हिंदी का पहला घर फोर्ट विलियम कॉलेज

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विमल कुमार

आज हम लोग जिस हिंदी को बोलते सुनते हैं और जिस में साहित्य का सृजन करते हैं, उस हिंदी की कहानी कोलकाता के एक कालेज से हुई थी जिसका नाम फोर्ट विलियम कॉलेज था। वह हिंदी का पहला घर था।तब किसी ने कल्पना नही की होगी कि कालांतर में हिंदी के कई घर बनेंगे और पहले घर को ही भूल जाएंगे।।सौ साल बाद काशी नागरी प्रचारिणी सभा हिंदी साहित्य सम्मेलन जैसे अनेक घर बने।अनेक पत्रिकाएं और प्रकाशन गृह भी हिंदी के घर ही थे जो उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में बने।

आज से 220 साल पहले हमारी हिंदी का क्या स्वरूप था और हमारी हिंदी कैसे विकसित हुई और किन किन नामों से गुजरी किस किस तरह के विमर्श हुए उसका पहला लेखा-जोखा अगर कहीं मिलता है तो यह फोर्ट विलियम कॉलेज ही था, लेकिन दुर्भाग्य है कि हिंदी पट्टी में इस कॉलेज की चर्चा बहुत कम है या नहीं के बराबर है या यह कालेज हिंदी साहित्य के इतिहास में दबकर रह गया है ।


आज से 220 साल पहले हमारी हिंदी का क्या स्वरूप था और हमारी हिंदी कैसे विकसित हुई और किन किन नामों से गुजरी किस किस तरह के विमर्श हुए उसका पहला लेखा-जोखा अगर कहीं मिलता है तो यह फोर्ट विलियम कॉलेज ही था, लेकिन दुर्भाग्य है कि हिंदी पट्टी में इस कॉलेज की चर्चा बहुत कम है या नहीं के बराबर है या यह कालेज हिंदी साहित्य के इतिहास में दबकर रह गया है ।


लार्ड वेलेजली द्वारा अट्ठारह सौ में स्थापित उस कॉलेज का महज 54साल का इतिहास रहा लेकिन इन 5 दशकों में इस कॉलेज ने कई ऐतिहासिक कार्य किये और इतने उतार-चढ़ाव देखे और इस तरह की चुनौतियों का सामना किया कि उसकी कहानी को दर्ज करना बहुत आसान नहीं है। हिंदी सहित्य के पुराने इतिहासकार लक्ष्मी शंकर वार्ष्णेय ने एक जमाने में इस कॉलेज पर एक किताब लिखी थी लेकिन आज खुद वार्ष्णेय जी हिंदी की दुनिया से विस्मृत कर दिए गए हैं और अब उन्हें केवल शोधार्थी ही जरूरत पड़ने पर यदा-कदा पढ़ते हैं। ऐसे में उनकी इस कॉलेज पर लिखी गई किताब के बारे में आज हिंदी वाले कम ही जानते हैं ।युवा शोधार्थी शीतांशु ने बड़ी मेहनत से इस कॉलेज पर एक शोध ग्रंथ लिखा है ।अगर यह शोध ग्रंथ अंग्रेजी में लिखा गया होता तो उसे हाथों हाथ लिया जाता लेकिन हिंदी में लिखे जाने के कारण यह किताब हिंदी वालों के बीच भी उपेक्षित और अलक्षित रह गई ।

उनकी पुस्तक 2018 में ही आई थी लेकिन इन 2 वर्षों में शायद ही किसी पत्र पत्रिका में इस पर कोई समीक्षा नजर आई हो या हिंदी आलोचना के समुदाय में इस पर कोई विशेष चर्चा या गोष्ठी हुई हो लेकिन यह किताब न केवल इस कॉलेज पर शोध ग्रंथ है बल्कि वह हिंदी के आरंभिक निर्माण कार्य के 50 सालों का एक दस्तावेज भी है जिसमें औपनिवेशिक काल मे ब्रिटिश प्राच्यवाद हिंदी हिंदुस्तानी प्रसंग ईस्ट इंडिया कंपनी की भाषा नीति की एक झांकी भी पेश की गई है। इसके स्रोत सीधे राष्ट्रीय अभिलेखागार से लिए गए हैं जो अब तक हिंदी की दुनिया को प्राप्त नहीं थे ।इससे इस किताब का महत्व और बढ़ जाता है और यह किताब अत्यंत प्रमाणिक हो जाती है। शीतांशु के एम.फिल. का शोध कार्य इसी कालेज पर था और हिंदी के प्रख्यात मार्क्सवादी आवश्यक नामवर सिंह ने उन्हें इस काम को अंजाम देने का जिम्मा सौंपा था।

शीतांशु ने इस किताब के बहाने सर विलियम जॉन से लेकर जान गिल क्रिस्ट जेम्स मोअट, जान विलियम टेलर, कप्तान विलियम प्राइस तक की विस्तृत चर्चा है और यह बताने का प्रयास किया है कि लॉर्ड मैकाले के आने से पहले अंग्रेजों की भाषा नीति और शिक्षा नीति क्या थी तथा भारत में सांस्कृतिक ज्ञान और प्राच्यवाद के प्रति बढ़ते अंग्रेजों के आकर्षण के पीछे क्या राजनीतिक निहितार्थ थे लेकिन केवल इन राजनीतिक आशयों के कारण हिंदी के विकास में इस कॉलेज का योगदान कम नहीं हो जाता।


शीतांशु ने इस किताब के बहाने सर विलियम जॉन से लेकर जान गिल क्रिस्ट जेम्स मोअट, जान विलियम टेलर, कप्तान विलियम प्राइस तक की विस्तृत चर्चा है और यह बताने का प्रयास किया है कि लॉर्ड मैकाले के आने से पहले अंग्रेजों की भाषा नीति और शिक्षा नीति क्या थी तथा भारत में सांस्कृतिक ज्ञान और प्राच्यवाद के प्रति बढ़ते अंग्रेजों के आकर्षण के पीछे क्या राजनीतिक निहितार्थ थे लेकिन केवल इन राजनीतिक आशयों के कारण हिंदी के विकास में इस कॉलेज का योगदान कम नहीं हो जाता ।


आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने इतिहास में जरूर कॉलेज के दो मुंशियों सदल मिश्र और लल्लू लाल की चर्चा की है यह चर्चा जितनी अपेक्षित थी वह शुक्ल नहीं कर पाए हैं। शायद उनका तब जोर हिंदी के उस पूरे इतिहास लिखने का था और उसमें सारे परिदृश्य को पेश करने का प्रयास था लेकिन फिर भी फोर्ट विलियम कॉलेज के योगदान को देखते हुए उनसे अपेक्षा बनती है कि वह इस काम को अगर और विस्तार देते तो शायद आज हिंदी को लेकर चर्चा कुछ और ही होती पर इस कमी को बाद में वार्ष्णेय ने पूरा किया।रामविलास शर्मा ने जरूर भारतेंदु और हिंदी नवजागरण तथा भाषा और समाज जैसी पुस्तकों की रचना के क्रम में फोर्ट विलियम कॉलेज के कार्य को रेखांकित किया है और हिंदी हिंदुस्तानी की शुरुआत से पहले उस पूरे प्रदेश में चल रहे विमर्श को रेखांकित करने की कोशिश की है।

शीतांशु ने इस किताब को केवल एक कॉलेज के विकास के रूप में नहीं बल्कि औपनिवेशिक कॉल के टूल के रूप में तथा अंतर संबंधों और उस दौर में भाषा नीति को लेकर भी विचार बस किया है ।उन्होंने अपनी भूमिका में यह स्पष्ट कर दिया है कि इस संस्थान के संदर्भ में हिंदी जगत में अनेक प्रकार के मत विवाद और भ्रांतियां मिलती हैं जैसे कि एक तरफ अगर यह मान्यता है कि हिंदी भाषा की दृष्टि से कॉलेज कोई विशेष योगदान न दे सका तो दूसरी तरफ यह मान्यता है कि कॉलेज द्वारा प्रस्तुत कृतियों और उसकी भाषा नीति से हिंदी साहित्य की दशा और दिशा प्रभावित हुई ।एक तरफ अगर यह मान्यता है कि प्रेम सागर एक अत्यंत उबाऊ और निम्न कोटि की रचना है तो दूसरी तरफ यह कि प्रेम सागर(लल्लू लाल) हिंदी साहित्य का अमूल्य कृति है और इतिहास ग्रंथों में उसका अवमूल्यन किया गया है।

लेखक ने इस किताब के पहले अध्याय में ही यह स्पष्ट कर दिया है इस कॉलेज की स्थापना भारतीय इतिहास के उस मोड़ पर हुई थी जो परंपरा से एक ऐसे विच्छेद का दौर है जिससे भारतीय समाज संस्कृति राजनीति धर्म दर्शन कृषि व्यापार आदि के चरित्र को बदल कर रख दिया ।यह वह दौर है जब स्वयं ईस्ट इंडिया कंपनी को भी इंग्लैंड में आकार ले रहे गंभीर आर्थिक सामाजिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ रहा था ।


लेखक ने इस किताब के पहले अध्याय में ही यह स्पष्ट कर दिया है इस कॉलेज की स्थापना भारतीय इतिहास के उस मोड़ पर हुई थी जो परंपरा से एक ऐसे विच्छेद का दौर है जिससे भारतीय समाज संस्कृति राजनीति धर्म दर्शन कृषि व्यापार आदि के चरित्र को बदल कर रख दिया ।यह वह दौर है जब स्वयं ईस्ट इंडिया कंपनी को भी इंग्लैंड में आकार ले रहे गंभीर आर्थिक सामाजिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ रहा था ।


लेखक का यह मानना है कि जब विलियम फोर्ट कॉलेज की स्थापना के पीछे नियत कार्य को पर विचार किया जाता है तो वहां भी अंततः राजनीतिक आर्थिक बर्ताव से उपजे सुगठित प्रशासनिक ढांचे की जरूरत या समाजवादी आकांक्षाओं पर ही बातें केंद्रित होकर रह जाती हैं जबकि कहानी कुछ और ही है ।इस कहानी की शुरुआत विलियम फोर्ट कॉलेज की स्थापना वर्ष के समय औपनिवेशिक सत्ता के चारित्रिक विकास को एक बार फिर समझे बगैर नहीं हो सकती क्योंकि वह समय है जब औद्योगिक पूंजीवाद अपने पैर पसार रहा था और व्यापारिक पूंजीवाद का इंग्लैंड की राजसत्ता से गठबंधन टूटा नहीं था ।

लेखक ने कुल 5 अध्याय में पुस्तक को समेटा है। इसमें पहला अध्याय सत्य ज्ञान और संस्थान, दूसरा अध्याय” कंपनी का व्यापारिक चरित्र और फोर्ट विलियम कॉलेज” तीसरा अध्याय “कंपनी और कॉलेज की भाषा नीति का फर्क” तथा चौथा अध्याय “हिंदी उर्दू एक बार फिर और पांचवा अध्याय “हिंदी साहित्य की परंपरा की चिंता इसके बाद ” है।उन्होंने करीब 10 पेज का एक उप संहार भी लिखा है और एक परिशिष्ट भी दिया। शीतांशु ने इस पुस्तक का नायक विलियम जॉन्स और जॉन गिलक्रिस्ट को बनाया है लेकिन उन तमाम अन्य विदेशी भारत विदों की चर्चा की है और कॉलेज के जो जो प्राचार्य रहे हैं उनके योगदान को रेखांकित किया है।इतना ही नहीं इस संस्थान से प्रकाशित पुस्तकों की एक सूची भी पेश की है और उसमे कार्यरत मुंशियों का भी जिक्र किया है । गिलक्रिस्ट के महज 5 साल के कार्यकाल में 28 ग्रंथ तैयार किये गए जिनमे लल्लू लाल और सदल मिश्र की किताबों के अलावा दसेक मुस्लिम लेखक भी थे। लल्लू लाल ने सिहांसन बत्तीसी से लेकर शकुंतला नाटक और लालचन्द्रि का भी शामिल है।

लेखक ने सर विलियम जॉन्स के बारे में लिखते हुए बताया है कि उन्हें ग्रीक रोमन फ्रेंच स्पेनिश इतालवी चीनी संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त था। मनुस्मृति, हितोपदेश, महाभारत, ऋग्वेद, कालिदास, जयदेव, भारतीय प्राचीन संगीत, भारतीय प्रकृति दर्शन, पुराण, ज्योतिष, बीजगणित, नाट्यशास्त्र, मोहम्मद फिरदौसी, खुसरो, निजामी के संदर्भ में उन्हें विस्तृत जानकारी भी थी और इस जानकारी का उन्होंने अंग्रेजी में उपलब्ध कराया था ।जोन्स ने हिंदुस्तान के प्राचीन तत्वों को परखा। उनकी छानबीन की और यूरोपीय बौद्धिकों के सामने भारतीय इतिहास के श्रेष्ठ तत्वों को स्थापित किया ।भारतीय साहित्यकारों और इतिहासकारों ने इस विकास से प्रेरणा ग्रहण की ।

सर जॉन शोर ने विलियम जॉन्स पर केंद्रित अपने व्याख्यान में कहां है “ज्ञान और सत्य उनके संपूर्ण अध्ययन के अभिप्रेत थे और उनका लक्ष्य मनुष्य के लिए उपयोगी होना था। इस दृष्टि से उन्होंने अपने अध्ययन का विस्तार सभी भाषाओं देश और काल के लिए किया। विलियम जोंस ने तो हिंदू धर्म के देवी-देवताओं कामदेव, प्रकृति, दुर्गा भवानी, सूर्य, लक्ष्मी-नारायण, सरस्वती, गंगा को आधार बनाकर लंबी कविताएं भी लिखी हैं, फारसी संस्कृत अध्ययन किया था। उन्होंने संदर्भ ग्रंथ भी दिए हैं। जोंस के बाद चार्ल्स विलिकिन्स एच.टी. कोलब्रुक भी ऐसे ही भारतविद थे।

पुस्तक के अनुसार फोर्ट विलियम कॉलेज के पाठ्यक्रम में जो ग्रंथ शामिल किए गए थे उसमें शकुंतला नाटक, बेताल पच्चीसी, तूती नामा, गुलिस्ता, श्रीमद्भागवत, पुराण, प्रेमसागर, चंद्रावती की पुस्तकें। विषयों के चुनाव की दृष्टि से उन पर भी ब्रिटिश सांसद की छाप महसूस की जा सकती है।
लेखक के अनुसार इस कॉलेज में 1835 तक इसके पुस्तकालय में यूरीपीय विभाग में 5224 पुस्तकें प्राच्य शाखा में 11718 प्रकाशित पुस्तकें और 4225 पांडुलिपियां थी ।आज भी राष्ट्रीय अभिलेखागार में इस कॉलेज से जुड़ी 199 पांडुलिपियां और 742 पुस्तकें उपलब्ध हैं। इस से अनुमान लगाया जा सकता है इस कॉलेज का कितना बड़ा योगदान था।

लेकिन कालांतर में कम्पनी और कॉलेज की भाषा नीति में फर्क और कॉलेज के विभागाध्यक्षों के नजरिये में फर्क के कारण कालेज में खींचतान शुरू हुई और छात्रों की अनुशासनहीनता के कारण यह कालेज 1854 में बन्द हो गया। इस कॉलेज का बंद होना हिंदी के लिए बड़ी दुर्घटना थी लेकिन इस कॉलेज पर भाषायी विभेद और भाषायी सम्प्रदायिकता के बीज बोने के आरोप लगे। कहा गया कि हिंदी उर्दू के झगड़े भी शुरू हुए। अगर शीतांशु औपनिवेशि और पूंजीवाद के आईने में देखने के साथ-साथ भारत मे राष्ट्रवाद के विकास के बरअक्स इस किताब को लिखते तो तस्वीर सुर प्यूरी हो जाती दरअसल कम्पनी ने इस कालेज में दिलचस्पी लेना भी कम कर दिया और लार्ड मैकाले के बाद तो पूरा परिदृश्य ही बदल गया।इसके पीछे ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक नीति काम कर रही थी। 1857 की क्रांति के बाद तो इस कॉलेज के फिर से खुलने का सवाल ही नही उठता था।इस हिंदी का यह पहला घर और चमकने की जगह बिखर गया ।उसके बाद भारतेंदु, सितारे हिन्द, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबू श्याम सुंदर दास ने हिंदी का अपना घर बनाया।


कंपनी राज और हिन्दी (संदर्भ फोर्ट विलियम कॉलेज) : शीतांशु, राजकमल प्रकाशन, मू. 595 रुपये। इस पुस्तक को आप अमेज़न से ऑनलाइन ऑर्डर कर के मँगवा सकते हैं।


विमल कुमार : वरिष्ठ कवि पत्रकार। कविता कहानी उपन्यास व्यंग्य विधा में 12 किताबें। गत 36 साल से पत्रकार। 20 साल से संसद कवर। चोरपुराण पर देश के कई शहरों में नाटक। ‘जंगल मे फिर आग लगी है’ और ‘आधी रात का जश्न’ जैसे दो नए कविता-संग्रह में बदलते भारत मे प्रतिरोध की कविता के लिए चर्चा में। आप लेखक से इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं— arvindchorpuran@yahoo.com


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