घने अंधकार में रोशनी की तलाश

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प्रेम नंदन वत्स

आज सत्य के कई रूप हो गए हैं। जहाँ तक हमारी दृष्टि जा पाती है, हम उस सत्य तक उतना ही पहुँच पाते हैं। आज कई सारी बातें आपस में धागों की तरह उलझी हुई हैं। इन उलझे हुए सत्यों के धागों के सिरों को पकड़कर सुलझाने की कोशिश है उमाशंकर चौधरी की कहानियाँ। उनके नए कहानी संग्रह ‘दिल्ली में नींद’ की चारों कहानियाँ हमारे समय एवं समाज के ताने-बाने एवं व्यवस्था की विद्रूपताओं को उजागर करती हैं। संकलन की सभी कहानियाँ लंबी है। इन कहानियों में कथ्यगत समानताओं के बावजूद उनकी अपनी अलग-अलग जमीन भी है। इस जमीन पर उतर कर हम इन कहानियों को सुलझाने की कोशिश करते हैं।

संग्रह की पहली कहानी है गाँव में रहने वाले वासुकी बाबू की जो छोटे बाबू से बड़े बाबू बनकर कानपुर जा रहे हैं। शहर वासुकी बाबू को बेहद डराता है। इसके कारणों की पड़ताल लेखक ने विस्तृत रूप से की है। जैसे यह स्वयं लेखक का भोगा हुआ दुख हो। खैर, शहर में आकर रहना वासुकी बाबू को ऐसा लगता है जैसे ‘यह तो शेर के मुँह में उसके जबड़ों के बीच जीवित बचे रहना जैसा है।‘ यानि कि अब गए कि तब गए। इसी अब-तब में एक दिन वह हो ही जाता है जिसका अंदेशा जितना वासुकी बाबू को है, उतना ही पाठकों को भी। उनके घर चोरी होती है और वे सिवाय ठगे जाना महसूसने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। चोर की अंतिम चिट्ठी जैसे इस कहानी का मूल है-‘यह चमक दमक यह भव्यता सब छद्म है। सब धोखा है।’

इस कहानी का एक महत्वपूर्ण बिंदु है कथाकार का कहानी के बाद दो हिदायतें देना। इन हिदायतों से स्पष्टतः कहा जा सकता है कि कहानी में कथा-विकास अथवा क्रमानुक्रम, घटनाओं आदि से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कथ्य। कहानी जो कहना चाहती है अगर उसे वह पाठकों तक पहुँचा देती है तो यही कहानी की सफलता है। ये हिदायतें हमें लेखक की सूक्ष्म दृष्टि का पता भी देती हैं।

इस कहानी का एक महत्वपूर्ण बिंदु है कथाकार का कहानी के बाद दो हिदायतें देना। इन हिदायतों से स्पष्टतः कहा जा सकता है कि कहानी में कथा-विकास अथवा क्रमानुक्रम, घटनाओं आदि से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कथ्य। कहानी जो कहना चाहती है अगर उसे वह पाठकों तक पहुँचा देती है तो यही कहानी की सफलता है। ये हिदायतें हमें लेखक की सूक्ष्म दृष्टि का पता भी देती हैं।

संग्रह की दूसरी कहानी कंपनी राजेश्वर सिंह के दुख से हमें अवगत कराती है। साम-दाम-दंड-भेद सारे तरीके लगाकर राजेश्वर सिंह अपनी सत्ता खड़ी करते हैं। मगर एक बेटे का बाप ना बन पाना उनके लिए इतना विनाशकारी होता है कि यह पूरी सत्ता भरभरा कर गिर पड़ती है। यह गिरना केवल स्वयं का दुख नहीं है, बल्कि समाज का दबाव एवं संरचना इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेखक इन दोनों ही कारणों को हमारे सामने कहानी में बारीकी से उजागर करता है।

संकलन की सबसे महत्वपूर्ण कहानी है ‘दिल्ली में नींद’। उड़ीसा से आया चारुदत्त सुनानी किसी भी आम व्यक्ति की तरह दिल्ली में आकर रहने, खाने, जीने के लिए संघर्ष करता है। वह मानसिक तनाव झेलता है, आर्थिक तंगी उसे परेशान करती है। मगर जैसा कि लेखक और सुनानी दोनों का मानना है कि दिल्ली में अगर लाल किला है, कुतुबमीनार है, तो वह क्यों नहीं रह सकता। तो वह रहता है और थोड़ा बहुत खुश भी रह लेता है। मगर विस्थापन के कारण जब सुनानी दिल्ली के दो छोर में बँट जाता है तब कहानी अपने मूल स्वर में आती है। सुनानी के काम करने की जगह दिल्ली के एक छोर पर है तो उसे नया मिला घर दूसरे छोर पर। इन दो छोरों की दूरी हर दिन नापना न सुनानी के बस की बात है, न दिल्ली के किसी आम नागरिक की। इस तरह वह इस दूरी के बीच फँस जाता है। इस फँसाव से निकलने की जुगत है सुरंग खोदना। यह सुरंग सुकून एवं खुशी पाने का, अपने परिवार के साथ अच्छा समय बिताने का साधन है। अब चूंकि ऐसे पल दिल्ली की भाग दौड़ में मिलना अत्यंत मुश्किल है तो हमें-आपको इस सुरंग को बनाना और बचाना चाहिए। साथ ही यह कहना भी जायज ही होगा कि हम सभी कहीं-न-कहीं एक सुरंग खोद रहे हैं ताकि सुनानी की तरह अपने परिवार, अपने घर तक पहुँच सकें। यह सुरंग हमारे अंदर यह उम्मीद बांधती है कि एक दिन हम वापस वहाँ पहुँच सकेंगे जहाँ जाने को हमारा दिल चाहता है। वरना इस सुरंग के बाहर तो घोर नैराश्य एवं अंधकार व्याप्त है ही।

इस कहानी की एक बेहतरीन विशेषता है इसके अंदर बँटे अध्यायों का शीर्षक। ये अपने-आप में ही कहानी को बुन लेते हैं। जैसे सुनानी की जिंदगी के वर्णन के अध्याय का शीर्षक है-‘दिल्ली, मनुष्य, कीड़ा और कीड़े जैसी जिंदगी’। ऐसे शीर्षक लंबी कहानियों के तारतम्य को लेकर टूटने नहीं देते एवं पाठकों की जिज्ञासा बनाये रखते हैं।

उमा शंकर चौधरी कथाकार होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण कवि भी हैं। कविता की यह विशेषता होती है कि वह जितना कहती है, उससे कहीं ज्यादा छुपाती है। यह छुपाना कहीं-कहीं उनकी कहानियों में भी द्रष्टव्य है। इसे हम उनकी कहानियों की एक विशेषता भी कह सकते हैं और सीमा भी। यह मैं पाठकों के ऊपर छोड़ता हूं कि वह इसे किस रूप में देखते हैं।

उमा शंकर चौधरी कथाकार होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण कवि भी हैं। कविता की यह विशेषता होती है कि वह जितना कहती है, उससे कहीं ज्यादा छुपाती है। यह छुपाना कहीं-कहीं उनकी कहानियों में भी द्रष्टव्य है। इसे हम उनकी कहानियों की एक विशेषता भी कह सकते हैं और सीमा भी। यह मैं पाठकों के ऊपर छोड़ता हूं कि वह इसे किस रूप में देखते हैं।

कहानी संकलन की अंतिम कथा ‘दिल्ली में नींद’ जितनी ही सशक्त है। पूरी जिंदगी गाँव में बिताने वाले फुच्चु मास्साब की कहानी है ‘नरम घास, चिडि़या और नींद में मछलियाँ’ फुच्चु मास्साब गाँव के हैं और बीमार होकर दिल्ली अपने बेटे के पास इलाज करवाने आए हैं। दिल्ली की जिंदगी उन्हें कितनी भयावह लगती है यह कहानी का मूल स्वर है। साथ ही निजी-अस्पतालों के फंडे एवं बहुत सारे टेस्टों का जाल किस तरह हमें फांस लेता है, यह भी लेखक विस्तारपूर्वक दिखाता है।

फुच्चु मास्साब अपने गाँव, गाँव के तालाब की मछलियों, नरम घास, चिडि़यों को याद करते हैं। उन्हें उनसे ना मिल पाने का दुख हर रोज सालता है। अपने तालाब किनारे की घास को महसूसने के लिए वह एक  दिन पार्क की घास पर लेट जाते हैं। मगर सिक्योरिटी गार्ड उन्हें वहाँ भी सोने नहीं देता। फुच्चु मास्साब का पार्क में घास पर लेटना अपने गांव को दिल्ली में महसूस करना ही तो है, मगर शहर उसकी भी इजाजत नहीं देता। फुच्चु मास्साब का घास पर लेटना क्या दिल्ली से अपने गाँव के लिए एक सुरंग बनाने जैसा नहीं है? साथ ही विडंबना देखिए कि फुच्चु मास्साब को अंधेरा पसंद नहीं लेकिन दिल्ली की खूब सारी रोशनी से वे डर जाते हैं।

उमाशंकर चौधरी के लेखन की कुछ मूल विशेषताएँ हैं। वे राजनीतिक रूप में व्यवस्था की कुरूपताओं को पकड़ते हैं एवं उसकी कड़ी आलोचना करते हैं। जैसे फुच्चु मास्साब के गाँव के लोग कहते हैं-‘‘सरकार कुछो करे लगा तब तो इ देशे चमक जाएगा।’’ इस स्वर को मुख्यतया उनका उपन्यास ‘अंधेरा कोना’ तीव्रता से अंकित करता है।

इसी प्रकार उनके यहाँ परिवार बचा पाने की जद्दोजहद भी एक प्रमुख स्वर है। इसमें लेखक की सबसे बड़ी चिंता है लड़कियों की सुरक्षा की। चाहे वह वासुकी बाबू हो या सुनानी, दोनों ही अपनी बेटियों की सुरक्षा के लिए चिंतित एवं सतर्क रहते हैं। दोनों पात्रों की पृष्ठभूमि भले ही अलग-अलग हो,मगर इस भाव-भूमि पर आकर दोनों का दुख एकाकार हो जाता है। इस चिंता या सतर्कता की जरूरत आज दिल्ली का हर पिता महसूस करता है।

लेखक के यहाँ गाँव छूटने का भी एक बड़ा दुख है। यह दरअसल सिर्फ गाँव छूटना नहीं बल्कि सुकून एवं शांति का खत्म होना है। शहर हमें ऐशो-आराम तो देता है मगर साथ में बेचौनी एवं भागम-भाग भी अपने-आप आ जाती है। शहर की यह चकाचौंध और उसके पीछे का स्याह चेहरा उमा शंकर चौधरी अपनी कहानियों में उजागर करते हैं।

समग्रतः देखें तो उमा शंकर चौधरी की कहानियाँ अपने समय के अंतर्द्वन्द्वों से निकली हुई हैं। लेखक अपने समय से सीधा संघर्ष करता है और वह भविष्य के प्रति चिंतित है। यह चिंता उसे बेचैन करती है। यह बेचौनी उनकी हर कहानी में हम देख सकते हैं। अगर हम-आप इन कहानियों को पढ़कर बेचैन होते हैं तो यही लेखकीय सफलता है।

उमा शंकर चौधरी की रचनाओं में फैंटेसी का प्रचुर उपयोग हुआ है। फैंटेसी जटिलता को समझने में जितना मदद करती है उतना ही कहानी के रचाव को कसे रखती है। सच हमेशा हर जगह मौजूद है मगर इस यथार्थ में ख्वाबों एवं सपनों का बचा रहना भी जरूरी है। वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग इसी कहानी पर लिखते हुए कहती हैं (जो नया ज्ञानोदय में प्रकाशित है) -‘‘जिस सच में फैंटेसी की जगह ना हो, वह जीने लायक नहीं होता, बस यथार्थ होता है।’’

दरअसल फैंटेसी जीने की एक कला है। मनुष्य की आदिम विशेषता रही है कि वह सोचता है, कल्पना करता है। यह हमें जीवन जीने की प्रेरणा देता है। साथ ही यह भविष्य के प्रति हमें सचेत-सशंकित भी करता है।

दरअसल फैंटेसी जीने की एक कला है। मनुष्य की आदिम विशेषता रही है कि वह सोचता है, कल्पना करता है। यह हमें जीवन जीने की प्रेरणा देता है। साथ ही यह भविष्य के प्रति हमें सचेत-सशंकित भी करता है।

उदय प्रकाश अपने कहानी संग्रह ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ की पूर्वपीठिका में लिखते हैं-“बेंजामिन यह तब लिख रहे थे, जब यूरोप में नाजीवाद मानवता को दूसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल रहा था। वहां का नस्लवाद, जो किसी भी मायने में हमारे देश के जातिवाद और साम्प्रदायिकता से कमतर नहीं है, बीसवीं सदी के मध्य में जिस भय और आतंक को रच रहा था, उसमें बेंजामिन जैसे अत्यंत संवेदनशील कला-चिंतक की पहली चिंता यही थी कि ‘क्या अब कोई कथाकार कहानी में सच लिखने का साहस दिखा पाएगा? क्या कहानी अपने अंत के कगार पर पहुँच गई है?’”

उमा शंकर चौधरी एवं उनके जैसे कथाकार हमें आश्वस्त करते हैं कि अब भी कहानियों में सच लिखा जाएगा और कहानियों का तब तक अंत नहीं हो सकता जब तक ऐसे प्रखर साहित्यकार संसार में मौजूद हैं।


दिल्ली में नींद : उमा शंकर चौधरी [कहानी-संग्रह], राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, मू. 160 (पेपरबैक)। आप इस किताब को अमेज़न से ऑनलाइन ऑर्डर का सकते हैं।


प्रेम नंदन वत्स : युवा आलोचक। खूब पढते हैं। मुख्यतया कथा साहित्य में रूचि है। धीरे धीरे कथा आलोचना में हस्तक्षेप कर रहे हैं। समीक्षक से आप इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं— pnvats05@gmail.com


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