शैलजा सिंह
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से हिन्दी के फलक पर एक बड़ी इबारत लिखी जा रही है। इबारत लिखने का काम कर रही है सहारनपुर से प्रकाशित हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका ‘शीतलवाणी’। इस साहित्यिक त्रैमासिक का सफ़र यूँ तो करीब 40 साल पुराना है लेकिन गत 12 वर्षों में शीतलवाणी ने साहित्यिक पत्रकारिता में कई नये आयाम स्थापित किये हैं। आइये पहले इसके सफ़र पर एक नज़र डालते हैं। वर्ष 1981 में इसका प्रकाशन एक साप्ताहिक समाचार पत्र के रुप में प्रारंभ किया गया था। लेकिन एक वर्ष बाद 1982 में ही इसे रंगमंच और साहित्य को समर्पित पाक्षिक पत्र बना दिया गया। ‘शीतलवाणी’ के रंगमंच अंक का लोकार्पण प्रख्यात समालोचक, नाट्य समीक्षक व ‘नटरंग’ के संस्थापक संपादक श्री नेमीचंद्र जैन के कर कमलों द्वारा किया गया।
क़रीब तीन वर्ष तक प्रकाशन के बाद कुछ अपरिहार्य कारणों के चलते ‘शीतलवाणी’ का प्रकाशन बंद हो गया। साल 2008 में ‘शीतलवाणी’ का प्रकाशन पुनः प्रारंभ किया गया एक नये संकल्प के साथ। पत्रिका के संपादक डाॅ. वीरेन्द्र आज़म के मुताबिक, ‘‘संकल्प था हिन्दी को समृद्ध करने के साथ-साथ नये रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराना तथा अहर्निश हिन्दी सेवा में लगे साहित्य साधकों और हाशिए पर चले गए प्रख्यात साहित्यकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व को सामने लाते हुए उन पर विशेषाँक प्रकाशित करना। संकल्प के मूल में भाव ये भी था कि इससे साहित्यकारों पर शोध करने वाले शोधार्थियों को एक ही स्थान पर अधिक से अधिक शोध सामग्री उपलब्ध हो। अपने इस उद्देश्य में ‘शीतलवाणी’ काफी सफल भी रही। हालाँकि अपने इस सफ़़र में पत्रिका को अनेक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। ‘शीतलवाणी’ को न तो किसी पूँजीपति का संरक्षण मिला और न कभी किसी सरकारी संस्थान से अनुदान। यदि किसी का सहयोग और विश्वास मिला तो वह थे सहारनपुर के तत्कालीन मंडलायुक्त श्री आर पी शुक्ल ! वे ही थे जिन्होंने हमारा हौसला भी बढ़ाया और अपने सहयोग का हाथ भी। परिणाम, हम प्रकाशन की पटरी पर लौट आये। भले ही हम दौड़ न पाये हों लेकिन न रुके हैं न थके है। पाठकों का स्नेह और रचनाकारों का रचनात्मक सहयोग हमारा संबल है और हर अंक हमारी शक्ति का नया केन्द्र। प्रबंध संपादक के रुप में प्रिय मनीष कच्छल का प्रकाशन से पोस्ट तक प्रबंधन और सहायक संपादक के रुप में अनुज सरीखे राजेन्द्र शर्मा (नोएडा) का सहयोग ‘शीतलवाणी’ के प्रकाशन की मुश्किलें आसान करता रहा है।’’
जिन साहित्यकारों पर विशेषाँक प्रकाशित किये गए उनमें शैलियों के शैलीकार पद्मश्री डाॅ.कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, प्रख्यात कवि एवं चित्रकार शमशेर बहादुर सिंह, प्रख्यात भाषाविद् व व्याकरणाचार्य और कामायनी मर्मज्ञ डाॅ.द्वारिका प्रसाद सक्सेना, सुविख्यात रंगकर्मी, कथाकार व उपन्यासकार डाॅ.लक्ष्मी नारायण लाल, जाने-माने आलोचक कमला प्रसाद, चर्चित कवि, कथाकार व पत्रकार उदय प्रकाश, वरिष्ठ कथाकार व उपन्यासकार से.रा.यात्री, सुविख्या कवि नरेश सक्सेना, हिन्दी ग़ज़ल के प्रख्यात हस्ताक्षर व हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल, संस्मरण लेखक, कवि, चित्रकार व कुशल प्रशासक आर पी शुक्ल शामिल हैं। साल 2008 से प्रारंभ हुआ ये सिलसिला निरंतर जारी है। प्रत्येक विशेषाँक में पत्रिका के सहायक संपादक राजेन्द्र शर्मा द्वारा सुंदर रंगीन चित्र के साथ संबद्ध साहित्यकार का जीवन वृत्त पाठक को तब तक आगे नहीं बढ़ने देता जब तक वह उसे ठीक से देख और पढ़ न लें। जिन साहित्य विभूतियों पर विशेषाँक निकाले गए हैं उन्हें समय-समय पर विभिन्न सात्यिकारों द्वारा जो पत्र लिखे गए, उन पत्रों का प्रकाशन और चित्र वीथिका में दर्शायी गयी उनकी जीवन झाँकी ने ‘शीतलवाणी’ के इन विशेषाँकों को दस्तावेज़ बना दिया है। यही वजह है कि ‘शीतलवाणी’ के इन सभी अंकों को साहित्य जगत का खूब प्यार और दुलार मिला हैं।
नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर पद्मभूषण कुँवर नारायण, गीतों के हिमालय डॉ.गोपाल दास नीरज, गीत ऋषि बाल कवि बैरागी, सबसे बडे़ उपन्यास के रचयिता मनु शर्मा, बाल साहित्य के वरिष्ठ रचनाकार कृष्ण शलभ आदि शब्द शिल्पियों के महाप्रयाण पर भी विशेष आलेख और सामग्री ‘शीतलवाणी’ के अंकों की विशेषता रही है। इसके अतिरिक्त देश के अनेक स्थापित व चर्चित रचनाकारों के साथ-साथ ‘शीतलवाणी’ में नये हस्ताक्षरों की कहानियाँ, संस्मरण, गीत, कविताएँ, नयी कविता, मुक्तक, ग़ज़ल, दोहे, हाइकु आदि हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं को बडे़ सम्मान के साथ स्थान दिया गया है। पुस्तक व पत्रिकाओं की समीक्षा और साहित्यिक गतिविधियां पत्रिका के स्थायी स्तंभ हैं।
विशेषाँकों की उक्त कड़ी में ‘शीतलवाणी’ का ताज़ा अंक (अक्तूबर 2015-मार्च 2020) देश के जाने माने गीतकार राजेन्द्र राजन के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित है। इस विशेषाँक का लोकार्पण फरवरी 2020 में प्रेस क्लब लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानंद गुप्त और पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष व प्रख्यात साहित्यकार उदय प्रताप सिंह द्वारा एक समारोह में किया गया। राजन देश के उन अग्रिम पंक्ति के गीतकारों में हैं जो आज भी मंच पर गीत को ज़िंदा रखे हुए हैं। विशेषाँक में जहाँ उनके रचना संसार की बानगी के रुप में कुछ चुनींदा गीत और ग़ज़लें हैं वहीं चित्रों के साथ उनकी जीवन झाँकी भी है। उनकी अपनी क़लम से लिखी गयी उनकी गीत यात्रा है तो उनका साक्षात्कार भी है। सुप्रसिद्ध गीतकारों व साहित्य साधकों-उदय प्रताप सिंह, डाॅ.बुद्धिनाथ मिश्र, डाॅ. कुँअर बेचैन, माहेश्वर तिवारी, हरिओम पंवार, सुरेन्द्र शर्मा, अरुण जैमनी, पं.सुरेश नीरव, विनीत चैहान, डाॅ. अश्वघोष, डाॅ. शिवओम अंबर, कीर्ति काले, सरिता शर्मा, डाॅ. अनु सपन, विष्णु सक्सेना, सर्वेश अस्थाना, जमना उपाध्याय, डाॅ. योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण, दिनेश रघुवंशी, डाॅ.सुरेश, प्रवीण शुक्ल, रास बिहारी गौड़, दिनेश प्रभात, किशोर कौशल, ऋषिपाल धीमान, प्रमोद शाह नफ़ीस, चेतन क्रांति, कृष्ण सुकुमार, मधु प्रसाद, मीरा शलभ, अनिल पांडेय और उनके बाल सखा राकेश विशाल ने जहाँ अपनी-अपनी क़़लम से उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के चित्र उभारे हैं वहीं किसी जमाने में पूर्वांचल के काव्य मंचों की चर्चित कवियित्री और अब उनकी अद्र्धांगिनी श्रीमती विभा मिश्रा ने भी अपना मन खोला है।
इससे पूर्व ‘शीतलवाणी’ का मार्च 2019 अंक कमलेश भट्ट पर केन्द्रित था। कमलेश भट्ट की गणना इक्कीसवी सदी के हिन्दी ग़ज़लकारों की अग्रिम पंक्ति में होती है और जापानी विधा की कविता हाइकु का उन्हें ध्वज वाहक माना जाता है। ‘शीतलवाणी’ विशेषाँक में जहाँ उनकी प्रतिनिधि ग़ज़लों व हाइकु के अतिरिक्त कहानी, यात्रा संस्मरण आदि उनकी सभी विधाओं की बानगी है वहीं उनके अपने जीवन के अहम पन्ने ‘दास्तां-ए-छोटकऊ’ भी है। पत्रिका संपादक डाॅ.वीरेन्द्र आज़म के साथ साक्षात्कार में भट्ट जी ने हाइकु सहित अपनी सभी विधाओं और हिन्दी ग़ज़ल को लेकर विस्तार से बात की है। वरिष्ठ साहित्यकार से. रा. यात्री, पंकज गौतम, ज्ञान प्रकाश विवेक, विज्ञान व्रत, योगेन्द्र दत्त शर्मा, डॅा. वसिष्ठ अनूप, हरेराम समीप, अनिरुद्ध सिन्हा, यश मालवीय, वीरेन्द्र कुँवर, महेश अश्क, दिनेश चित्रेश, दामोदर दत्त दीक्षित, अशोक रावत, अशोक मिश्र, डाॅ. सरिता शर्मा, डाॅ.जगदीश व्योम व डाॅ. करुणेश सरीखे शब्द साधकों ने कमलेश भट्ट की सृजन यात्रा पर क़लम चलायी है तो डाॅ. वेदप्रकाश अमिताभ, वीरेन्द्र आस्तिक, डाॅ.नीलोत्पल रमेश, डाॅ.प्रेम कुमार, रघुवीर शर्मा, हरिशंकर सक्सेना, डाॅ.श्रीकांत उपाध्याय व सुरेश सपन ने उनके क़रीब दो दर्जन संग्रहों की समीक्षा के बहाने उनकी साहित्य यात्रा की है। उनके सृजन पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के संपादकों का नज़रिया भी पत्रिका ने पेश किया है।
मई-जुलाई 2015 का ‘शीतलवाणी’ अंक तीन दर्जन से ज़्यादा कहानी संग्रह और उपन्यासों के रचयिता, देश के जाने-माने कथाकार से रा यात्री के व्यक्तित्व- कृतित्व पर आधारित था। इस अंक में जहाँ से रा यात्री की क़लम से लिखे गए ‘जीवन संघर्ष के कुछ पन्ने’ और ‘बहुवचन’ के संपादक अशोक मिश्र द्वारा ‘वर्धा डायरी के कुछ पन्ने’ शीर्षक से लिखे गए संस्मरण पत्रिका का आकर्षण रहे वहीं कमलेश भट्ट कमल द्वारा उनकी सृजना पर उनसे की गयी लंबी बातचीत (मैंने कभी अपने को बेचने लायक नहीं बनाया) ने भी अंक को समृद्ध किया है। इसके अतिरिक्त मनमोहन सरल, रविन्द्र कालिया, ओमप्रकाश चतुर्वेदी पराग, आबिद सुरती, हृदयेश, डाॅ.कृष्ण चंद्र गुप्त, डाॅ अश्वघोष, सुभाष पंत, डाॅ.प्रेम कुमार, योगेन्द्र दत्त शर्मा, श्रीराम विद्यार्थी, डाॅ.श्रीरमण मिश्र व मनुस्वामी सरीखे साहित्य मनीषियों ने भी अनेक संस्मरणों के साथ उनकी जीवन और सृजन यात्रा को पढ़ने और समझने का अवसर सुधि पाठकों को दिया है। चित्र वीथिका में उनकी जीवन झाँकी भी दर्शनीय है। डाॅ.धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, ज्ञानरंजन, गिरिराज किशोर, विष्णु प्रभाकर, जयशंकर व उपेन्द्र नाथ अश्क सरीखे साहित्य मनीषियों द्वारा से रा यात्री को लिखे गए पत्रों के प्रकाशन ने इस विशेषाँक को संग्रहणीय बना दिया है।
‘‘शीतलवाणी‘‘ के अगस्त-अक्तूबर 2014 में प्रकाशित नरेश सक्सेना विशेषाँक में नरेश सक्सेना के रचना संसार की बानगी भी है और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख व सामग्री भी। उनकी कविताओं में से अनेक चर्चित कविताएं- आधा चाँद माँगता है पूरी रात, भाषा से बाहर, पानी, दाग धब्बे, हिस्सा, नीम की पत्तियां, देखना जो ऐसा ही रहा तो, उसे ले गए, समुद्र पर हो रही है बारिश, इस बारिश में, और उनकी रंग आदि कविताएँ प्रकाशित की गयी है। इसके अतिरिक्त प्रख्यात साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, रमानन्द श्रीवास्तव, स्वप्निल श्रीवास्तव, मंगलेश डबराल, अरुण शीतांश, भरत प्रसाद, एकांत श्रीवास्तव, हरीशचंद्र पाण्डेय, सुशीला पुरी, साधना अग्रवाल आदि के आलेख भी हैं।
‘‘शीतलवाणी‘‘ का अगस्त-अक्तूबर 2012 अंक कवि और कहानीकार के रुप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात उदय प्रकाश को समर्पित था। 280 पृष्ठ का यह विशेषाँक पूरे देश में चर्चित रहा है। उदय प्रकाश इस अंक में जहाँ ओम निश्चल व अरुण आदित्य के साथ बातचीत करते हुए परत दर परत खुलकर सामने आये है वहीं उन्होंने खुद पर उठने वाले सवालों के जवाब भी बेबाकी से दिए हैं। बाॅलीवुड के चर्चित स्टार इरफान खान उदय की कहानियों के दीवाने हैं, उनसे धीरज सार्थक और उदय प्रकाश की पत्नी कुमकुम से डाॅ. सुधा उपाध्याय द्वारा की गयी बातचीत पत्रिका की उपलब्धि है। इसके अलावा प्रख्यात कवियित्री अनामिका से लीना मल्होत्रा द्वारा लिया गया साक्षात्कार भी पत्रिका की धरोहर है। बतौर बानगी उदय प्रकाश की तीन छोटी कहानियाँ नेलकटर, डिबिया और अपराध तथा चर्चित कविता तिब्बत भी छापी गयी है। उदय की कहानियों और कविताओं पर देश के जाने माने साहित्यकारों नरेश सक्सेना, विजय बहादुर सिंह, रेखा सेठी, प्रो.जय मोहन, विजय शर्मा, प्रेमचंद गाँधी, निरंजनदेव शर्मा, शंभु गुप्त, प्रिय दर्शन, विमलेश त्रिपाठी, संजीव कुमार, हरिमोहन शर्मा, प्रमिला के पी, निरंजन क्षोत्रिय, प्रभात रंजन, हरिमृदुल, भगवान सिंह, हेमंत कुकरेती, प्राजंल धर, प्रहलाद अग्रवाल, कुमार मुकुल, माहेश्वर, द्वारिका प्रसाद चारुमित्र, दिनेश कर्नाटक, जितेन्द्र श्रीवास्तव, अनंत विजय, वैभव सिंह, अनवर सिद्दकी, अरविंद श्रीवास्तव, शैलेन्द्र चैहान, कैलाश चंद्र, निखिल आनंद गिरी, नरेश चंद्रकर, विनीत उत्पल, राजेन्द्र कैड़ा, अभिषेक कश्यप, योगेन्द्र कुमार, इफ्तिखार जालिब, सिद्वेश्वर सिंह, ज्योतिष जोशी,शिरीष कुमार मौर्य, जसबीर चावला, किरण अग्रवाल, नील कमल, रश्मि भारद्वाज, सुशीला पुरी, डाॅ.सुनीता, प्रो.शबनम आदि ने भी जमकर अपनी क़़लम चलायी है। देश के दर्जनों विश्वविद्यालयों में उदय प्रकाश के साहित्य पर शोध कर रहे असंख्य शोधकर्ताओं के लिए उदय प्रकाश विशेषाँक संदर्भ ग्रंथ के रुप में सहायक बन रहा है।
‘शीतलवाणी’ का जुलाई-दिसंबर 2011 (संयुक्ताँक) प्रख्यात आलोचक और ‘वसुधा’ के संपादक रहे प्रोफेसर ‘कमला प्रसाद स्मृति अंक’ के रुप में प्रकाशित हुआ था। इस अंक में कमला प्रसाद के स्मृति चित्रों के अतिरिक्त प्रख्यात कवि, लेखक, संपादक विष्णुनागर, लब्ध प्रतिष्ठित कवि राजेश जोशी, डाॅ. सुधेश, वरिष्ठ पत्रकार अरुण आदित्य, चर्चित कवि दिनेश कुशवाह के अतिरिक्त अरुण शीतांश, नरेन्द्र पुण्डरीक, जितेन्द्र बिसारिया, राजेन्द्र लहरिया, प्रदीप मिश्र, उषा प्रारब्ध व पूनम सिंह के संस्मरणों ने जहाँ अंक को पठनीय और संग्रहणीय बनाया है वहीं डाॅ. कपिलेश भोज, सेवाराम त्रिपाठी, प्रदीप सक्सेना, कुमार अंबुज, जाहिद खान, अरविन्द श्रीवास्तव, योगेन्द्र कुमार, सिद्धार्थ राय, विशाल विक्रम सिंह के आलेख ने अंक को समृद्ध किया है। 2002 में आशा शैली द्वारा कमला प्रसाद से लिया गया साक्षात्कार अंक की विशेषता है तो सेवाराम त्रिपाठी, विजय अग्रवाल और आशीष त्रिपाठी द्वारा लिए गए साक्षात्कारों पर आधारित कमला प्रसाद का ज़िंदगीनामा पत्रिका की धरोहर है। बाद में प्रलेस के एक सम्मेलन में इस अंक का लोकार्पण भी किया गया।
वर्ष 2011 में ही जनवरी-मार्च का ‘शीतलवाणी’ अंक भाषाविद् व कामायनी मर्मज्ञ डाॅ.द्वारिका प्रसाद सक्सेना स्मृति अंक के रुप में प्रकाशित किया गया। डाॅ. सक्सेना ने अपने जीवन की संघर्ष यात्रा ‘मेरी आत्मकथा: कालजयी संघर्ष गाथा’ शीर्षक से क़लमबद्ध की थी। डाॅ. सक्सेना की आत्मकथा न केवल उनकी जिजीविषा की दास्तां है बल्कि शून्य से शिखर तक पहुँचने का वृŸाांत है। उनकी आत्मकथा पर इस अंक के माध्यम से प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. विश्वनाथ त्रिपाठी, डाॅ. सुधेश, वल्लभ डोभाल, बी एल गौड़, डाॅ. वी वी विश्वम, डाॅ. आशा एस नायर, प्रो.डी.तंकप्पन नायर, प्रो. शिवपूजन प्रसाद, डाॅ. कपिलेश भोज, डाॅ. विष्णु कांत शुक्ल, अनंत विजय, डाॅ. देवकी नंदन शर्मा, विनीत सहाय, महाराजसिंह व राजेन्द्र शर्मा ने उनकी इस संघर्ष यात्रा के साथ अपनी शब्द यात्रा की है। लहर भाष्य, आँसू भाष्य, कामायनी भाष्य और प्रसाद दर्शन सहित डाॅ. सक्सेना की करीब दो दर्जन कृतियों पर पद्मश्री डाॅ.वेल्लायणी अर्जुनन, डाॅ. एन पी कुट्टन पिल्लै, डाॅ.नन्नियोड रामचंद्रन, डाॅ.सुधेश डाॅ.एम एस विनयचन्द्रन, डाॅ.रणवीर सिंह चैधरी, उषा बी नायर, डाॅ. श्रीभगवान शर्मा, डाॅ. भद्रपाल सिंह, डाॅ. शिवशंकर शर्मा, डाॅ.शबनम, ज्योति किरण, डाॅ.सुधा उपाध्याय, योगेन्द्र कुमार व मुकेश शर्मा ने भी खूब क़लम चलायी है। अंक में डाॅ. सक्सेना की जीवन झाँकी के साथ उनकी विचार यात्रा भी है।
इस अंक का लोकार्पण नोएडा में सुविख्यात कथाकार वल्लभ डोभाल की अध्यक्षता में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘हंस’ संपादक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक राजेन्द्र यादव, कथाकार संजीव, साहित्यकार आर पी शुक्ल, डाॅ. सुधेश, उनके पुत्र योगेन्द्र कुमार, शीतलवाणी के संपादक डाॅ. वीरेन्द्र आज़म और कवि एवं वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी स. तजेन्द्र सिंह लूथरा द्वारा किया गया। कवि, उपन्यासकार व पत्रकार अरुण आदित्य के संचालन में आयोजित इस समारोह में हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल, नाट्य लेखक व कहानीकार डाॅ. लक्ष्मी नारायण लाल के सुपुत्र आनन्द वर्धन सहित अनेक साहित्यानुरागी शामिल रहे। स.तजेन्द्र सिंह लूथरा ने डाॅ. सक्सेना के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बड़े गर्व के साथ अतीत की स्मृतियों को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि सर्विस में आने से पूर्व वह युवावस्था में ‘शीतलवाणी’ के संपादकीय परिवार का हिस्सा थे और पत्रिका के लिए लिखा करते थे।
‘शीतलवाणी’ का अक्टूबर-दिसम्बर 2010 अंक भी ऐतिहासिक अंक था। यह अंक हिन्दी साहित्य की नाटक, कहानी, उपन्यास, एकांकी, बाल साहित्य आदि विभिन्न विधाओं को अपनी साधना से समृद्ध करने वाले डाॅ. लक्ष्मी नारायण लाल पर केन्द्रित था। अमृता प्रीतम व संजय निरुपम द्वारा डाॅ. लाल से लिए गए साक्षात्कार (‘आने वाला कल’ व ‘पाञचजन्य’ से साभार) के अतिरिक्त ‘कृतिकार लक्ष्मीनारायण लाल’ में प्रकाशित अज्ञेय व जैनेन्द्र कुमार तथा ‘नई कहानियां’ में प्रकाशित इलाचंद्र जोशी के आलेख को साभार प्रकाशित कर जहाँ अंक को समृद्ध किया गया वहीं उनकी अपनी क़लम से धर्मयुग के यशस्वी संपादक धर्मवीर भारती पर 1963 में लिखे गए ‘परत-दर-परत भारती’, ‘मेरे रचनाकार का संघर्ष’ और ‘मेरा अपना रंगमंच’ आलेखो ने ‘शीतलवाणी’ को विशेषाँक का औचित्य प्रदान करने में काफी सहायता की। महाकवि सुमित्रा नंदन पंत, डाॅ. धर्मवीर भारती, परसाई जी, दिनकर जी, मोहन राकेश व विमल मित्र आदि साहित्य मनीषियों के पत्रों ने तो विशेषाँक को दस्तावेज़ ही बना दिया है। इसके अतिरिक्त नेमीशरण मित्तल, श्याम आनंद, डाॅ.सत्यव्रत, जयदेव तनेजा, डाॅ.सुधा उपाध्याय, विनय श्रीवास्तव, बंधु कुशावर्ती आदि ने भी डाॅ. रचना संसार व उनके व्यक्तित्व को अपनी क़लम से उकेरा है। डाॅ. लाल द्वारा अपने सुपुत्र आनंद वर्धन को लिखा पत्र और उनके पुत्र आनंद वर्धन द्वारा लिखा गया संस्मरण अंक की उपलब्धि है। इसके अतिरिक्त उनकी कहानियाँ, एकांकी आदि के साथ अंक संग्रहणीय बन पड़ा है।
डाॅ.लक्ष्मी नारायण लाल स्मृति अंक के साथ ‘शीतलवाणी’ की एक उपलब्धि ये भी है कि इस अंक का लोकार्पण गांधी शांति प्रतिष्ठान में डाॅ. लक्ष्मी नारायण लाल स्मृति फाउन्डेशन द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में समारोह अध्यक्ष व सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ.महीप सिंह, डाॅ.गंगा प्रसाद विमल, डाॅ.हरि कृष्ण देवसरे, डाॅ.सुधेश, डाॅ.रवि शर्मा, विकास मिश्र व उनके सुपुत्र आनंद वर्धन द्वारा किया गया था।
वर्ष 2010 जन-जन के कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म शताब्दी वर्ष था। देश की राजधानी और महानगरों में बैठे बड़े-बड़े साहित्यकार और संपादक सोचते ही रह गये और एक छोटे से शहर से प्रकाशित ‘शीतलवाणी’ ने जुलाई-सितम्बर 2010 का अंक ‘शमशेर बहादुर सिंह स्मृति अंक’ के रुप में प्रकाशित कर बाजी मार ली। ‘शीतलवाणी’ का यह दस्तावेज़ी अंक साहित्य जगत में काफी दिनों तक चर्चाओं और सुर्खियों में रहा। अंक में जहाँ काल से होड़ लेने वाले इस कवि की कुछ चुनी हुई कविताओं व ग़ज़लों के अलावा उनकी दुर्लभ पेंटिग्स हैं वहीं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डाॅ. नामवर सिंह, इब्बार रब्बी, मदन कश्यप, डाॅ. सुरेन्द्र कुमार व जगदीश पांडे के आलेख भी हैं। शमशेर द्वारा अपने अनुज तेज बहादुर को लिखा गया दस्तावेज़ी पत्र, छोटे भाई तेज बहादुर की डायरी के अंश तथा शमशेर को लेकर त्रिलोचन जी से रामकुमार कृषक द्वारा लिया गया साक्षात्कार जहाँ पत्रिका की उपलब्धि हैं वहीं संवेदना की तरलता और सजगता लिए विश्रांत वशिष्ठ व अजय सिंह के संस्मरणों ने अंक को पठनीय व संग्रहणीय बना दिया है। अंक में प्रताप राव कदम की क़लम से शमशेर सम्मान पर विस्तार से जानकारी भी है। यह विशेषाँक कितना चर्चित रहा, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इंडिया टुडे, हंस, दैनिक अमर उजाला, दैनिक जागरण व दैनिक ट्रिब्यून सहित अनेक पत्र पत्रिकाओं ने इस पर समीक्षाएँ लिखी।
अप्रैल-जून 2009 का शीतलवाणी अंक शैलियों के शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी पद्मश्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर पर केन्द्रित रहा। इस अंक में प्रभाकर जी का आलेख ‘मैं लेखक कैसे बना’ के अतिरिक्त उनके ‘जीवन दर्शन’ व उनके ‘मृत्यु चिंतन’ ने इस अंक को विशेष बना दिया। उनके रचना संसार की बानगी के रुप में उनकी कहानी, बाल कहानी, लघु कथाएँ, उनकी एक कविता भी इस अंक की उपलब्धि रही। दरअसल प्रभाकर जी ने अपने लेखन का मंगलाचरण कविता से ही किया था। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रामकली की कविता ‘शीतलवाणी’ की धरोहर है। प्रभाकर जी की जीवन झाँकी तो है ही, पर वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. देवेन्द्र दीपक, के सी गुप्त, डाॅ.कमलकांत बुधकर व डाॅ.मीरा गौतम के आलेख और आर पी शुक्ल, कृष्ण शलभ व डाॅ.एन सिंह के संस्मरणों ने भी अंक को समृद्ध, पठनीय और संग्रहणीय बनाया है।

एक जुलाई 1975 को लखनऊ में जन्मी शैलजा सिंह वाणिज्य कर विभाग नोएडा में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत है । सांस्कृतिक व साहित्यिक गतिविधियों में विषेष रूचि । किसी भी पत्र पत्रिका में प्रकाशित होने वाला यह पहला आलेख। आप लेखिका से इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं– singhshailja74@gmail.com
Comments
‘शीतलवाणी’ के बारे में बहुत सारी जानकारी से परिचित हुआ । इस आलेख के माध्यम से लेखिका ने वीरेंद्र आजम के संघर्ष को बखूबी महसूस कराया है – हम पाठकों को । शीतलवाणी के वर्तमान से तो मैं परिचित था, लेकिन भूत को जानकर आह्लादित हुआ हूँ । इस पत्रिका का महत्व ऐतिहासिक सिद्ध होगा । इसके सुखद भविष्य की कामना करता हूँ ।
किसी पत्रिका के सफ़रनामे पर इतने विस्तार से लिखा जा सकता है, यह इस टिप्पणी को ही पढ़कर जाना। शैलजा की,दृष्टि, लगन और उनका परिश्रम सराहनीय है !
शीतल वाणी पत्रिका के संबंध में बहुत सारगर्भित जानकारी प्राप्त हुई इसके लिए शैलजा जी को बहुत-बहुत बधाई