गीताश्री
ख़लील जिब्रान के जीवन की एक महत्वपूर्ण स्त्री मिस हैशकल ख़लील को ये बात समझाती है. युवा साथी पंकज कौरव का उपन्यास “शनि: प्यार पर टेढ़ी नजर” का मूल स्वर यही पहचान पा रही हूँ. प्यार और विश्वास दो ऐसे नक्षत्र हैं जो आपस में जुड़े हैं. एक घटित होता है तो दूसरा चमक उठता है. ज्योतिष विधा की छाया में एक कहानी चलती है…पढ़ते हुए इतना तो पक्का यकीन हो जाता है कि लेखक को इस विधा का पूरा ज्ञान है. शायद अच्छा ख़ासा अध्ययन भी है. अच्छी बात ये कि इसे सिर्फ विधा के रुप में देखा है, इसे थोपने की कोशिश नहीं की है. किताब के शीर्षक पर न जाइए. शनि के प्रकोप की ख़ूब चर्चा होती है. कई शनि मंदिर अचानक पीपल वृक्ष के नीचे बन गए हैं. शनि विशेषण पंडितों की चाँदी हो गई है. उनकी दुकानें ख़ूब चल रही हैं. शनि, अंधविश्वास करने वालों में भय पैदा करता है. शनि का मंत्र जाप, काला कपड़ा, तेल चढ़ाना, ये सब आम नजारा है. शनि की साढ़ेसाती इधर चर्चा में है और मुहावरे की तरह इस्तेमाल होने लगा है. किसी के बुरे दिन चल रहे हों तो जुमला उछाल देते हैं— शनि की साढ़ेसाती चल रही है क्या? अच्छे दिन मतलब साढ़े साती उतर गई,. बताते हैं— इसका समय सात साल कानहोता है और इन सात सालों में जातक को नाच नचा देता है शनि.
ये सब ज्योतिष विधा की अवधारणाएँ हैं. इस दौरान लोग क्या क्या उपाय नहीं करते. अँगूठियाँ पहनना तो आम बात है. हर दूसरे तीसरे व्यक्ति की ऊँगली देखिए, किसी न किसी रत्न की एक, दो अंगूठी जरुर दीख जाएगी. कुछ लोगों की सारी ऊंगलियां भरी रहती हैं, मानों वे ऊंगलियां नहीं रत्नों का रैक हों. गले में इतनी मोटी मोटी मालाएँ, मानो गला नहीं, आभूषण होल्डर हो.
यह कारोबार की तरह फल फूल रहा है. मुझे लगा था, पंकज कुछ इस तरफ तल्ख़ी से इशारा करेंगे. मगर उनमें विधा का मोह भी है और एक प्रगतिशील लेखक का आग्रह और प्रतिबद्धता भी.
वे संतुलन बिठाने में कामयाब रहे हैं. अंगूठी और ऊँगली के बीच कहानी दिलचस्प है. अंध विश्वास को बढ़ावा नहीं देते, बल्कि जीवन में संयोग और आत्समविश्वास सबसे बड़ी चीज है. अंगूठी भाग्य नहीं बदलती, हमारे भीतर के आत्मविश्वास को बढ़ा देती है. हम जैसे ही मनोयोग से काम में जुटते हैं, संयोग आ बनते हैं. अवरोध ख़त्म होने लगते हैं और बिगड़े काम बन जाते हैं. हम इसे अंगूठी का चमत्कार मानने लगते हैं.
बहुत बारीक-सी रेखा है, विश्वास और संयोग के बीच. दिलचस्प बात ये कि ज्योतिष में विश्वास रखने वाले लोग भाग्य को नहीं स्वीकारते. वे भाग्य बदलना चाहते हैं. यह अंतर्विरोध बहुत विचित्र है. अँगूठियाँ पहन कर और पूजापाठ कर वे भाग्य से टकराते हैं, उसे चुनौती देते हैं.
इस उपन्यास में कॉरपोरेट जगत के सफल-असफल लोगों के इसी अंध विश्वास का खुलासा किया गया है.
इसमें सिर्फ यही नहीं है…कहानी में कॉरपोरेट जगत का असली चेहरा, प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा उजागर होती ही है, साथ ही दो पीढि़यों का टकराव भी है. पिता-पुत्र के बीच वैचारिक टकराव है, संबंधों की गलतफहमियाँ हैं. नयी पीढ़ी की स्वभाविक आक्रामकता है जो अपनी पूर्व पीढ़ी को गलत समझती है. अपनी मर्जी की करने पर आमादा युवा पीढ़ी , पूर्व पीढ़ी की टोकाटोकी से बहुत परेशान हो उठती है. ये पीढी परंपरा से कटी हुई, पुरखो का लिहाज तक भूल जाना चाहती है.
वह प्रेम करती हुई स्त्री को भी हेय दृष्टि से देखने लगता है. आसानी से मिलती हुई, क़रीब आती हुई चीजें पसंद नहीं आती. यहाँ देखिए—
अनायास प्रेम करती हुई एक स्त्री, और प्लान करके प्रेम करने पर आमादा युवा नायक.
दोनों के लिए प्रेम अलग-अलग रुपों में आता है. दोनों को प्रेम की तलाश है. स्त्री के लिए प्रेम, जीवन में एक साथी की तलाश भर है, नायक को प्रेम चाहिए, एक सफल स्त्री से प्रेम, जो उसकी सफलता की सीढ़ी बन सके. यहाँ मूल में अलग-अलग “चाहतें” हैं.
लेखक मानवीय चाहतो पर ख़ूब चोट करते चलते हैं. एक जगह स्पष्ट लिखते हैं—
“आने वाला कल जाने के लिए नीरव इससे पहले कभी ऐसा आतुर नहीं रहा था. ज्योतिषी से टाइम लेने के बाद तो उसका वक़्त काटे नहीं कटा. इतनी बेक़रारी उसे कभी लड़की से मिलने की भी नहीं रही थी. आख़िर भविष्य जानने की इच्छा है ही इतनी अद्भुत और रोमांचक. इंसान हमेशा वर्तमान से आगे देखने की चाहत पालता आया है. बड़े-बड़े व्यापारी, राजनेता, अभिनेता ज्योतिष के सम्मोहन से नहीं बच पाए, फिर नीरव तो अपनी लाइफ में भी घिसटता हुआ-सा महज 29 साल का एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था. वह कैसे इस जादुई तिलिस्म से बच जाता…”
नीरव, कथा नायक उस पीढ़ी का प्रतिनिधि चेहरा हैं जिसे सबकुछ जल्दी चाहिए. करियर में उछाल जल्दी. यह सच है कि इन दिनों कॉर्पोरेट में सीईओ युवा ही बन रहे. एक आँकड़ा आया है जिसमें अधिकतम सी ई ओ युवा हैं, 35 साल तक वे इस ऊँचाई पर पहुँच जा रहे हैं. नीरव की महत्वाकांक्षा भी यही है. तुरंत ऊँचाई पर पहुँचना उसका लक्ष्य. ये सिर्फ एक नीरव की नहीं, पूरी पीढ़ी की महत्वाकांक्षा है. लेखक इसे बखूबी एक्सपोज करते हैं. यह पीढ़ी मेहनत और क़िस्मत दोनों को सफलता का कारक मानती है. क़िस्मत न हो तो मेहनत फेल! और मेहनत न भी हो, क़िस्मत अच्छी हो तो सफलता मिलती है. जैसे किसी कंपनी के मालिक की बेटी या बेटा क़िस्मत लेकर पैदा होते हैं.
जो मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं होते, वे नीरव की भाँति जीवन में “गार्जियन एंजल” तलाश करते हैं. फिर भटकते हुए ज्योतिष की शरण में जा गिरते हैं.
कथा बहुत दिलचस्प है. पंकज जी क़िस्सा ख़ूब कहते हैं. इन दिनों वेब सीरीज और धारावाहिक लेखन कर रहे हैं.
इस उपन्यास में उन्होंने अंग्रेजी के शब्दों का बहुत इस्तेमाल किया है. इतना ज्यादा किया है कि मेरे जैसा समर्थक इंसान भी पढ़ते हुए अटकने लगता है. लेखक क्या जीवन को जीवन नहीं लिख सकता, लाइफ लिखना जरुरी है क्या?
किसी किसी वाक्य में तो सारे के सारे शब्द अंग्रेजी में हैं. हिंदी उन्हें जोड़ती है. मुझे अखर गया. यह किताब पहले ऑनलाइन पाठकों के लिए लिखी गई थी. किताब के रुप में जब आ रही थी तब भाषा पर काम करना चाहिए था.
भाषा की कलात्मकता गायब है यहाँ. झरने -सी बहती भाषा का कल-कल नाद सुनाई देता तो रुह तक बात पहुँच जाती. कई बार खुरदुरे यथार्थ को पचाने के लिए भाषा का सहारा लेना जरुरी होता है. पंकज से उम्मीद है कि अगली किताब में भाषा की राह में अंग्रेजी के रोड़े कम अटकाएँगे. जहां जरुरी हो, वहाँ नगीना जड़ देना चाहिए. जहां गैरजरूरी हो तो वहाँ हिंदुस्तानी भाषा है न…!!
धीरेंद्र अस्थाना जी से उधार लेकर कहती हूँ—“पंकज के पास दावे नहीं, विनम्र इरादे हैं!”
हमें इसका अहसास है. वे जीवन और लेखन दोनों में ऐसी ही विनम्रता से लबालब भरे हुए प्यारे इंसान हैं.
कोरोना वायरस की टेढ़ी नजर के दौर में पढ़ी गई यह दूसरी किताब!!
प्यार पर टेढ़ी नज़र शनि : पंकज कौरव, मू. 199 रूपये [उपन्यास], वाणी प्रकाशन, दिल्ली व रज़ा फाउंडेशन. अमेज़न से ऑनलाइन ऑर्डर करके भी मँगवा सकते हैं.
गीताश्री: कथाकार एवं पत्रकार. प्रकाशित कृतियाँ- ‘प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियां’, ‘स्वप्न, साजिश और स्त्री’, ‘डाउनलोड होते हैं सपने’, ‘लेडीज सर्कल’ ( कहानी संग्रह); ‘हसीनाबाद’ (उपन्यास), ‘औरत की बोली’ (स्त्री विमर्श), ‘स्त्री आकांक्षा के मानचित्र’ (स्त्री विमर्श), ‘सपनों की मंडी’ (आदिवासी लड़कियों की तस्करी पर आधारित शोध), ‘भूतखेला’ (रहस्य रोमांच-कहानी संग्रह), ‘वाया मीडिया-एक रोमिंग कॉरेस्पोंडेड की डायरी’ (उपन्यास). संपादित कृतियाँ—‘नागपाश में स्त्री’, ‘कल के कलमकार’, ‘स्त्री को पुकारते हैं स्वप्न’, ‘हिंदी सिनेमाः दुनिया से अलग दुनिया’, ‘तेईस लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव’, ‘रेखाएँ बोलती हैं’ (दो खंडों में), ‘वारिसों की जुबानी-2020’. पुरस्कार एवं सम्मान—वर्ष 2008-09 में पत्रकारिता का सर्वोच्च पुरस्कार रामनाथ गोयनका, बेस्ट हिंदी जर्नलिस्ट ऑफ द इयर समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त. 23 सालों तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद फिलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता और साहित्य लेखन! आप लेखिका से इस ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं—geetashri31@gmail.com