राकेश मिश्र प्रो. जी. गोपीनाथन की पहचान एक वरिष्ठ भाषा वैज्ञानिक, अनुवादक और नवोन्मेषी शिक्षाशास्त्री की रही है । महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रूप में उन्होंने भाषा प्रौद्योगिकी और अनुवाद प्रौद्योगिकी जैसे विषय शुरू कर हिन्दी भाषा के परंपागत अध्ययन-अध्यापन को जैसे एक नई उड़ान दी थी । एक अनुवादक …
Month: May 2020
पल्लवी प्रकाश I seem to have loved you in numberless forms, numberless times…In life after life, in age after age, forever. –Tagore रवीन्द्रनाथ टैगोर यहाँ प्रेम की जिस शाश्वतता की बात करते हैं, उसी की अगली कड़ी है सोलमेट. सोलमेट, यानी आत्मा का अनिवार्य साथी. वह संबंध, जहाँ आत्मा का आत्मा से सीधा जुड़ाव हो …
सारंग उपाध्याय एक रचना अपने में संपूर्ण है. एक सृजन हर प्रतिक्रिया से परे. एक सुंदर फूल खिलने में पूर्ण है तो एक बहती नदी का सौंदर्य उसके होने में. स्वयं में पूर्ण. एक कविता संपूर्ण जीवन को लेकर अभिव्यक्त हुई. जीवन से भरा मन और भावों से भरा जीवन. जीवन किताबों में कहां?कविता जीवन …
अंकित नरवाल “आदिवासी सिर्फ बैंक है, जिसने जंगल में व्यापारियों के पैसा कमाने के लिए जंगल और जमीन की अमानत सँजो रखी है, नेताओं के वोट जुटा रखे हैं। आठ करोड़ आदिवासियों की हिमायत का दम भरने वाली सरकार को तो अब सिर्फ उद्योगपतियों का हित दिखता है। बड़े-बड़े कारखाने दिख रहे हैं। वह उदारवाद …
इरा टाक मल्लिका एक ऐसी आजाद, बुद्धिजीवी स्त्री की दास्तान है जिसने सामाजिक विडम्बनाओं के दिल दहला देने वाले घेरों के बीच अपने लिए अपने सामाजिक मूल्य स्वयं रचे। एक अलग बागीपन, एक अलग आजाद खयाली, एक अलग निश्छलता, एक अलग आत्मविश्वास। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के भारत में ऐसी स्त्री की …
विमल कुमार कहा जाता है कि ‘उपन्यास’ की अवधारणा दरअसल औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिम में विकसित हुई थी और वहां से यह भारत में आई थी लेकिन भारत में ‘गल्प’ और ‘वृतांत’ या ‘आख्यान’ की परंपरा में यह उपन्यास मौजूद रहा। आज हम जिस रूप में उपन्यास की चर्चा करते हैं उस उपन्यास शब्द …
राजेन्द्र शर्मा अपने जीवन के 86 बसंत देख चुके मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड का आज जन्मदिन है। बच्चों जैसी उन्मुक्तता का जीवन जीने वाले रस्किन को प्रकृति और बच्चे सबसे प्रिय रहे है। छोटी छोटी गोल मटोल ऑखों में गजब की चंचलता और नटखटपन वाले रस्किन हर बार अपना जन्मदिन दूरदराज से आये बच्चों के …
सारंग उपाध्याय मनुष्य सभ्यता के पास विस्थापन के दर्द पुराने हैं और पलायन के घाव आज भी हरे. जो उजड़कर बसे उनकी जमीन खो गई और जो बसे-बसाए थे वे अपने ही घर में बंजारे हो गए. यह बंजारापन आज भी बदस्तूर है. कोई आपसे ये पूछे की आप कहां से हैं—तो बेधड़क कह देना हम …
सिनीवाली लियो तोलस्तोय की बहुचर्चित कृति ‘युद्ध और शांति’ के प्रकाशन के डेढ़ सौ साल हो चुके हैं। इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी न तो इसकी लोकप्रियता कम हुई है और न ही इसकी प्रासंगिकता। उनकी विभिन्न कृतियों में उनके दार्शनिक विचारों ने हर पीढ़ी को प्रभावित किया है। तोलस्तोय अपने जीवन …
शशिभूषण द्विवेदी ‘पुस्तकनामा’ के स्तम्भ ‘इन दिनों पठन-पाठन’ के लिए कथाकार शशिभूषण द्विवेदी से हमने उनके द्वारा इन दिनों पढ़ी जा रही किताबों पर प्रतिक्रियाएँ मांगी थी और उन्होंने एक बड़ी समीक्षा ज्ञानपीठ से प्रकाशित सुरेश गौतम के उपन्यास ‘प्रेम कथा : रति जिन्ना’ पर लिखने का वादा किया भी था। दिनांक 22 अप्रैल को …
उमा शंकर चौधरी हिन्दी कविता में जिन कवियों के यहां राजनीतिक चेतना बहुत मुखर रूप में आयी है वरिष्ठ कवि मदन कश्यप का नाम उनमें प्रमुख है। राजनीति उनकी कविता का मुख्य स्वर है। इसलिए जिन कविताओं में वे बहुत मुखर होकर राजनीतिक चिंताओं को नहीं पकड़तें हैं वहां भी राजनीतिक दुष्परिणाम प्रकारान्तर से जरूर …
पल्लव आत्मकथा की कसौटी क्या है? आत्मकथा कोई क्यों पढ़े? क्या उस सम्बंधित व्यक्ति के जीवन में ऐसा कुछ है जो पाठक को अपने लिए जानना आवश्यक लगता है इसलिए वह आत्मकथा पढ़े? आत्मकथा के मूल्यांकन में ये सभी सवाल खड़े होते हैं। और इनका कोई सर्वसम्मत जवाब नहीं खोजा जा सकता। जवाब कोई है …
विमल कुमार हिंदी साहित्य में इतिहास और पुराणों के आधार पर उपन्यास लिखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य यह है कि किसी रचना में उस दौर के इतिहास का इस्तेमाल करते हुए हैं उसमें एक नए पात्र और नये नायक का निर्माण करना जो इतिहास में वर्णित नहीं है …
लीलाधर मंडलोई “इतना भी कवि नहीं मैं कि तुझमें ढूंढूं अपनी प्रागैतिहासिक प्रेमिकाएं न इतना अंधविश्वासी कि बांधू तुझे किसी पिछले जन्म के उत्तरीय से मगर कुछ तो है कि स्वयं को देह और इतिहास के बाहर देखने लग जाता हूँ” (यक्षिणी पृ.18) हे कवि! यह चेतनावस्था के उदगार हैं न? देह और इतिहास से …