राजेन्द्र शर्मा
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के निकट गाँव हदिया। इस गाँव में 989 परिवारों वाले कथक बिरादरी का ख़ानदान, जिसके मुखिया ईश्वरी प्रसाद। यह ख़ानदान खेतीबाड़ी और मंदिरों में गायन नर्तन के सहारे अपनी आजीविका जुटाता। इस ख़ानदान की गायन-नर्तन की एक विशिष्ट शैली में धार्मिक कथा के पात्रों के अनुसार लय और शरीर की भाव भंगिमाओं सम्मिलित रहती, यही था इनका जीवन। समय काल की परिस्थितियाँ बदली। खेतीबाड़ी और गाँव हदिया छोड़ यह ख़ानदान इलाहाबाद से लखनऊ, भोपाल, कलकत्ता, रायगढ़, रामपुर के नबाबो के दरबारों में कथक नृत्य करता और इनके नाच से प्रसन्न हो नवाबों से मिलने वाली बख्शिसो से अपने परिवार का भरण पोषण करता। यही था इनका जीवन, यही थी इनकी पहचान। पीढ़ी दर पीढ़ी यह सिलसिला चलता रहा। उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की गयी कि उन्हीं के ख़ानदान की सातवीं पीढ़ी में जन्मा शिशु बृजमोहन नाथ मिस, दु:खहरण नाथ मिस्र, जिसके पिता अच्छन उस्ताद ने प्यार से बिरजू पुकारा, अपनी मेहनत, अपनी कला साधना और कथक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के दम पर अपने ख़ानदान की विरासत कथक नृत्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर अंतोगत्वा ताल मर्तड कथक सम्राट बिरजू महाराज।
ऐसे विराट व्यक्तित्व के ‘बिरजू महाराज’ के जीवन को ‘बिरजू महाराज मेरे गुरू मेरी नज़र में’ नामक पुस्तक में उनकी पाँच दशक से रही शिष्या शाश्वती सेन ने शब्दों में पिरो कर पाठकों को बिरजू महाराज के संघर्ष , उनकी साधना, उनकी उपलब्धियों से रूबरू कराते हुए महाराज के बहुआयामी व्यक्तित्व को जानने समझने का अवसर मुहैया कराया है।
बिरजू से मर्तड कथक सम्राट बिरजू महाराज बनने की प्रक्रिया आसान नहीं रही। माँ महादेई के गर्भ में प्रवेश करते ही माँ बीमार रहने लगी, पिता अच्छन उस्ताद की आठवीं संतान, जिस नंबर को परिवार में अशुभ मानने की धारणा हो, यानि जन्म से पहले ही अशुभ मान लिये शिशु का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि साढ़े नौ बरस की नन्ही उम्र में ही पिता का साया सर से हट जायें और परिवार के भरण भोषण की ज़िम्मेदारी उस शिशु के कंधों पर आ जायें परंतु जीवटता और जीवांता बिरजू महाराज की रंगों में बसी है, तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से दो-दो हाथ करते हुए उन्हें पराजित करना और अपने साधना के बल पर कथक का पर्याय हो जाना बिरजू महाराज की जीवटता की गहरी तस्दीक़ करता है।
अभिमन्यु की मानिंद बिरजू महारान ने कथक की आत्मा सम, ताल और परन को मानो गर्भ में ही साध लिया था। लखनऊ के गोलागंज मौहल्ले में पिता अच्छन उस्ताद अपने तालिम खाने में शिष्यों को कथक सिखाते तभी वहॉ घुटनों के बल सरकते हुए बालक बिरजू पहॅुच जाते और टुकुर-टुकुर देखते रहते वह पिता के नृत्य, उनकी भाव भंगिमाओं , सम और ताल पर उनके ठहराव को देखते-देखते छिप-छिप कर रियाज करते। इस सब से पिता बेखबर। एक दिन मॉ महादेई के जरिये पिता से सिफारिश करायी गयी कि बिरजू का नाज देख लें। पिता आवाक, कहॉ कि क्या बात करती हो इतना छोटा बच्चा क्या नाचेगा। ममता से भरी माँ ने गुजारिश की कि बच्चा जिद कर रहा है, एक बार देख लो। पिता ने बेटे का नाच देखा तो सम और ताल के ठहराव पर गदगद। इसके बाद तो 5-6 साल का बिरजू पिता के साथ नवाबों के यहॉ नाचने लगा। कथक बिरजू महाराज का जीवन उनकी सॉसें है। लेखिका ने बताया है कि रियाज करते समय वह तब तक रियाज करते जब तक पसीने से फर्श गीला न हो जाए।
कथक के अलावा पंतग बाजी, कंचे खेलना और सिनेमा देखना बिरजू का प्रिय शगल रहा है। 84 बरस के बिरजू में आज भी एक छात्र मुस्कुराता है, उन्हे आज भी बच्चों के साथ रहना, बतियाना और इलेक्ट्रानिक उपकरणों से खेलना भाता है। वे हर तरह के छोटे-बड़े ऑडियों, विडियों, रिकॉर्डिंग और विडियो गेम्स के उपकरण खरीदते रहते हैं। उनकी अलमारियॉ ऐसे उपकरणों, उनके तारों, बैटरियों, पेचकसों, टार्चों और ऐसी ही चीजों से भरी रहती है।
शिखर पर पहॅुच कर भी बिरजू महाराज की सहजता, उदारता काबिले गौर है। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक कुली जो धीरे से बिरजू पुकारे और महाराज पलट कर देखे, अरे यह तो बचपन का दोस्त कन्हैय्या है, तपाक से उसे गले लगा ले यह महाराज की यारबाशी ही है कि बचपन के दोस्त जगत, लल्लू, भगवति, नसीर, जयराम, मनु, हनुमान और जोगू हमेशा उनके दोस्त ही बने रहे। महाराज अपनी कला साधना के बल पर तमाम इनाम इक्राम पा चुके। बिरजू महाराज के लिए इनसे बडी दौलत आशीर्वाद और शुभकामनाऍ है। महाराज जी अकसर कहते है कि किसी आदमी की सबसे बड़ी दौलत उसे मिलने वाले आशीर्वाद और शुभकामनाऍ है। कोई उपहार या पैसा प्रेमपूर्ण शब्दों की इस दौलत की बराबरी नही कर सकता।
यह बिरजू महाराज का बहु आयामी व्यक्तित्व है कि वह कथक तक सीमित नही है, वह गायक, शिक्षक, चित्रकार तो है ही तबला, ठोलक व अन्य वादय यंत्र बखूबी बजाना जानते है।
लेखिका शाश्वती सेन ने 45 वर्षों से अधिक बिरजू महाराज के सानिध्य में रहकर जैसा देखा समझा, उसके आधार पर बिरजू महाराज की मुकम्मल तस्वीर प्रस्तावना के अलावा कुल दस अध्यायों में अंग्रेज़ी में उतारने का प्रयास किया है, जिसका हिंदी में बहुत सुंदर अनुवाद पत्रकार श्रीकांत अस्थाना ने किया है। हालांकि महाराज के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पक्ष छूट गये है। एक सौ पचहत्तर पृष्ठों में बेहतरीन काग़ज़ पर प्रिंट इस पुस्तक में बिरजू महाराज के जीवन के अंतरंग पलों के कुल 188 चित्र भी है जिसमें महाराज के स्नान करने, पिज़्ज़ा खाने, नृत्य करते समय उनकी भाव भंगिमाओं के चित्रों के साथ साथ गायिका जमना बाई के साथ ढोलक बजाते हुए चित्र भी है जो संग्रहणीय है। पुस्तक की साज सज्जा ग़ज़ब है जिसके कारण पुस्तक का मूल्य कुछ अखरता नहीं है।
बिरजू महाराज— मेरे गुरु मेरी नज़र में : शाश्वती सेन [जीवनी], नियोगी बुक्स, दिल्ली, मू. 995 रुपये। आप इस पुस्तक को अमेज़न से ऑनलाइन ऑर्डर कर मँगवा सकते हैं।
राजेन्द्र शर्मा : सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में जन्म. 1984 -1985 में नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, दिनमान के लिए रिपोर्टिग तत्पश्चात उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर विभाग में नौकरी, वर्तमान में वाणिज्य कर अधिकारी खण्ड -09 नोएडा के पद पर कार्यरत। इस बीच कुछ कवितॉए, कुछ लेख, कुछ संस्मरण विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा त्रैमसिक साहित्यिक पत्रिका शीतल वाणी के सहायक सम्पादक । भारतीय शास्त्रीय संगीत में विशेष रूचि व लेखन. राजेंद्र जी से इस ईमेल पते पर संपर्क किया जा सकता है— pratibimb22@gmail.com