सिनीवाली
लियो तोलस्तोय की बहुचर्चित कृति ‘युद्ध और शांति’ के प्रकाशन के डेढ़ सौ साल हो चुके हैं। इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी न तो इसकी लोकप्रियता कम हुई है और न ही इसकी प्रासंगिकता। उनकी विभिन्न कृतियों में उनके दार्शनिक विचारों ने हर पीढ़ी को प्रभावित किया है। तोलस्तोय अपने जीवन काल में मिथक बन गए थे और यूरोप से लेकर अमेरिका तक उनके शिष्य व अनुयायी फैले हुए थे। महात्मा गांधी ने भी तोलस्तोय से प्रभावित होने की बात स्वीकार की थी।
तोलस्तोय के दौर में लगभग पूरी दुनिया में पतनशील सामंतवाद और साम्राज्यवाद के बीच पूंजीवाद के कदम मजबूत हो रहे थे। पूंजीवाद की विस्तारवादी नीतियों के कारण दुनिया भर में युद्ध के बादल फैले हुए थे। ऐसे ही समय नेपोलियन ने रूस पर हमला किया।
वास्तव में मानव सभ्यता के विकास के साथ ही लड़ाई और उसके बाद युद्ध की शुरूआत हो गयी थी। हालांकि मानव शांति की तलाश भी करता रहा है। युद्ध और शांति के बीच के आपसी संबंधों पर लंबे समय से विचार होते रहे हैं और इस विषय पर कई दार्शनिकों ने भी अपनी राय सामने रखी है।
ऐसे ही जटिल विषय पर केंद्रित महा-उपन्यास ‘युद्ध और शांति’ की रचना की गयी है। लेकिन यह सिर्फ युद्ध की पृष्ठभूमि पर केंद्रित कृति ही नहीं है बल्कि इसमें मानव जीवन के विहंगम चित्र उभर आए हैं। रूस की कहानी होते ही भी इसके चरित्र में सार्वभौमिकता और भव्यता है जिसमें विडंबनाओं के साथ ही यातनाओं और दुखों का भी मार्मिक चित्रण हुआ है जो पाठकों को अंत तक बांधे रखता है। इसमें जीवन से जुड़े तमाम सवाल भी किए गए हैं और उनका मानतावादी उत्तर देने का भी प्रयास किया गया है।
वर्ष 1805 से 1820 के बीच रूस पर नेपोलियन के आक्रमण की पृष्ठभूमि में रचित ‘युद्ध और शांति’ युद्ध तथा शांति की कहानी नहीं होकर लोगों की संवेदनाओं, उनकी भावनाओं और संबंधों का ग्रंथ है जिसमें आम किसानों से लेकर कुलीन समाज के द्वंद्वों को उभारा गया है। 19वीं सदी के शुरुआती दौर के रूसी समाज का सूक्ष्म विवरण है जिसमें एक ओर विलासिता है, वहीं दूसरी ओर आम किसानों की दारुण स्थिति है जिनके परिवारों से लाखों सैनिक आते हैं और युद्धों में मरते-मारते हैं।
वस्तुत: यह मनुष्यों और उसके विचारों के साथ ही समाज की कहानी है जिसमें युद्ध की पृष्ठभूमि में सत्तावादी इतिहास पर विमर्श करते हुए सामाजिक इतिहास और व्याख्या को भी समाहित किया गया है।
रूस पर नेपोलियन के हमले से मास्को सहित पूरे देश में उथल-पुथल की स्थिति होती है। ऐसे में कुलीन समाज के साथ-साथ स्त्री और पुरुषों के बीच के संबंधों के द्वंद्व को भी उभारती इस कृति में प्रेम को भी एक अनोखे रूप में पेश किया गया है। इस कृति में मनुष्य की संवेदनाएं और संवेदनहीनता दोनों उभर कर सामने आए हैं। एक ओर आम लोग हमले की पीड़ा झेल रह हैं वहीं उन्हें अन्य तरह की सामाजिक और राजनीतिक परेशानियां भी घेर रखी हैं।
इस अनिश्चितता भरे माहौल में कई पात्र ऐसे हैं जो जीवन की खोज में जुटे हैं। यह खोज कभी उन्हें देशभक्ति की ओर प्रेरित करती है तो कभी अपने परिवार की ओर। ऐसे में लेखक जीवन और प्रेम को एक नए रूप से परिभाषित करते हैं। वह आदर्श प्रेम की बात नहीं करते लेकिन इसमें एक हद तक समर्पण और प्रतीक्षा पर जोर देते नजर आते हैं। नताशा और पिएरे उन्हीं चरित्रों में से हैं जो अपना प्रेम पाने के लिए प्रतीक्षारत हैं। ढेरों पात्रों के बीच ऐसे चेहरे भी सामने आते हैं जो अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए धनी स्त्रियों से शादी पर जोर देते हैं वहीं ऐसे भी पात्र हैं तो मां को खुश रहने की खातिर तरह तरह के समझौते करने को भी तैयार दिखते हैं। निकोलस जैसे पात्र भी हैं जो अपने दिवंगत पिता की ख्याति पर कोई आंच नहीं आने देना चाहता। इसलिए वह अपने सिर पर कर्ज के बोझ को भी सार्वजनिक नहीं करता। दूसरी ओर प्रिंसेस मेरी जैसी चरित्र भी है जो निकोलस की समस्याओं को नजदीक से देख रही है और उसके व्यवहार में आए बदलाव का कारण भी समझ रही है और लंबी और तनावपूर्ण प्रतीक्षा के बाद निकोलस की जीवनसंगिनी बनती है।
युद्ध के कारण पांच सामंती परिवारों और उन पर आश्रित लोगों की कहानी को समेटते हुए इस महान रचना में तोलस्तोय दिखाते हैं कि मास्को के आसपास के किसानों ने नेपोलियन की सत्ता को स्वीकार नहीं किया। हालांकि उसने हमलावरों का प्रतिरोध नहीं किया लेकिन उनकी दासता भी नहीं स्वीकार की। यहां लेखक शासक वर्ग और आम जनता के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींचते नजर आते हैं और जताते हैं कि जनता का व्यवहार सहज रूप में ऐसा ही होता है।
तोलस्तोय की रचनाओं में अपने युग का असर साफ दिखता है। वह एक ओर सामाजिक व्यवस्था की समीक्षा करते हैं वहीं वह राज-व्यवस्था पर भी गौर करते नजर आते हैं। वह अचानक स्थिति में बदलाव की बात नहीं करते और उनका मानना रहा है कि नैतिक उत्थान के माध्यम से ही व्यवस्था में बदलाव संभव हो सकता है। उनकी अन्य रचनाओं की तरह इस विशाल कृति में भी सौंदर्यबोध के साथ नैतिकतावाद परिलक्षित होता है।
इस कृति में तोलस्तोय का आध्यात्मिकऔर दार्शनिक पक्ष भी उभर कर सामने आता है। युद्धबंदी पिएरे के जरिए वह संदेश भी देते हैं कि प्रभु ने मनुष्य को खुश रहने के लिए बनाया है। आनंद मनुष्य के अंदर ही है और दुख अभाव से नहीं बल्कि जीवन की कृत्रिमता से है। अंतत: जीवन ही सबकुछ है और जीवन ही ईश्वर है। जीवन से प्रेम करने का मतलब है कि प्रभु से प्रेम करना। ईश्वर से प्रेम करना सबसे आसान और मुश्किल काम है। पिएरे नामक किरदार के माध्यम से ही लेखक कहते हैं कि ईश्वर हमारे बीच है और सब कुछ कितना सरल तथा साफ है।
तोलस्तोय यह भी कहते हैं कि यदि हम स्वीकार कर लें कि जीवन सिर्फ तर्क से चल सकता है तो हम जीवन की संभावना को ही नकार देते हैं। उनकी इन बातों से ऐसा लगता है कि उपनिषदों में वर्णित गूढ़ दर्शन को वह सरल शब्दों में पेश कर रहे हैं।
इन सभी वजहों से ‘युद्ध और शांति’ एक उपन्यास मात्र नहीं रह जाता बल्कि पाठकों को सोचने को विवश भी कर देता है। पढ़ने के लंबे समय बाद तक उसके पात्रों का प्रभाव पाठकों पर चेतन व अवचेतन रूप में बना रहता है।
युद्ध और शांति : लियो तोलस्तोय [उपन्यास]
सिनीवाली : मनोविज्ञान विषय में स्नातकोत्तर, इग्नू से रेडियो प्रसारण में पीजीडीआरपी कोर्स। बचपन से गाँव के साथ साथ विभिन्न शहरों में प्रवास। कहानी संग्रह ‘ हंस अकेला रोया ‘ प्रकाशित, कई साझा संग्रहों में कहानियां शामिल। हंस, आजकल, कथानक, पाखी, कथादेश, परिकथा, लमही, इन्द्रप्रस्थ भारती, बया, निकट, माटी, कथाक्रम, विभोम स्वर, अंतरंग, दैनिक भास्कर, प्रभात खबर, दैनिक जागरण, आदि पत्र पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। हिंदी समय, गद्यकोश,समालोचन, बिजूका, जानकीपुल, शब्दांकन, स्त्रीकाल, पहली बार, लोकविमर्श, लिटरेचर प्वाइंट, रचना प्रवेश,साहित्यिकी ब्लाग, स्टोरी मिरर, प्रतिलिपि, नोटनल आदि ब्लॉग पर भी कहानियाँ प्रकाशित। सार्थक ई-पत्रिका में कहानी प्रकाशित। अट्टहास एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य प्रकाशित। नोटनल पर ई-बुक प्रकाशित, ‘ सगुनिया काकी की खरी-खरी’। ‘करतब बायस’ कहानी का नाट्य मंचन हिन्दी अकादमी, दिल्ली के द्वारा। हिंदी रेडियो, शिकागो से कहानी वाचन। लेखिका से आप इस ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं—siniwalis@gmail.com