रस्‍किन बॉन्‍ड को मसूरी से मोहब्‍बत हैं

मित्र को भेजें

राजेन्‍द्र शर्मा

अपने जीवन के 86 बसंत देख चुके मशहूर लेखक रस्‍किन बॉन्‍ड का आज जन्‍मदिन है। बच्‍चों जैसी उन्‍मुक्‍तता का जीवन जीने वाले रस्‍किन को प्रकृति और बच्‍चे सबसे प्रिय रहे है। छोटी छोटी गोल मटोल ऑखों में गजब की चंचलता और नटखटपन वाले रस्‍किन हर बार अपना जन्‍मदिन दूरदराज से आये बच्‍चों के साथ मनाते रहे है। बच्‍चों से घिरे रस्‍किन केक काटते,बच्‍चों की तालियॉ और ‘हैप्‍पी बर्थ डे रस्‍किन’ का गान उन्‍हें अगले जन्‍मदिन तक कुछ ओर बेहतर कहानियां लिखने के लिए प्रेरित करता लेकिन रस्‍किन बॉन्‍ड ने शायद कल्‍पना भी नही की गयी होगी कि अपने इस बार के जन्‍मदिन पर जिन बच्‍चों का उन्‍हें और बच्‍चों को उनका इंतजार रहता था, इस बार लॉक डाऊन के कारण वह बच्‍चे नही आ सकेगें।

ब्रिटिश रॉयल एयरफोर्स में अधिकारी अंग्रेज ऑब्रे क्लार्क और उनकी एंग्लोइंडियन पत्‍नी एडिथ क्लार्क की संतान रस्‍किन बॉन्‍ड का जन्‍म 19 मई 1934 को कसौली (हिमाचल प्रदेश) में हुआ था। चार साल की नन्‍ही उम्र में ही बालक रस्‍किन के जीवन में नियति ने परिस्थितियों का ऐसा चक्रव्‍यूह रचा कि इस बालक का बचपन ही खत्‍म हो जायें। रस्‍किन चार साल के ही थे कि उनके माता पिता का तलाक हो गया। माता पिता के अलगाव से रस्‍किन का बचपन प्रभावित हुआ। एंग्लोइंडियन मां एडिथ क्लार्क ने जल्दी ही एक पंजाबी व्यक्ति से दोबारा शादी कर ली लेकिन रस्किन अपने पिता ऑब्रे क्लार्क के बहुत करीब थे। रस्‍किन अभी सहज हो ही रहे थे कि 1944 में महज दस बरस की उम्र में उनके पिता ऑब्रे क्लार्क को पीलिया ने जकड़ लिया और उनकी मृत्यु हो गई। यह तमाम परिस्थितियां बालक रस्‍किन से उसका बचपन छीनने के लिए काफी थी परन्‍तु रस्‍किन उनमें से नही है, जो परिस्थितियों से हार जायें। उन्होने निश्‍चय किया कि वह अपने बचपन को ,बचपन की मासूमियत को खोने नही देगें और क्‍या गजब के जीवट व्‍यक्ति है रस्‍किन बॉन्‍ड कि आज 86 वर्ष की उम्र में उनके व्‍यक्तित्‍व में वही बच्‍चों जैसी हंसी बरकरार है।

शिमला के बिशप कॅाटन स्‍कूल से पढे और वहां से स्‍नातक करने के बाद लंदन चले गये। इस बीच माता-पिता के अलगाव और पिता के निधन से उपजी रिक्‍तता रस्‍किन को किताबों की ओर ले गयी। टी.ई. लॉरेंस, रविन्द्रनाथ टैगोर, चार्ल्स डिकेन्स, चार्लोट ब्रोंटे और रुडयार्ड किपलिंग उनके प्रिय लेखक थे। यही से रस्‍किन बॉन्‍ड का रुझान लेखन की ओर हुआ। इरविन दिव्यता पुरस्कार और हैली लिटरेचर पुरस्कार सहित स्कूल में कई लेखन प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की। रस्‍किन बॉन्‍ड ने 1951 में 16 साल की उम्र में अपनी पहली लघु कहानी ‘अछूत’ लिखी। लंदन में रहते हुए उन्होंने अपने पहले उपन्यास ‘ऑन द रूम ऑन द रूफ’ लिखा। जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित जॉन लेवेनिन राइस अवार्ड, जो ब्रिटिश राष्ट्रमंडल लेखक के तहत 30 वर्ष से कम उम्र वालों को दिया जाता था, प्रदान किया गया।

पहले ही उपन्‍यास पर जॉन लेवेनिन राइस अवार्ड प्रदान हो जाना, रस्‍किन के लिए लंदन में सैटल होने के लिए काफी था परन्‍तु एक दिन रस्‍किन ने महसूस किया कि उन्‍हें दुनिया भर के इनाम इकराम क्‍यों न मिल जायें पर वह एक हिंदुस्तानी के अलावा कुछ नहीं हो सकते। इस विचार से रस्‍किन का मन विदेश से उचट गया। वह भारत वापिस लौटे। चार पांच साल दिल्‍ली में रहे। जिदंगी की जददोजहद में अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लघु कथाएँ और कविताएँ लिखकर जीवन यापन करना शुरु किया परन्‍तु नियति के कुचक्र को धत्‍ता बताते हुए अपने लिए जिस जीवन की परिकल्‍पना रस्‍किन कर चुके थे, वह दिल्‍ली में नसीब नही था। अपने सपनों पर उडान के पंख लगाने 1964 में मसूरी आये और हमेशा के लिए मसूरी के हो गये। हालाकि बाजार की आबोहवा में मसूरी भी अब छप्‍पन साल पुरानी मसूरी नही रही लेकिन रस्‍किन बॉन्‍ड को तो मसूरी से मोहब्‍बत है।

लॉक डाउन के बीच अपना जन्मदिन मानते रस्किन बॉन्ड

रस्‍किन बॉन्‍ड का लेखन यथावत जारी था। साठ-सत्तर के दशक में बंबई के प्रकाशक इंडिया बुक हाउस ने उनकी किताबें छापी परन्‍तु अग्रेंजी में तीन,चार रुपये मूल्‍य की किताबों को उस समय लोग खरीद ही नही पाते थे। जीवन यापन के लिए रस्‍किन बॉन्‍ड ने अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरु किया। जिससे उन्‍हें पचासेक रुपये मिल जाते। कुछ साल बाद पेंग्विन बुक्स ने उनसे संपर्क किया और उनके कई संग्रह प्रकाशित किये। यहां से रस्‍किन की भारत में एक लोकप्रिय लेखक के रूप में प्रसिद्ध होने की यात्रा शुरु हुई। रस्किन बॉन्ड ने अब तक 500 से ज्यादा कहानियां, उपन्यास, और कविताएं लिखी हैं। उनकी ज्यादातर रचनाएं बच्चों के लिए ही है। अपनी कहानियों से बच्चों की दुनिया सजाने वाले लेखक रस्किन बॉन्ड ने बच्चों की कहानियों को अपनी कल्पनाओं से ऐसे सुंदर और रंगीन पंख दिये है कि बच्चों को उनकी लिखी हुई कहानियां खूब रोचक और मनोरंजक लगती है। उनकी लिखी कहानी आज भी बच्चों के दिल को लुभाती है। उनकी लिखी एक कहानी का कैरेक्‍टर ‘रस्टी’ और ‘अंकल केन’ आज भी बाल साहित्‍य की दुनिया के सबसे फेमस कैरेक्टर्स माने जाते हैं।

रस्‍किन बॉन्‍ड की इस उम्र में भी गजब की याददाश्त है। बचपन में घटी घटनाओं के पूरे ब्‍यौरे, अपनी ही नही अपने प्रिय लेखकों व उनके पात्रों के नाम, यहां तक अपनी पसंद की देखी गयी फिल्मों की पूरी कास्ट तक उन्‍हें याद हैं। हंसोड स्‍वभाव के रस्‍किन को कन्नड़ के पाठक रस्किन बोंडा (आलू-बोंडा वाला) कहते हैं या एक पाठक ने उन्हें बंस्किन रांड या एक पंजाबी महिला उन्हें रक्सन बुलाती है तो वे कतई बुरा नही मानते है बल्कि इसे पाठक का प्‍यार समझ खिलखिलाते है।  

रस्‍किन बॉन्‍ड अविवाहित है। उनके पाठकों की हमेशा जिज्ञासा रही कि आखिर उन्‍होंनें विवाह क्‍यों नही किया। रस्‍किन बॉन्‍ड छिपाते भी नही है। कुछ भी छिपाना उनके सरल सहज स्‍वभाव में ही नही है। रस्‍किन पूरी लय में बताते है कि 20 वर्ष की उम्र के आगे पीछे उन्होंने कई रोमांटिक कहानियां लिखीं और उसी दौर में उन्होंने अलग अलग लड़कियों को प्यार किया परन्‍तु यह प्‍यार एकतरफा ही रहा। शरारती लहजे में अपनी चिर परिचित हंसी के साथ बताते है कि मुझसे ही पलटकर किसी ने प्यार नहीं किया। इसका कारण भी खुद ही बयां करते है कि मैं जब मुस्कुराता हॅू तो लाल बंदर जैसा दिखता हॅू,शायद मेरे प्‍यार के परवान न चढने का यह भी एक बडा कारण रहा होगा,इसलिए मैं सिंगल हूं। रस्‍किन यह भी तर्क देते है कि भारत में परंपरा है कि बेटे के रिश्ते की बात माता पिता करते हैं, मेरा तो कोई था ही नहीं जो मेरे लिए बात करता इसलिए सिंगल रह गया। हालाकि वे कहते है कि इसका मुझे कोई दुख नही है पर यह सब कहते कहते उनकी भाव भंगिमायें अपने आप बयां कर जाती है कि अपने प्रेम की बेल के परवान न चढने का उन्‍हें मलाल जरूर है।

रस्‍किन बॉन्‍ड अविवाहित जरुर है पर वह अकेले है, ऐसा नही है। उन्‍होनें प्रेम सिंह को गोद लिया। आज लंढोर कैंट में रस्‍किन बॉन्‍ड अपने दत्‍तक पुत्र के भरे पूरे परिवार के साथ रहते है और अपने नाती के साथ नाचते भी है ।

रस्‍किन बॉन्‍ड की कहानियां पत्र पत्रिकाओं और किताबों तक ही सीमित नही रही। उनकी कहानियों पर बनी अंग्रेजी फिल्‍म ‘फ्लाइट ऑफ पिजन्स’ और ‘एंग्री रिवर’ के साथ साथ इंडियन फिल्‍म इंडस्‍ट्री भी रस्‍किन से दूर नही रही । 1857 की पृष्ठभूमि पर रस्‍किन बॉन्‍ड  की कहानी अ फ्लाइट ऑफ पीजंस पर ख्‍यात फिल्‍म निर्देशक श्याम बेनेगल ने ‘जुनून’ फिल्‍म बनाई। उनके लोकप्रिय उपन्यास ‘द ब्लू अम्ब्रेला’ पर इसी नाम से 2007 में निर्देशक विशाल भारद्वाज ने बाल फिल्म बनाई जिसे सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपनी कहानियों के लिए फिल्‍म स्क्रिप्‍ट लिखना रस्‍किन बॉन्‍ड के लिए बहुत बोरिंग काम है। फिल्‍म निर्देशक विशाल भारद्वाज के आग्रह पर उन्‍होनें अपनी किताब ‘सुजैन सेवेन हसबैंड’ पर ‘सात खून माफ’ जैसी फिल्‍म के लिए स्क्रीन प्ले भी लिखा। यह अलग बात है कि फिल्‍म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने आखिर में पूरा बदल डाला। रस्‍किन बॉन्‍ड को कोई एतराज नही है कि यदि कोई अच्‍छा डायरेक्‍टर उनकी किसी कहानी पर फिल्‍म बनाना चाहे तो उसे खुशी-खुशी अधिकार देने के लिये वह तैयार है। रस्‍किन बॉन्‍ड की भूतों वाली कुछ कहानियों पर नेटफ्लिक्स डिजिटल फिल्म्स ने फिल्‍में बनाई है, जिन्हें मोबाइल पर देखा जा सकता है। यह बात अलग है कि रस्‍किन बॉन्‍ड इन फिल्‍मों को नही देखते है। वजह, रस्‍किन बॉन्‍ड आज भी मोबाइल फोन नही रखते है।

साल 1985 से रस्‍किन बॉन्‍ड मसूरी के ऑक्सफोर्ड बुक डिपो पर हर शनिवार की शाम एक घंटा अपने पाठकों विशेषकर बच्‍चों से मिलते रहे हैं। इन पक्‍तियों के लेखक की भी साल 1987 में शनिवार की एक शाम ऑक्सफोर्ड बुक डिपो पर ही रस्‍किन बॉन्‍ड से पहली मुलाकात हुई थी। उस समय उनके पाठकों की दीवानगी इस कदर थी कि उनके आने से पहले ही फोटोग्राफर को तैयार रखते कि वह उनका फोटो रस्‍किन बॉन्‍ड के साथ खींचे। बाद में दुनिया बदली और मोबाइल आ गया। लोग फोटो भी खिंचते और गाल-से-गाल मिलाकर सेल्फी भी लेते और गले भी मिलते। यह सिलसिला तब तक चलता जब तक रस्‍किन बॉन्‍ड थक नही जाते। अब बढती उम्र उन्‍हें यह इजाजत नही देती कि वह हर शनिवार ऑक्सफोर्ड बुक डिपो जायें लेकिन उनके पाठक लंढोर में उनके घर तक पहुंच जाते हैं। रस्‍किन बॉन्‍ड भी अपने इन पाठकों की मोहब्‍बत को सहेजते है। वह कहते कि मुझे भी मेरे चाहनों वालों, मेरे पाठकों से प्रेम है बशर्ते वो अल सुबह 5 बजे आकर डिस्टर्ब न करें।

एक लेखक के रुप में रस्किन बॉन्ड को 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल जा चुका है। बाल साहित्‍य में उनके योगदान के लिए 1999 में पद्मश्री और 2014 में पद्म भूषण से उन्‍हें सम्मानित किया जा चुका है। दिल्ली सरकार द्वारा 2012 में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड और गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी की मानद उपाधि से उन्‍हें विभूषित जा चुका है लेकिन अपने आप में अलमस्‍त रस्किन बॉन्ड का इनाम,ईकराम से ऐसा वीतराग कि आप उनके पास घंटों बैठकर बतियाये पर वह इनका जिक्र तक नही करेगें ।

पूरा जीवन अपने लिखने पर जिंदा रहे रस्किन बॉन्ड अपने जीवन से पूरी तरह सन्‍तुष्‍ट है। रस्‍किन कहते है कि जिंदगी में आज जितना संतोष और सुकून है, पहले कभी नहीं था। आज मेरे पास एक रीडरशिप है, किताबें बिक रही हैं। रॉयल्टी के साथ कुछ आमदनी भी हो रही है। उस मायने में एक लिहाज से मैं चरम पर पहॅुच गया हॅू।

रस्किन मोबाइल नहीं रखते, लैपटॉप नहीं चलाते, टीवी नहीं देखते। अपना कोई लेखकीय बखान नही करते। अपनी ही दुनिया में मस्‍त। आज भी अपनी कहानियां हाथ से ही लिखते है। रस्किन भीड़, शोर, मीडिया से दूर ही र‍हते है। बच्‍चों जैसी सहज मनमोहक हंसी रस्किन के गोल मटोल चेहरे से टपकती है। हमेशा करीने से कटे बाल, शर्ट और ढीली पैंट कमीज पहने रस्किन ने पूरी तरह से पारदर्शी जीवन जीया है,कहीं कोई बनावट नही। थुलथुले और गोल मटोल रस्किन बांड कहते है कि महत्‍वकांक्षा से परे सीधा सादा जीवन किन्‍तु मूल्‍यवान जीवन जीना उनकी चाहत रहा है जिसे जी भर के उन्‍होंनें जीया है।

रस्किन बांड को भीतर तक कुरदे जाने पर एक बात बहुत साफ तौर पर नजर आती है कि माता पिता के तलाक ने रस्किन के जीवन पर गहरे तक असर डाला। छोटी छोटी बातों पर तलाक तक पहॅुचने वाले दम्‍पतियों के लिए रस्किन का जीवन एक सबक है कि पति पत्‍नी के अहम के कारण तलाक की परिणति तक पहुचने में उनके बच्‍चे किस दंश को झेलते है। रस्किन बांड ने उस दंश को झेला। अपनी रचनात्‍मकता से बडे लेखक हो गये पर हर बच्‍चा रस्किन बांड तो नही हो सकता है ना।

86 की उम्र में भी रस्‍किन बॉन्‍ड थके नही है। रस्‍किन बॉन्‍ड कहते है कि जब तक शरीर साथ देगा तब तक लिखता रहूंगा। इन पंक्तियो के लेखक ने छह महीने पहले अपने सत्रह बरस के बेटे स्‍नेहिल से रस्‍किन बॉन्‍ड के जन्‍मदिन पर मसूरी जाने और उनसे मिलने का प्रोग्राम तय किया हुआ था किन्‍तु लॉक डाऊन के कारण यह संभव नही हो सका है। रस्‍किन बॉन्‍ड लिखते रहे, स्‍वस्‍थ रहे, दीघायु हो अगले साल उनका जन्‍मदिन उनके अपने प्रिय बच्‍चों के साथ मनाया जायेगा, इन्‍हीं शुभकामनाओं के साथ आमीन।


राजेन्‍द्र शर्मा : सहारनपुर, उत्‍तर प्रदेश में जन्म. 1984 -1985 में नवभारत टाइम्‍स, जनसत्‍ता, दिनमान के लिए रिपोर्टिग तत्पश्चात उत्‍तर प्रदेश वाणिज्‍य कर विभाग में नौकरी,  वर्तमान में वाणिज्‍य कर अधिकारी खण्‍ड -09 नोएडा के पद पर कार्यरत। इस बीच कुछ कवितॉए, कुछ लेख,  कुछ संस्‍मरण विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा त्रैमसिक साहित्यिक पत्रिका शीतल वाणी के सहायक सम्‍पादक । भारतीय शास्‍त्रीय संगीत में विशेष रूचि व लेखन. राजेंद्र जी से इस ईमेल पते पर संपर्क किया जा सकता है— pratibimb22@gmail.com


मित्र को भेजें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *