को लेकर लिखी गयीं संग्रह की पंद्रह कहानियों में सामाजिक सरोकारों का दायरा काफी विस्तृत हुआ है। उनके पात्र आसपास की रोजमर्रा की जिंदगी से संबंध रखते हैं और कथानक का ताना-बाना बुनते समय उसे स्वयं जीते हैं। वे निरे अपने लगते हैं और कहानी पढ़ते समय पाठक उनमें अपने आप को देखने लगता है।”

लेखिका अपने आसपास के परिवेश से चरित्र खोजती हैं। वे आम जीवन से अपने पात्र उठाती हैं। कहानियों के प्रत्येक पात्र की अपनी चारित्रिक विशेषता है, अपना परिवेश है जिसे लेखिका ने सफलतापूर्वक निरूपित किया है। डॉ. हंसा दीप एक ऐसी कथाकार है जो मानवीय स्थितियों और सम्बन्धों को यथार्थ की कलम से उकेरती है और वे भावनाओं को गढ़ना जानती हैं। लेखिका के पास गहरी मनोवैज्ञानिक पकड़ है। इस कहानी संग्रह में छोटी-बड़ी 15 कहानियां हैं। ये जीवन के 15 रंग हैं। हंसा जी की कहानियों में यथार्थवादी जीवन का सटीक चित्रण है। इस कहानी संग्रह की कहानियों में महिलाओं का स्वतंत्र अस्तित्व, अकेलेपन से उबरते वृद्ध, पारिवारिक रिश्तों के बीच का ताना-बाना, रिश्तेदारों की संवेदनहीनता, पारिवारिक रिश्तों का विद्रूप चेहरा, मालिक को चूसने की नायाब तरकीब, बाल मनोविज्ञान, समयानुसार बदलते सामाजिक रंग, माँ की कोमल भावनाओं, पूजा-पाठ का व्यावसायीकरण आदि का चित्रण मिलता है। इस संकलन की कुछ कहानियों हरा पत्ता पीला पत्ता, वह सुबह कुछ और थी, उसकी औकात, रूतबा, बड़ों की दुनिया में,  मुझसे कहकर जाते, अंततोगत्वा, भिड़ंत, एक खेल अटकलों का, मधुमखी रोपित होता पल में विदेशी झलक दिखती हैं, लेकिन इस पुस्तक की सभी कहानियाँ देसी महक से सरोबार हैं। लेखिका ने अपने आत्मकथ्य में लिखा है “घर छोड़ देने से घर तो बदल जाता है लेकिन दिल तो बस दिल है, वह कहाँ बदल पाता है! कहाँ समझता है वासी और प्रवासी का अंतर! पौहे और जलेबी से हुई सुबह की शुरुआत असली मायने में जो तृप्ति दे जाती है वह किसी कॉन्टीनेंटल ब्रेकफास्ट का मुकाबला नहीं कर पाती। पास्ता बनाकर भी देसी तड़का न दें तो फिर हमें खाने का मज़ा ही न आए।”

संग्रह की पहली रचना हरा पत्ता पीला पत्ता मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करती एक मर्मस्पर्शी, भावुक कहानी है। हर व्यक्ति को वृद्धावस्था से गुजरना होता है। डॉ. मिलर भी अपनी बढती उम्र को रोक नहीं पाए और हर रात वे सोते समय विचार करते थे कि शायद आज की रात आखिरी रात हो। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन एक साल का बच्चा उनके संपर्क में आता है तो डॉ. मिलर की जिंदगी बदल जाती है। डॉ. मिलर की जिंदगी में बहार आ जाती है। दोनों एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं। छोटे बच्चे के संपर्क में आने से डॉ. मिलर अकेलेपन से उबर जाते हैं और उनकी उम्र बढ़ जाती है। एक मर्द एक औरत पारिवारिक रिश्तों के बीच के ताने-बाने को चित्रित करती भावुक कहानी है जो समाज को सीधे-सीधे आईना दिखाती है। थोड़ी सी पारिवारिक समझ से घर किस प्रकार खुशियों से भर जाता है, इसे लेखिका ने बड़ी संजीदगी से प्रस्तुत किया है। कहानी को लेखिका ने काफी संवेदनात्मक सघनता के साथ प्रस्तुत किया है।

वह सुबह कुछ और थी संस्मरणात्मक शैली में लिखी एक खुशनुमा दिन की रोचक दास्ताँ प्रस्तुत करती है। लेखिका ने एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है कहानी उसकी औकात में। समाज में या किसी संस्था में जब निचले पायदान पर खड़ा व्यक्ति आगे बढ़ने या अपना अस्तित्व बनाने की कोशिश करता है तो समाज या संस्था के ठेकेदारों को अपनी स्थापित प्रतिष्ठा डगमगाती दिखाई देने लगती है और फिर वे ठेकेदार उसे नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं। उसकी औकात कहानी में कथाकार ने इसी संघर्ष को बहुत प्रभावी रूप से उजागर किया है। यह कहानी मिस हैली की सच्चाई, ईमानदारी और उसके खरेपन को दर्शाती है। रूतबा कहानी बच्चों के  बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। रूतबा कहानी में अपने पापा की मनोवृत्ति से बालक इशु के मन में बॉस बनने के बीज अंकुरित होने का वर्णन है। मुझसे कहकर जाते में एक माँ की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इस कहानी का हर किरदार अपनी विशेषता लिए हुए है और अपनी उसी खासियत के साथ सामने आता है। इस कहानी में लेखिका ने माँ की ममता को अत्यन्त आत्मीयता एवं कलात्मक ढंग से चित्रित किया है। महिला सशक्तिकरण और नारी चेतना जागृत करने के आंदोलन पर बहुत ही स्वाभाविक रूप से सवाल खड़े करती है।

इस संकलन की एक दिलचस्प और रोचक कहानी अपने मोर्चे पर अपनी माँ को कैंसर की बीमारी का पता चलने पर मुश्किल हालातों से गुजरती, तथाकथित उसूलों से सामना करती एक नवयुवती डॉक्टर स्वाति के संघर्ष की बेहद सच्ची, भावुक और मर्मस्पर्शी कहानी है भिड़ंत। कथाकार ने इस कहानी का गठन बहुत ही बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया है। भिड़ंत कहानी की नायिका डॉ. स्वाति त्याग और संयम की मूर्ति है। वह अपने पारिवारिक दायित्वों को बखूबी निर्वहन करती है और सामाजिक परंपरा, नियमों की पाखंडी तस्वीर को तोड़ती है। अपनों के बीच सभी चुनौतियों का सामना करते हुए साहसी नारी के रूप में डॉ. स्वाति का चरित्र हमारे सामने प्रखर हो उठता है। इस कथा में डॉ. स्वाति का किरदार प्रभावशाली है। रिश्तेदारों की संवेदनहीनता और माँ-बेटी के संघर्ष पर लिखी गई सशक्त कहानी है जिसमें कथ्य का निर्वाह कुशलतापूर्वक किया गया है। ऊँचाइयाँ कहानी में डॉ. आशी अस्थाना के जवान होते बेटे अलंकार की व्यथा को कहानीकार ने मार्मिक ढंग से कलमबद्ध किया है। इस कथा में कथाकार ने कहानी की नायिका डॉक्टर आशी अस्थाना की व्यस्त एवं आत्मकेंद्रित जिंदगी का सजीव चित्रण किया है और उसे आधुनिक विचार वाली, स्वतंत्र नारी के रूप में प्रस्तुत किया है।  निर्मम फैसले से गुजरते हुई यह रचना बहस को जन्म देती है।

एक मर्द एक औरत, अपने मोर्चे पर, भिड़ंत, ऊँचाइयाँ जैसी कहानियाँ स्त्री विमर्श के फलक को आवश्यक विस्तार देती हैं। अपने मोर्चे पर और ऊँचाइयाँ कहानियाँ स्त्री केंद्रित दुनिया के इर्द गिर्द घूमती हैं जिसमें पुरुषों की उपस्थिति एक शोषित के रूप में है। मधुमक्खी कहानी एक बिलकुल अलग कथ्य और मिजाज की कहानी है जो पाठकों को काफी प्रभावित करती है। बेबी सीटर हेजल अपनी मालकिन सोमी की चापलूसी करके अपना मतलब साधती और मतलब निकलने के बाद किस प्रकार डंक मारती है, स्तब्ध कर देने वाले शातिर खेल  के वृत्तान्त को कथाकार ने सूक्ष्मता से रेखांकित किया है। व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए किस तरह किसी की भावनाओं से खेल सकता है, इसकी प्रभावी अभिव्यक्ति है कहानी मधुमक्खी। लेखिका ने बहुत गहराई से पूर्ण शोध करने के बाद इस कहानी का ताना-बाना बुना है। एक खेल अटकलों का इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी का कैनवास बेहतरीन है, जिसे पढ़ते हुए आप के मन में भी बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड पश्तो की तरह जिज्ञासा बनी रहती हैं कि आखिर मीशा काम क्या करती है? मीशा प्रतिदिन सुबह समय पर अपने घर से निकल जाती है और शाम को समय पर घर लौट आती है। जब पाठक को मालूम पड़ता है कि मीशा एक रिटायर्ड महिला है और उसके चार बच्चे है। वह चार बच्चों के बावजूद भी अकेले रहने को मजबूर है। रिटायरमेंट के बाद उसे अकेलापन महसूस न हो इसलिए वह प्रतिदिन सुबह अपने हमेशा के समय पर घर से बाहर निकल जाती है और बाजार में इधर-उधर समय व्यतीत करके शाम को वापस घर आती है। वह एकाकीपन के जीवन से मुक्त होकर स्वयं को बहलाने का प्रयास करती है। आज के दौर में मानवीय सम्बन्धों का अवमूल्यन हुआ है। प्रस्तुत कहानी वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को रेखांकित करती है।

फालतू कोना कहानी के केन्द्र में सुहास है। इस कहानी में पत्थर होते जाते परिवार के सदस्यों का हृदयस्पर्शी चित्र हैं। यह एक जिम्मेदार पति और स्नेहिल पिता सुहास की मार्मिक कथा है जिसमें सुहास का पत्ता धीरे-धीरे कटता जाता है और वह अपने ही परिवार के सदस्यों से दूर होता चला जाता है। सारी अच्छाइयों की पोटली बुराइयों के गट्ठर में बदल जाती है। सुहास एक शराबी बन चुका था और दिन रात गालियाँ बकता रहता था। ज्यादा शराब पीने से उस पर बीमारियाँ हावी हो गई। घर में वह एक कोने में पड़ा रहता था। अब जबकि वह मर चुका है और उसका दाह संस्कार भी हो चुका है। इस कहानी की अंतिम पंक्ति काफी प्रभावी है। घर वालों के लिए घर के फालतू कोने के दिन पूरे हो गए थे। आज की नारी व्यावहारिक धरातल पर सोचने लगी है। अब वह पति को परमेश्वर मानकर हर समय उसकी पूजा नहीं करती है बल्कि शराबी पति, जो ढेर सारी बीमारियों से ग्रसित है, की मृत्यु का इंतज़ार करती है। यह बदलते समय की आहट है।

अंततोगत्वा कहानी में मंदिर के पंडितों के ढोंग, पूजा-पाठ का व्यवसायीकरण, खोखलेपन और भक्तों के दिखावटीपन को दर्शाया है। धर्म के नाम पर बाह्य आडम्बरों को लेखिका ने दर्शाया है। इस कथा में मंदिर में आए भक्तों के आपसी संवादों के माध्यम से तथा उनके विचारों पर कथाकार ने उम्दा व्यंग्य किया है। उसकी औकात, भिड़ंत, ऊँचाइयाँ, अंततोगत्वा जैसी कहानियों में लेखिका जीवन की विसंगतियों और जीवन के कच्चे चिठ्ठों को उद्घाटित करने में सफल हुई है। करुणा, मानवीय चेतना, परोपकार के वैचारिक अंतर्द्वंद्व के भंवर में डूबती-उतरती एक शिक्षिका के पश्चाताप की कहानी है रोपित होता पल पेरेंट्स का बच्चों पर डॉक्टर, प्रोफेसर या बड़ा सफल व्यवसायी बनने का दबाव इतना अधिक है कि बड़ों की दुनिया में कथा की नायिका आठ साल की परी सोचती है कि वह छोटी ही ठीक है, उसे बड़ी नहीं होना है। इस कहानी में समाज की मानसिकता के स्पष्ट दर्शन है। कथाकार ने जीवन के यथार्थ का सहज और सजीव चित्रण अपने कथा साहित्य में किया है। इस संग्रह की कहानियों के शीर्षक कथानक के अनुसार है और शीर्षक कलात्मक भी है।

डॉ. हंसा दीप एक ऐसी कथाकार है जो सामाजिक परिवर्तन को सबसे अहम समझती हैं। वस्तु चयन में लेखिका ने सामाजिक यथार्थ पर अपनी दृष्टि केन्द्रित रखी है। लेखिका के इस संग्रह की कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं और यथार्थ की भावभूमि पर खरी उतरती हैं। डॉ. हंसा दीप की कहानियों के स्त्री चरित्र स्वयं निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। सहज और स्पष्ट संवाद, घटनाओं का सजीव चित्रण इस संकलन की कहानियों में दिखाई देता हैं। कहानियों में जीवन की चेतना है, प्रेम-संबंधों की नई परिभाषाएं हैं। कहानियों के पात्र अपनी जिंदगी की अनुभूतियों को सरलता से व्यक्त करते हैं। इन कहानियों में अनुभव एवं अनुभूतियों की प्रामाणिकता है। कहानियों के कथ्यों में विविधता हैं। जीवन के अनेक तथ्य एवं सत्य इन कथाओं में उद्भासित हुए हैं। चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह कहानी संग्रह सफल है। लेखिका ने इन कहानियों में भारतीय समाज के यथार्थवादी जीवन, आम आदमी का आत्मसंघर्ष, स्त्री संवेगों और मानवीय संवेदनाओं का अत्यंत बारीकी से और बहुत सुंदर चित्रण किया है। हंसा जी की कहानियों का सामाजिक परिवेश बड़ा विस्तृत है।

इनकी कहानियों में व्याप्त स्वाभाविकता, सजीवता और मार्मिकता पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। इस संकलन की कहानियों में लेखिका की परिपक्वता, उनका सामाजिक सरोकार स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। हंसा जी ने कहानियों में घटनाक्रम से अधिक वहाँ पात्रों के मनोभावों और उनके अंदर चल रहे अंतर्द्वन्द्वों को अभिव्यक्त किया है। लेखिका इस संग्रह की कथाओं में पात्रों का चित्रण इस तरह करती है कि पाठकों की सहानुभूति उन्हें सहज ही प्राप्त हो जाती है। हंसा जी की नारी पात्र भावुक, स्नेहमयी, संयमी, श्रद्धा-त्याग की मूर्ति, उदार एवं चुनौतियों का सामना करनेवाली आधुनिक रूप में दिखाई देती हैं। संग्रह की सभी कहानियां शिल्प और कथानक में बेजोड़ हैं  और पाठकों को सोचने को मजबूर करती हैं। कहानियाँ लिखते समय लेखिका स्वयं उस दुनिया में रच-बस जाती है और वे  कहानी का अंत बहुत ही स्वाभाविक रूप से करती है, यही उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है।

इस संग्रह की कहानियों का कथानक निरंतर गतिशील बना रहता है, पात्रों के आचरण में असहजता नहीं लगती, संवाद में स्वाभाविकता बाधित नहीं हुई है। संग्रह की कहानियाँ काफी रोचक हैं जो पाठक को बांधे रखती हैं। देशकाल एवं वातावरण की दृष्टि से इस संग्रह की कहानियाँ सफल है और अपने उद्देश्य का पोषण करने में सक्षम रही हैं। कहानियों का यह संग्रह सिर्फ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। आशा है कि कथाकार डॉ. हंसा दीप के इस नवीन कहानी संग्रह प्रवास में आसपास का हिन्दी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा।


प्रवास में आसपास : हंसा दीप [कहानी-संग्रह], मू. 250, शिवना प्रकाशन, सीहोर। आप इसे यहाँ shivna.prakashan@gmail.com  मेल करके भी मँगवा सकते हैं.


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