इरा टाक
मल्लिका एक ऐसी आजाद, बुद्धिजीवी स्त्री की दास्तान है जिसने सामाजिक विडम्बनाओं के दिल दहला देने वाले घेरों के बीच अपने लिए अपने सामाजिक मूल्य स्वयं रचे। एक अलग बागीपन, एक अलग आजाद खयाली, एक अलग निश्छलता, एक अलग आत्मविश्वास। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के भारत में ऐसी स्त्री की कल्पना कोई लेखक नहीं कर सकता, जैसी स्त्री होकर उसने जीवन जिया, जीकर दिखाया। जब एक विधवा के रूप में समाज उसके सारे सामाजिक और मौलिक अधिकार छीन लेता है, वह अपने धीरे-धीरे अपने लिए अनपोलोजेटिक तरीके से सामाजिक नियमों को फिर से लिखती जाती है, और मजबूत, अपने फैसले खुद लेने वाली स्त्री ही नहीं, केवल अपनी आत्मा के पवित्र इशारों पर चलने वाले मनुष्य के रूप में बदलती और विकसित होती चली जाती है। सामाजिक और नैतिक मूल्यों के परंपरागत सैटअप को चैलेंज करती हुई स्त्री कब पुरूषवादी समाज को ज्यादा प्रिय लगी है भला?
उपन्यास को पढ़ते हुए महसूस होता है कि मल्लिका एक ऐसी किरदार है जो भारतेंदु की प्रिय मित्र के रूप में समान बौद्धिक स्तर वाला भावनात्मक साथ प्राप्त करती है, परंतु भारतेंदु पर भौतिक-आर्थिक रूप से निर्भर नहीं है, बराबरी के भाव वाला स्वाभिमानी अनुरागात्मक संबंध है, जो दोनों को ही धीरे-धीरे विकसित (यानी ग्रोइंग टुगेदर) करता है।
यूं तो बनारस अपनी ठसक वाली गरिमा, दिव्यता और भव्यता के साथ ज्यादातर, मनीषा कुलश्रेष्ठ जी द्वारा रचित इस उपन्यास की क्रीड़ास्थली है, पर हर उपन्यासकार जैसे अपनी भूमि और बौद्धिक, भावनात्मक संस्कारों को अपनी रचना में लेकर आता ही है, तो भारतेंदु की मेवाड़ यात्रा के बहाने उन्होंने ने अपने इलाके को शिद्दत से उपन्यास में जगह दी है। इससे पहले, राजा राममोहन राय जिस बंगाल में विधवा दहन की कुप्रथा के लिए, ईश्वरचंद्र विद्यासागर स्त्री शिक्षा के लिए आंदोलनरत थे, उसी बंगाल में उनके ही समकालीन इस तरह वैधव्य की परीक्षा देती प्रसिद्ध बांग्ला लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी की दूर की बहन मल्लिका अपने शेष जीवन के लिए बनारस को चुनती है और उसे अपनी पढ़ने-लिखने की आदत के कारण भारतेंदु हरिश्चंद्र की संगत प्राप्त होती है तो उसका जीवन नई करवट लेता है। वही भारतेंदु जो ठीक इसी समय बनारस के राजा और ब्रिटिश सरकार की मदद से अपनी प्रिय भाषा हिंदी के उत्थान के काम में लगे हुए थे, और यह संगत ऐसे रचनात्मक जीनियस की दुर्लभ संगत थी जिसके नाम से कल्चरल हिस्ट्री का पूरा युग पहचाना जाने वाला हो, किसी भाषा के पायनियर लेखक की अंतरंग संगत जिसकी वजह से कोई भी इंटेलेक्चुअल स्त्री मल्लिका से बेहद ईर्ष्या कर सके। मल्लिका के जीवन की यही करवट इस उपन्यास का कथानक है। पिछले कुछ दशकों में हिंदी लेखन में जो फेमिनिज्म का विचार और व्यवहार दिखाई देता है, मनीषा जी के कलम से निकला यह उपन्यास बताता है कि हिंदी की आदिस्त्री मल्लिका लेखन ही नहीं, अपने व्यवहार में कितनी और सहज फेमिनिस्ट थीं।
उपन्यास की मुख्य प्रटेगनिस्ट के रूप में ऐसी स्त्री का चयन और कथा के शुरू से आखिर तक निबाह सरल नहीं हो सकता। ऐसा मुश्किल चुनाव और निबाह करते हुए मनीषा कुलश्रेष्ठ जी ने हिंदी के आदि पुरूष को कथा का उपनायक या दूसरा पुरूष बनाने का जो जोखिम लिया है, वह दुस्साहस के स्तर का है। दूसरी तरह से कहा जाए तो हिंदी की पहली स्त्री को स्थापित करने का काम कायदे और करीने से किया है। मुझे लगता है कि इस प्रकार अपनी भाषा की आदिस्त्री पर यह लेखन जरूर मनीषा जी को अपनी भाषा के लिए कुछ उॠण होने का गहरा संतोष भी देगा।
ऐतिहासिक रूप से बहुत कम ज्ञात पात्र को अपनी संवेदना और कल्पना के हुनर, अपनी सुंदर भाषा और कथा शैली से जिस प्रकार मनीषा जी ने जीवंत कर दिया है, मेरी नजर में देरसबेर उसे हिंदी कथा संसार की असाधारण घटना के रूप में देखा जाएगा। इस उपन्यास को रचते हुए फिल्म की सी रोचकता और साहित्य की संवेदना को उन्होंने स्त्री के बुनियादी रूप से इनसान होने की धारणा के साथ साध लिया है, यह बड़ी बात है और लेखक के रूप में इतनी आसान भी नहीं है।
मल्लिका : मनीषा कुलश्रेष्ठ [उपन्यास], मू. 235 रुपये, राजपाल एंड संस, दिल्ली। आप इस किताब को इस लिंक पर क्लिक कर अमेज़न से भी ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।

इरा टाक : लेखक, चित्रकार और फ़िल्मकार हैं. वर्तमान में मुंबई रह कर अपनी रचनात्मक यात्रा में लगी हैं. दो काव्य संग्रह—अनछुआ ख़्वाब, मेरे प्रिय, कैनवास पर धूप; कहानी-संग्रह—रात पहेली, नोवेल—रिस्क@इश्क़, मूर्ति; औडियो नॉवेल— गुस्ताख़ इश्क़; लाइफ लेसन बुक्स—लाइफ सूत्र और RxLove366 प्रकाशित। शॉर्ट फिल्म्स—फ्लर्टिंग मैनिया, डब्लू टर्न, इवन दा चाइल्ड नोज और रेनबो उनके खाते में दर्ज़ हैं। कलाकार के रूप में नौ एकल प्रदर्शनियाँ कर चुकी हैं। इरा आजकल एक प्रॉडक्शन हाउस के लिए फीचर फिल्म की स्क्रिप्ट लिख रही हैं। इरा से आप इस ईमेल के जरिये संपर्क कर सकते हैं—eratak13march@gmail.com