शशिभूषण द्विवेदी
‘पुस्तकनामा’ के स्तम्भ ‘इन दिनों पठन-पाठन’ के लिए कथाकार शशिभूषण द्विवेदी से हमने उनके द्वारा इन दिनों पढ़ी जा रही किताबों पर प्रतिक्रियाएँ मांगी थी और उन्होंने एक बड़ी समीक्षा ज्ञानपीठ से प्रकाशित सुरेश गौतम के उपन्यास ‘प्रेम कथा : रति जिन्ना’ पर लिखने का वादा किया भी था। दिनांक 22 अप्रैल को उन्होंने दो लेख भेजे थे जिसमें एक ‘महामारी में हत्या’ उसी दिन ‘पुस्तकनामा’ में पोस्ट किया गया था।आज यह दूसरा लेख प्रकाशित कर रहे हैं। हम नहीं जानते कि उन्होंने इसके बाद कुछ और लिखा या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि उनका लिखा और भेजा यह आलेख-निधि हमारे पास है। इन दिनों में लेखक कैसी बेचैनी और समाज के प्रति चिंता ले कर जी रहा था ये दोनों लेख कुछ सूत्र छोड़ जाते हैं। हम विनम्रता से उन्हें स्मरण करते हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता ओरहान पामुक का मशहूर उपन्यास है— स्नो। यह उपन्यास गैर पश्चिमी दुनिया की धार्मिक और आध्यात्मिक पहचान और आधुनिकता के द्वंद्व को लेकर एक लंबी बहस है। यों तो यह एक जटिल प्रेम कहानी है— नायक ‘का’ और नायिका ‘इपेक’ की। लेकिन इसे और भी जटिल बनाती है तुर्की के बर्फीले कार्स शहर में फैली युवतियों में आत्महत्या की महामारी। का एक कवि है और अपनी मां की मृत्यु के बाद तुर्की आता है। मां के अंतिम संस्कार के बाद वह उसे अपने कॉलेज के जमाने की प्रेमिका इपेक की याद आती है और वह एक पत्रकार के रूप में कार्स शहर जाता है जहां युवतियों में आत्महत्या की महामारी फैली हुई है। इपेक का तलाक हो चुका है और वह अब भी उतनी ही खूबसूरत है। का इपेक को बताता है कि वह सिर्फ आत्महत्याओं की महामारी की रपट करने यहां आया है। हालांकि इपेक जानती है कि वह सिर्फ और सिर्फ उसके लिए यहां आया है। अजीब विडंबना है कि इपेक का तलाक हो चुका है लेकिन उसका पति मुहतर फिर उससे निकाह करने को उत्सुक है और इधर उसका प्रेमी का भी आ चुका है।
का आत्महत्याओं की जड़ों को खोजने में जुट जाता है। इस खोज के दौरान उसे एक नई दुनिया मिलती है। कट्टर इस्लामवादियों, धर्मनिरपेक्ष आधुनिकतावादियों और नास्तिकों के अंतरविरोध की दुनिया। इस्लामवादी चुनाव जीतने के करीब हैं। वे खुद को पश्चिमी नजरिए से देखे जाने के खिलाफ हैं। तुर्की का आधुनिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र शिथिल पड़ रहा है। असुरक्षा में लोग अपनी आस्थाओं और रवायतों से और गहरे जुड़ रहे हैं। का पाता है कि बड़ी संख्या में युवतियों की आत्महत्या के पीछे भी एक बड़ा कारण है कि उन्हें सिर ढंकने को कहा जा रहा है। का अपनी खोज में भी लगा है और उधर उसके पीछे उसकी जासूसी भी हो रही है। अजीब दहशत का माहौल है। इस बीच एक भयानक तूफान आता है और कार्स शहर को बाहरी दुनिया से काट देता है। फिर एक दुस्साहस भरे भयानक नाटक का मंच तैयार होता है जिसे लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है। यहां जो राजनीतिक द्वंद्व हैं सो हैं ही, मीडिया की भूमिका पर भी एक करारा व्यंग्य है।
उपन्यास के कुछ हिस्से कॉमिक रिलीफ की तरह हैं। ‘औरतें खुदकुशी क्यों करती हैं?’ सुनय के सवाल के जवाब में कदीफे कहती है— ‘अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए।’ मर्द तब खुदकुशी करता है जब उसके पास बचाने के लिए कुछ नहीं रह जाता है। इस्लाम में खुदकुशी पाप है तब इस्लाम के नाम पर खुदकुशी एक लंबी बहस बन जाती है। टीवी पर इस नाटक को लाइव यह दिखाने के लिए किया जाता है कि सिर ढंकने के दबाव की वजह से युवतियों खुदकुशी कर रही हैं और यह बात यूरोपीय देशों को अच्छी लगेगी। जबकि कदीफे खुद युवतियों को सिर ढंकने के अपने अधिकार के लिए उकसा रही होती है।
इस्लामी दुनिया में धर्म, आस्था, पहचान और आधुनिकता के द्वंद्व का यह एक मर्मस्पर्शी दस्तावेज है।
स्नो: ओरहान पामुक, पेंगुइन इंडिया से प्रकाशित
शशिभूषण द्विवेदी : (26 जुलाई, 1975-7 मई, 2020)। पेशे से पत्रकार। कहानी-संग्रह ‘ब्रह्महत्या तथा अन्य कहानियाँ’ और ‘कहीं कुछ नहीं’ प्रकाशित। कुछ देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद। भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार।