क्या आप ग्लोरिया स्टायनेम को जानते है?

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विमल कुमार

क्या आप ग्लोरिया स्टायनेम को जानते है? शायद नही जानते होंगे। सेकंड सेक्स की मशहूर लेखिका  सिमोन द बुआ की तरह वह भारत के हिंदी जगत में नही जानी जाती है। वह जर्मन ग्रीयर और केट मिलेट की तरह भी शायद जानी जानी होंगी लेकिन पिछले कुछ सालों से हिंदी में स्त्रीवादी लेखन में इन पश्चिमी नारीवादियों की चर्चा सुनाई पड़ती है। अमेरिका के ओहियों में 25 मॉर्च 1934 को जन्मी ग्लोरिया पेशे से पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता रही है लेकिन उनकी गिनती दुनिया की शीर्षस्थ नारीवादी लेखिकाओं में होती है।

सबसे बड़ी बात है कि वह उन विरले पश्चिम नारीवादियों में हैं जिनका जुड़ाव भारत से रहा है। वह 50 के दशक के अंतिम वर्षों में चेस्टर बोवेल्स फ़ेलोशिप के तहत आई थी। वह उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश मेहर चंद महाजन की लॉ क्लर्क भी रही थी। इसके अलावा उन्होंने गांधी और बिनोबा भावे के आश्रम का भी दौरा किया था। वह कमलादेवी चट्टोपाध्याय और इंदिरा गांधी के भी संपर्क में रही। ग्लोरिया की इस वर्ष हिंदी में वजूद औरत का नाम से किताब आई है। यह उनकी अंग्रेजी में लिखे 19 चुनिंदा लेखों के हिंदी अनुवाद का संग्रह है। इसका सम्पादन देश की चर्चित पत्रकार रुचिरा गुप्ता ने किया है जो इन दिनों अमरीका के न्यूयॉर्क विश्विद्यालय में प्रोफेसर है और ह्यूमन ट्रैफिकिंग एंड जेंडर विषय पढ़ाती हैं। इन लेखों का अनुवाद भावना मिश्र ने किया है जो अंग्रेजी कविताओं के अपने सुंदर अनुवाद के लिए जानी जाती है।

ग्लोरिया की इस किताब में अगर पृरुषों को मासिक धर्म होता अगर हिटलर जीवित होते तो वे किसका पक्ष लेते तथा में थी एक प्लेबॉय बनी और मर्लिन मुनरो वह औरत जो हमारे बीच से चली गयी जैसे चर्चित लेख हैं। इसके अलावा कामुकता बनाम अश्लीलता  रोमांस बनाम प्रेम सम्पत्ति का पितृकरण भोजन पर राजनीति एवम काम का महत्व देहव्यापार और वेश्यावृति का अंत जैसे महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। इस तरह उन्होंने स्त्री विमर्श को समग्रता से पेश किया है। वह एक यायावर पत्रकार रही है। इस लिहाज से उनके पास अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी हैं। इस अर्थ में वह सिमोन या ग्रीयर से अलग है।

वह सिद्धांतकार कम बल्कि अपने अनुभव के संचित ज्ञान से इस विमर्श को देखती हैं। उन्होंने भूमिका में लिखा है— मैं पूरी शिद्दत से यह उम्मीद करती हूं कि इन पन्नों में आपको कुछ उपयोगी तथ्य या विचार  या सहभागिता की भावना वाली सामग्री मिल सकेगी ।मेरे देश मे भी यह जरूरत बनी हुई है कि हम स्त्री और पुरुष के बीच की दूरी को पाट सकें और पुरुषोचित और स्त्रियोचित कार्यों के बीच के अंतर को खत्म कर सकें। क्योंकि वास्तव में तो यह सभी काम अमानवीय हैं इनसे लैंगिक विभेद का कोई संबंध नही है। लैंगिक विचारों पर आधारित भूमिकाएं भी नस्ल जाति या वर्ग या किसी भी ऐसे आधार पर टिकी भूमिकाओं की तरहः ही अमानवीय है जो खुद अर्जित अथवा चुनी गई न हो।” ग्लोरिया के स्त्री विमर्श का यह एक तरहः से सार है और उनकी यह स्थापना अन्य नारीवादियों से भिन्न है। उनकी दुसरीं महत्वपूर्ण स्थापना यह है “मेरे देश मे लैंगिकवाद और नस्लवाद आपस मे गूंथे हुए हैं और आपके देश यानी भारत मे लैंगिकवाद और जातिवाद आपसे में गूंथे हुए हैं और इस कारण लिंग नस्ल या लिंग या जाति को एक ही साथ जड़ से उखाड़ना जरूरी है”।

86 वर्षीय ग्लोरिया न्यूयॉर्क मैगजीन और एमएस पत्रिका में अपने लेखों से 1969 से चर्चित हुई और आजीवन सक्रिय रही। रुचिरा गुप्ता की संस्था की सलाहकार बोर्ड में तो रही ही 2007 में वह उनके एक कार्यक्रम में भाग लेने भारत भी आई थी। ग्लोरिया ने महिलाओं में कुपोषण से लेकर यौन शोषण और स्त्री के खिलाफ हिंसा तथा पोर्न को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पित्रसत्ता का हथियार मानती हैं और उन सबके खिलाफ एक संयुक्त लड़ाई का आह्वान करती हैं। दर असल ग्लोरिया ने अपनी किताब के पहले लेख “वह भारत जिसने मझको आकार दिया”में भारत के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की है। उनकी दृष्टि इसलिए अन्य नारीवादियों से अलग है कि उन पर गांधी जी का असर है। इस मायने में वह गांधीवादी नारीवादी है।

सच पूछा जाय तो सावित्री बाई फुले, रमा बाई, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा, प्रभावती, अरुणा आसफ अली, हंसा मेहता और कमला देवी चट्टोपाध्याय, उमा नेहरू जैसी अनेक स्त्री विमर्शकार रही है जिन्होंने स्त्री विमर्श की गांधीवादी परम्परा को समृद्ध किया है। ग्लोरिया की किताब उसकी अगली कड़ी है जिसमे भारतीय और पश्चमी दृष्टि का समावेश है।


वजूद औरत का : ग्लोरिया स्टायनेम [आलोचना], मू. 299, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली । आप इस पुस्तक को अमेज़न से ऑनलाइन ऑर्डर कर मँगवा सकते हैं।


विमल कुमार : वरिष्ठ कवि पत्रकार। कविता कहानी उपन्यास व्यंग्य विधा में 12 किताबें। गत 36 साल से पत्रकार। 20 साल से संसद कवर। चोरपुराण पर देश के कई शहरों में नाटक। ‘जंगल मे फिर आग लगी है’ और ‘आधी रात का जश्न’ जैसे दो नए कविता-संग्रह में बदलते भारत मे प्रतिरोध की कविता के लिए चर्चा में। आप लेखक से इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं— arvindchorpuran@yahoo.com


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