क्या आपने रूमी की शायरी पढी है?

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विमल कुमार     

 (मैं क्या करूं, ऐ मुसलमानों! मैं खुद अपने आप को नहीं पहचानता। न मैं ईसाई हूँ, यहूदी न अग्निपूजक  और नहीं मुसलमान। ना मैं पूरब का हूं ना पश्चिम का, ना धरती का न सागर का न मैं प्रकृति द्वारा गढ़ा  गया हूं और ना ही मंडरानेवाला आसमान से आया हूं। न मैं हिन्द का हूं ना चीन का, न बुल्गारिया का हूं और नहीं सर्बिया का, न में इराक का वासी हूं और न खुरासान का मिट्टी का बना हूं। मेरा निवास शून्य  में है और मेरी कोई पहचान नहीं है। न तन है, न प्राण। अब मेरा प्राण मेरे प्रियतम के पास है। द्वैत भाव को मैंने स्वयं तिरोहित कर दिया है अब मैं दोनों दुनिया हूं (दृश्य एवं अदृश्य) को एक रूप देखता हूं अब मुझे एक (ईष्ट) की ही कामना है। एक ही का ज्ञान है। एक ही को मैं देखता हूं और एक ही को टेरता हूँ)—सूफी शायर रूमी

इन पंक्तियों में रूमी ने जो बात कही है, उस पर जरा गौर करेंगे ।इस महान शायर ने इन पंक्तियों में शायद ने यह बताने की कोशिश की है कि मनुष्य को किसी भौगोलिक सीमा में नहीं बांधा जाना चाहिए और वह दृश्य और अदृश्य की परिभाषा से भी परे होता है। वह शायद इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि किसी भी धर्म में किसी तरह की कोई कट्टरता या संकीर्णता नहीं होनी चाहिए बल्कि उसमें एक तरह की उदारता होनी चाहिए, एक तरह की स्वतंत्रता होनी चाहिए और उसमें मानव कल्याण का एक संदेश छिपा होना चाहिए तभी हम मनुष्य को किसी सीमा में नही बांध पाएंगे।संसार की सारी सीमाएं, धर्मों के  सारे बंधन मनुष्य को छोटा ही बनाते हैं। समाज मे रुढियों को ही जन्म देते है।                    

क्या आपने रूमी की शायरी पढ़ी है? अगर नहीं पढ़ी है तो कोरोना काल में जरूर पढ़ लीजिए। आपको गहरा सुकून मिलेगा तसल्ली का अहसास होगा जिसकी आपको इस समय बेहद आवश्यकता है। आज इस कोरोना काल मे पूरे संसार को बचाने की जरूरत है और यह संसार तभी बच सकता है जब आप इंसान से प्रेम करें। अगर आपके मन में इंसान से प्रेम नहीं है तो यह संसार नहीं बच सकता है। वह लगातार इस तरह के संकट से गुजरता रहेगा लेकिन अफगानिस्तान में 13वीं शताब्दी में यानी 30 सितंबर 1203 में जन्मे महान फारसी सूफी शायद रूमी ने उस जमाने में ही पूरी दुनिया को प्रेम का एक गहरा संदेश दिया था। कहा जाता है कि कबीर और इकबाल भी रूमी के जीवन दर्शन से प्रभावित थे। रूमी पर प्लेटो का भी असर हुआ था। फारसी साहित्य के इतिहास में रूबी का वही स्थान है जो हिंदी साहित्य में तुलसीदास और कबीर का है। इस महान सूफी शायर की पिछले वर्ष एक छोटी सी जीवनी आई है। दिलचस्प बात यह है कि इस  जीवनी को लिखा है भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी डॉक्टर त्रिनाथ मिश्र ने जो हिंदी संस्कृत और फारसी भाषा साहित्य मर्मज्ञ अध्यता रहे हैं और वह केंद्रीय आरक्षी बल तथा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के महानिदेशक भी रहे हैं।

इस किताब के आने से पहले प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक राजकुमार केसवानी की भी रूमी पर किताब आ चुकी है लेकिन डॉक्टर त्रिनाथ मिश्रा की किताब इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें रूमी की जीवनी के साथ-साथ उनके काव्य और उनके योगदान को भी इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि एक आम पाठक भी इस महान सूफी संत से पूरी तरह परिचित हो सकता है। त्रिनाथ जी ने 125 पेज की इस किताब में सूफी मत और सिद्धांत के अलावा रूमी के युग, उसके जीवन-वृत परिवेश,  उसके दीवानों और मसनवी, मसनवी के  कुछ रोचक आख्यानों, रूमी और भारत पर अलग-अलग अध्याय लिखा है। उन्होंने सहज सरल शब्दों में ये सारे अध्याय लिखा है जिसे एक आम पाठक इस शायर कोअच्छी तरह जान सकता हैं।

मौलाना संग्रहालय, कोन्या, तुर्की में स्थित है, जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी का मकबरा है, एक फारसी सूफी रहस्यवादी जिसे मेवलाना या मौलना या रूमी के रूप में भी जाना जाता है। यह मेवलेवी आदेश के दरवेश भी थे, जिसे व्हर्लिंग दरवेश के रूप में जाना जाता था।

भारतीय इतिहास में सूफियों का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है और हमारे मुल्क में इन सूफियों ने कला संगीत पर भी असर डाला है और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की  है। उन्होंने एक गैर सांसारिक और एक अभौतिक जीवन दृष्टि विकसित की है। उदारवादी दृष्टि को भी विकसित करने में सूफियों ने एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। सच पूछा जाए तो रूमी के दर्शन का मूल तत्व भारतीय दर्शन में भी निहित रहा है। शायद यही कारण है कि भारत में सूफियों को विशेष दर्जा दिया गया। त्रिनाथ मिश्र ने पुस्तक के आरम्भ में ही सूफी मत के सिद्धन्त पर प्रकाश डाला है। एक मत है कि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के जीवन काल मे ही इस सूफी मत का सूत्रपात हो गया। दूसरा मत यह है कि सूफी  सफी शब्द से निकला जिसका अर्थ शुचिता और पवित्रता से है। तीसरा मत यह है कि सूफी शब्द सूफ से निकला है जिसका अर्थ ऊन से है। इस्लाम के ये साधक ऊन केकपडे और टोपियां पहनते थे और वे उसी तरह सन्यासी के प्रतीक बन गए जिस तरह भारत मे गेरुआ रंग के कपड़े पहनने वाली सन्यासी त्रिनाथ मिश्र का कहना है कि सूफी मत पर भारतीय दर्शन का भी प्रभाव पड़ा और इसमे आर्य संस्कृति की छाप है। सूफी भी एकेश्वरवादी थे लेकिन धार्मिक रूढ़ियों और कर्मकांडों में उनकी कोई दिलचस्पी नहीँ थी।वे इबादत को अनुष्ठान के रूप में नही मानते इसलिये बार बार कलमा पढ़ने के समर्थक नही है।

सूफी लोग हज की यात्रा करने से अधिक महत्वपूर्ण दीन दुखियों की सेवा करना और परोपकार को मानते है। दरअसल हर धर्म मे दो अन्तर्धारायें रही है एक जो धर्म को लगातार कट्टर रूप में पेश करती रही है और दूसरी धारा जो धर्म के उदार और मानवीय रूप को ही चित्रित करती रही है चाहे हिंदू धर्म हो या इस्लाम या ईसाई। इन तीनों धर्मों में इन अंतरधाराओं को देखा जा सकता है। साहित्य और दर्शन से जुड़े लोगों ने हमेशा ही धर्म की उदार और मानवीय धारा का ही नेतृत्व किया है और अपनी रचना के माध्यम से लगातार यह संदेश दिया है कि इस जगत में मानव प्राणी से प्रेम ही दरअसल ईश्वर को प्राप्त करना है। रूमी इसी धारा के महान सूफी शायर रहे हैं जिनके शिष्यों की संख्या उस ज़माने में दस हज़ार से अधिक हो गई थी।

आज जब कवियों की किताबें दस हज़ार नही छपती दस हज़ार शिष्यों की कल्पना नही की जा सकती। एक युवा कवि एक वरिष्ठ कवि का शिष्य बनने को तैयार नही। लेकिन रूमी न होते तो निजामुददीन औलिया और अमीर खुसरो न होते। जायसी पद्मावत न रचते। टैगोर पर भी रूमी के जीवन दर्शन का प्रभाव है। त्रिनाथ मिश्र ने तो गीतांजलि और दीवाने शम्स के कई पदों में समय बताया है। उन्होंने गीतांजलि और दीवाने शम्स के कई पदों को आमने सामने रकह कर दोनों के अर्थों को सामने रख कर अपनी बात साबित की है। भक्ति आंदोलन के साहित्य को पढ़ते हुए हम रूमी की चर्चा से बच नही सकते। त्रिनाथ मिश्र ने इस छोटी-सी पुस्तक में रूमी के साहित्य और जीवन का सार प्रकट किया है।


विमल कुमार : वरिष्ठ कवि पत्रकार। कविता कहानी उपन्यास व्यंग्य विधा में 12 किताबें। गत 36 साल से पत्रकार। 20 साल से संसद कवर। चोरपुराण पर देश के कई शहरों में नाटक। ‘जंगल मे फिर आग लगी है’ और ‘आधी रात का जश्न’ जैसे दो नए कविता-संग्रह में बदलते भारत मे प्रतिरोध की कविता के लिए चर्चा में। आप लेखक से इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं— arvindchorpuran@yahoo.com


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