सारंग उपाध्याय
कला उम्मीदों का सवेरा है. कला के औजार ही मनुष्यता को निखारते हैं और उसकी आत्मा संवारते हैं. कला इतिहासकार आर्नल्ड हाउजर ने ठीक कहा है- ”कला उन्हीं की मदद करती है जो उससे मदद मांगते हैं, जो अपने विवेक के संशय, अपने संदेहों और अपने पूर्वग्रहों के साथ उसके पास आते हैं. वह गूंगे के लिए गूंगी है, उसी से बोलती है, जो उससे सवाल करते हैं.”
विश्व प्रसिद्ध चित्रकार विसेंट वॉनगॉग का समग्र जीवन ही कला को समर्पित है. जैसा जीवन वैसी कला. कला से झांकता एक कलाकार का जीवन. वॉन गॉग ने अपने जीवन को कला के औजारों से गढ़ा, तराशा, और आकार दिया है.
पश्चिमी चित्रकला के इतिहास को गहरे से प्रभावित करने वाला यह सितारा महान डच पेंटर अपने जीवन की जिज्ञासा, उत्कंठा, बेचैनी, भटकाव, वैचारिक द्वंद्व, सरोकार, सार्थकता से जुड़े सवाल लेकर कला के पास पहुंचा है. वॉन गॉग ने जीवन को वैसे ही ढलने दिया जैसा उसके भीतर की कला उससे चाहती थी. यही वजह है वॉन गॉग की पेंटिंग में उसका जीवन दिखाई देता है. जिस समाज, लोगों और मूल्यों से वे जुड़ा रहा वह सबकुछ उसके चित्र बयां करते हैं. जो विसेंट को समझना चाहते हैं वह उनकी पेंटिंग तक पहुंचे. कोयला मजदूर, उनका जीवन-संघर्ष, उदार प्रकृति, प्रेम और संगीत रचता जीवन सबकुछ विसेंट के भीतर के दृश्य हैं जिसका संगीत आज भी मुधर है.
एक तरह से विसेंट की संपूर्ण जीवन यात्रा कला की दुनिया में उम्मीदों का सूरज है. आधुनिक कला जगत में एक मिथक बन चुके वॉन गॉग की जिंदगी सालों से कलाकारों और रचनाधर्मियों के लिए रौशनी बनी हुई है. वह उन्हें ऊर्जा से भरती है. संघर्षों के प्रति देखने का दृष्टिकोण देती है. हताशा और निराशा के क्षणों में शक्ति के रूप में सहारा बनती है.
लेकिन कलात्मक रौशनी, उत्साह और ऊर्जा का प्रतीक बना वॉन गॉग का यह जीवन केवल एक सामान्य जीवन भर नहीं है जहां चीजें एक सरल रेखा में हैं. यह ऐसा जीवन भी कतई नहीं है जहां ना आरोह है ना अवरोह. ना कोई उतार ना चढ़ाव, ना विघटन ना विस्थापन, बल्कि इसके ठीक उलट यह एक ऐसा जीवन है जिससे किस्मत रूठी हुई है. अस्तित्व को बचाए रखने की जद्दोजहद है, कठिन संघर्ष है, बेरोजगारी है, अभाव है, अवसाद है, मानसिक संताप है, प्रेमिकाओं से बिछड़ना है, प्यार के बदले नफरत है, अनचाहे की स्वीकृति है, मन मसोसकर अंगीकार किया हुआ यथार्थ है. सबकुछ निराशा में डूबा हुआ.
वॉन गॉग के इस जीवन में उपेक्षा और अनिष्ट के घने बादल सदा मंडराते हैं. इस कलाकार की मुठभेड़ जितनी खुद से है उतनी ही उन उपेक्षाओं, तिरस्कारों और उन व्यग्रताओं से है जिसके प्रति दूर-दूर तक कोई संवेदना, सहानुभूति और ममत्व नहीं दिखलाई पड़ता सिवाय एक छोटे भाई थियो से मिले प्रेम, सरंक्षण और नि:स्वार्थ स्नेह के. जो उसे छांव देता है.
विसेंट की जीवन यात्रा एक अभागे कलाकार की यात्रा दिखाई पड़ती है. कलात्मक सुख की तलाश में भटकता जीवन, अप्रत्याशित, दुख-तकलीफों, बेचैनियों से भरा हुआ. विसेंट के पास जिंदगी के कई रंग हैं और हर एक रंग में हजार जिंदगी. टूटे ख्वाबों की कूची. दर्द-दुख के शेड्स, जिंदगी से बेपनाह मुहब्बत के किस्से.
बावजूद यह जीवन छोटा, लेकिन विराट है.
20वीं सदी की आधुनिक चित्रकला पर वॉन गॉग की कूची की ऐतिहासिक और अमिट छाप है. नीदरलैंड के इस चित्रकार की पेंटिंग जितनी क्रांतिकारी रही उतना ही जीवन भी. इसी जीवन पर लिखा इरविंग स्टोन का उपन्यास लस्ट फॉर लाइफ दुनिया के चर्चित उपन्यासों में से है.
लस्ट फॉर लाइफ की कल्पना के साकार होने और उसके प्रकाशन तक पहुंचने की कथा भी एक व्यथा ही है. एक किताब के इतिहास तक पहुंचने की संघर्ष यात्रा है. वॉन गॉग के विराट जीवन को किताब के पन्नों में समाहित करने की प्रक्रिया आसान नहीं रही है.
वह साल 1926 था जब यूनवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, बर्कले से स्नातक युवक इरविंग स्टोन पेरिस में एक गुमनाम डच पेंटर विसेंट वॉन गॉग की पेंटिंग एग्जीबिशन देखने पहुंचा. स्टोन उस समय नाट्य लेखन की ट्रेनिंग के लिए 15 महीने पेरिस में था. लेकिन जब इस डज पेंटर की पेंटिंग्स देखकर लौटा तो दिलो-दिमाग से वॉन गॉग को निकाल नहीं पाया. तस्वीरों के रंग भीतर चढ़ चुके थे और चित्रकार का जीवन आत्मा को उद्वेलित करने लगा.
बस यहीं से शुरू हुई लस्ट फॉर लाइफ की यात्रा. इरविंग ने अमेरिका में विेसेंट के जीवन को दुनिया के सामने लाने की ठानी. लेकिन यह दुर्गम था. इरविंग के लिए यह महाजीवन विश्व मानचित्र पर उकेरना आसान नहीं था. पैसों की तंगी, आर्थिक हालात, भरोसा इरविंग के सामने चुनौती थे. उन्होंने लगातर छह अपराध कथाएं लिखीं और पांच कहानियां बेचकर विसेंट के जीवन पर यूरोप में रहकर छह माह शोध किया. लस्ट फॉर लाइफ को इरविंग अपने हद्य से सींचा. पांडुलिपी तैयार थी लेकिन प्रकाशक नहीं.
यह विराट जीवन यात्रा शुरुआत में कठिनाइयों भरी रही. यह तथ्य आश्चर्य प्रकट करता है कि विसेंट के संवदेना से भरे जीवन को चंद पन्नों में समेटे पूरे तीन साल तक प्रकाशकों की चौखट-चौखट घूमें. नतीजा सिफर रहा. लगता था दुर्भाग्य मरने के बाद भी वॉन गॉग का पीछा नहीं छोड़ना चाहता था.
कुल 17 प्रकाशकों ने विसेंट की जीवनी को खारिज किया. लेकिन वह साल 1934 था और इरविंग के प्रति प्रेम रखने वाली ज्यां फैक्टर ने 18वे प्रयास में इसे प्रकाशन हेतु इसे स्वीकार कर लिया. एक तरह से यह विसेंट की जीत थी. सूरज की रौशनी आकाश में छा गई और सितंबर 1934 में पुस्तक प्रकाशित होकर अंतर्राष्ट्रीय बेस्ट सेलर बन गई. (पुस्तक के अंतिम पृष्ठ लिखे वृतांत के अनुसार)
इस किताब के छपते ही इरविंग स्टोन के लिए संसार नया था. इस तरह लस्ट फॉर लाइफ दुनिया के सामने थी और वॉन गॉग का जीवन अपनी तस्वीरों के साथ लोगों के दिलों में उतर रहा था. वॉन गॉग की जीवनी के बाद स्टोन ने जेसी बेंटन, जॉन चार्ल्स फ्रेमोंट इमोर्टल लाइफ-1944, इसके बाद माइकलएंजलो, सिगमंड फ्रायड के जीवन से संबंधित उपन्यास लिखे.
अमेरिकी लेखक इरविंग स्टोन वॉन गॉग की इस जीवनी का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद, कवि, लेखक, चित्रकार और अनुवादक अशोक पाण्डे ने किया है. संवाद प्रकाशन से विश्व ग्रंथमाला सीरीज के अंतर्गत प्रकाशित इस पुस्तक का पहला संस्करण साल 2006 में आया. अशोक पाण्डे ने वॉन गॉग की जीवनी के अलावा लारा एस्कीवेल के स्पेनिश उपन्यास का मूल अनुवाद, चॉकेलट के लिए पानी, चर्चित है. इसके अतिरिक्त येहूदा आमीखाई और फर्नांदो पेसोआ पर पुस्तिकाएं प्रकाशित की हैं.
अनुवाद का बड़ा कार्य अशोक जी के मार्फत हिंदी में आया है लेकिन वॉन गॉग के जीवन पर आधारित लस्ट फॉर लाइफ हिंदी साहित्य को एक भेंट है. यह एक तरह से साहित्य की संपदा जिस पर केवल लेखकों अथवा कलाकारों का नहीं हर व्यक्ति का अधिकार है.
लस्ट फॉर लाइफ में चित्रित विंसेंट के जीवन के बारे में बहुत कुछ साझा करने की आवश्यकता नहीं है. किताब में विसेंट की हर पेंटिंग की एक घटना है और यदि आप इसे इंटरनेट पर देखते चलेंगे तो आप वॉन गॉग के जीवन के और करीब पहुंचेंगे. तकरीबन 1 दशक तक फैले कलात्मक जीवन में वॉन गॉग ने तकरीबन 2100 आर्ट वर्क और 860 ऑइल पेंटिंग्स बनाई हैं.
एक बात और पाठक यदि किताब के जरिए ही वॉन गॉग के भव्य जीवन का साक्षात्कार करेंगे तो ही उनके लिए श्रेयस्कर होगा. किताब किन कठिनाइयों में सामने आई इसकी एक झलक साझा हुई है. बावजूद इसके विसेंट के जीवन का सबसे उजला पक्ष छोटे भाई थियो के रूप में दिखाई देता है. यह पक्ष प्रेम और स्नेह की वह डोर है जिसकी झलक इतिहास में भी दूर-दूर तक नहीं दिखलाई पड़ती.
मां-बाप से दूर अपने जीवन के मायने तलाश रहे विंसेंट के जीवन का सारा भार थियो ने उठाया. वह उसका आर्थिक आधार बना. जब सारी दुनिया विसेंट के खिलाफ थी और उपेक्षित सा अंधेरों में भटक रहा था तब छोटा भाई थियो ही उसका उजियारा था. उसे संभालने, सहेजने वाला, उसके हर सही या गलत फैसले में साथ रहने वाला.
उपन्यास की रोमांचक, किंतु दुखभरी और जिंदगी की ऊर्जा से लबरेज इस यात्रा में मुझे थियो एक महान व्यक्ति के रूप में नजर आया. उसका प्रेम, स्नेह और विसेंट के नाजुक, संवेदना से भरे मन में चित्रकार के अंकुर को विशाल वटवृक्ष बनाने में थियो जैसे माली कला के इतिहास में दूसरे कहीं नहीं मिलेंगे.
यही वजह थी कि इस जीवनपरक् उपन्यास को पढ़ने के बाद लंबे समय तक जहां मैं वॉन गॉग की जिंदगी में मंडराता रहा लेकिन थियो को लेकर मेरा मन दुख और संवेदना एक अलग वितान रच रहा था.
मैंने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था-
एक जिंदगी के कितने रंग. कई रंगों में हजार जिंदगी.
विन्सेंट वॉन गॉग तुम्हारी जिंदगी एक रंग-बिरंगी तस्वीर की तरह अंदर उतर गई.
तुम्हारी तस्वीर अब जिंदगी के साथ रहेगी.
लेकिन
मौत का हिस्सा कहां शामिल करुंगा?
लस्ट फॉर लाइफ ऑर लव टू डेथ..!
इतिहास जानता है कि तुम्हारे हिस्से में क्या आया और थियो के क्या?
तुम्हारी मौत एक सन्नाटा छोड़ जाती है लेकिन थियो की मृत्यु सवालों से लिपटा एक गहरा दुख जिसकी कोई थाह नहीं..!
इन कब्रों की खामोशी उस किताब के पन्नों में फडफड़ाती है जिसे पढ़ने वाले हर बार एक नये वॉग गॉग के साथ होंगे..
बहरहाल, फिलहाल इतना ही की समीक्षा किताब की हो सकती है, विसेंट वॉन गॉग जैसे जीवन की नहीं. 30 मार्च को इस महान कलाकार का जन्मदिन था. उन्हें विदा हुए एक सदी बीत चुकी है.
लस्ट फॉर लाइफ : इरविंग स्टोन, अनुवादः अशोक पांडे, मू. 175/-, संवाद प्रकाशन, मेरठ। आप पुस्तक को यहाँ samvad.in@gmail.com ईमेल कर मँगवा सकते हैं।
सारंग उपाध्याय : युवा पत्रकार और लेखक. पिछले 13 सालों से मीडिया में. इंदौर, मुंबई, भोपाल, नागपुर, औरंगाबाद जैसे शहरों में पत्रकारिता. वेबदुनिया, दैनिक भास्कर, लोकमत-समाचार, नेटवर्क-18 और अमर-उजाला जैसे मीडिया संस्थानों में नौकरी. इस समय दिल्ली/नोएडा राष्ट्रीय समाचार पत्र अमर-उजाला की वेबसाइट में डिप्टी न्यूज एडिटर. कविताएं कृति ओर, अक्षर-पर्व, वागर्थ में. कहानियां, परिकथा, वसुधा, साक्षात्कार, मंतव्य, चिंतन-दशा जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित. शीघ्र नई कहानी कथादेश में. साल 2018 में कहानियों के लिए म.प्र हिंदी साहित्य सम्मेलन का ‘माधुरी अग्रवाल स्मृति’ ‘पुनर्नवा’ नवलेखन पुरस्कार. 2013 में डॉ. राममनोहर लोहिया के साथी समाजवादी चिंतक, लेखक/पत्रकार बालकृष्ण गुप्त के लेखों पर आधारित किताब “हाशिए पर दुनिया” ( पुस्तक राजकमल प्रकाशन से) का संपादन. समसामयिक विषयों पर लेख और फिल्म समीक्षाएं लगातार अखबारों और वेबसाइट में प्रकाशित. इनसे आप इस ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं— sonu.upadhyay@gmail.com