हेनरी त्रायत
हेनरी त्रायत लिखित लियो तोल्स्तोय की जीवनी ’तोल्स्तोय’ का हिन्दी अनुवाद वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल ने किया है, जो शीघ्र ही ’संवाद प्रकाशन’ मेरठ से प्रकाशित हो रही है. एक अंश के रूप में यहां प्रस्तुत है जीवनी के दूसरे अध्याय का तीसरा उप-अध्याय.
१९ नवंबर, १८५५ की सुबह तोल्स्तोय सेंट पीटर्सबर्ग पहुंचे. उन्होंने होटल में अपना बैग छोड़ा, शर्ट बदली, यात्रा की पोशाक के स्थान पर सामान्य पोशाक पहनी और तुर्गनेव से मिलने के लिए निकल पड़े, जो अनिच्केव पुल के पास फोन्टान्का क्वे में रहते थे. जिस व्यक्ति से वह मिलने जा रहे थे वह दस वर्ष उनसे बड़ा था, जिसके विषय में वह सब कुछ जानते थे. वह महान कुलीन पुरुष और महान लेखक था. उनका ’ए स्पोर्ट्स मैन्स स्केचेज’ ने विशिष्ट बौद्धिक वर्ग का हदय जीत लिया था और भूदास मालिकों को प्रचण्ड सद्विवेक दिया था. पुस्तक पढ़ने के पश्चात तोल्स्तोय ने अपनी डायरी में लिखा था, “उन्हें पढ़ने के पश्चात लिखना बहुत कठिन है.”
इवान सेर्गेएविच तुर्गनेव अधिकाशंतया विदेश में रहे थे और पॉलिन बर्डोट (पॉलिन बर्डोट का पति उससे इक्कीस वर्ष बड़ा था और पेरिस में इटैलियन ओपेरा का निदेशक था), जिनसे वह प्रेम करते थे, के कहने पर अपनी मां की मृत्यु के समय और विरासत में हिस्सा प्राप्त करने के लिए १८५० में रूस लौटे थे. गोगोल पर उनके मृत्यु विषयक आलेख के कारण दो वर्ष पश्चात निकोलस प्रथम ने उन्हें उनकी जागीर में रहने के लिए अयोग्य ठहरा दिया था. हाल ही में उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग में रहने की अनुमति दी गई थी, लेकिन देश छोड़ने की नहीं. फ्रांस के प्रति अपने विशेष अनुराग के कारण इस लंबी वियुक्ति से वह बहुत दुखी थे. इससे भी अधिक दुखी वह अपनी जारज संतान ’पॉलिनेट” उर्फ पेलाग्या को लेकर थे, जो तेरह वर्ष पहले उनकी मां की दर्जिन सर्फ से उत्पन्न थी, और जिसे बर्डोट दम्पति ने गोद लिया हुआ था, उनके साथ पेरिस में उनकी जागीर कोर्टवेनेल के Rozzay-en-Brie में रह रही थी.
जार्ज सैण्ड, मेरिमी, मुसेट, शापिन और गौनोड के मित्र, इवान तुर्गनेव योरोपियन सुरुचिपूर्ण जीवन के कायल थे. जब तोल्स्तोय ने उनके पुस्तकालय की दहलीज को पार किया, उन्होंने अपने समक्ष एक भारी-भरकम शरीर, प्रभावशाली, सौम्य और कुलीन चेहरा, निष्कपट नीली आंखें, सुव्यवस्थित पार्शिच गलमुच्छें, लंबे कोमल हाथ, मृगी जैसी बड़ी आखें और झुके हुए कंधों पर एक प्रकार की शिथिलता वाले व्यक्ति को देखा. दोनों व्यक्ति उत्साहपूर्वक आलिंगनबद्ध हो गए. वे समानरूप से मित्र बनने को इच्छुक थे. तुर्गनेव का आग्रह था कि उनका युवा मित्र उनके यहां आकर रहे, और तोल्स्तोय ने तत्परता के साथ उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. उनके लिए एक बेड निर्धारित किया गया. उसी शाम नेक्रासोव से उनका परिचय हुआ. उन्होंने साथ भोजन किया, चेस खेला, और साहित्य पर चर्चा की. आर्मी कैंप के कठोर जीवन के बाद इस साहित्यिक संवाद ने तोल्स्तोय के मस्तिष्क को लंबे उपवास के बाद शराब की भांति प्रभावित किया. प्रचुर प्रशंसा से वह प्लावित हो उठे और स्पष्ट अनुभव किया कि वह अपने साथी लेखकों के लिए विशेष रुचि का विषय हैं. और प्रेम और समादर अनुभव करते हुए प्रतिदान में प्रेम और समादर देना चाहा. “तुर्गनेव एक आश्चर्यजनक व्यक्ति हैं…“, “ नेक्रासोव दिलचस्प हैं, उनमें बहुत से अच्छे गुण हैं…” उन्होंने लिखा.
आगामी दिनों में उनके परिचय का दायरा बढ़ता गया. ’दि क्ण्टेम्पोररी’ के लिए कार्य करने वाला प्रत्येक व्यक्ति उस तेजस्वी युवा लेखक और सेवास्तोपोल के हीरो से मिलना चाहता. वह द्रुझ्निन,त्युचेव, गोंचारोव, मेकोव, आस्त्रोव्स्की, ग्रिगोरोविच, सोलोगब, प्सेम्स्की, कोर्च, दद्स्किन, पानाएव, पोलोंस्की, ओगार्योव, जेम्चुझ्निकोव, अन्नेन्कोव, आदि (सभी लेखक और कवि) से मिले. आम लोग तत्काल उस सैनिक के प्रति आकर्षित हुए. उनका नाम उनके पत्राचारों और निजी डायरियों में प्रायः प्रकट होने लगा था.
“तुम कल्पना नहीं कर सकते कि वह कितना रुचिकर और विशिष्ट व्यक्ति (तोल्स्तोय) है, तथापि मैंने उसे उसके गंवारू उत्साह और हठीपन के कारण दीक्षित किया.” तुर्गनेव ने अन्नेन्कोव को लिखा. “उसके लिए मेरा प्रेम असाधारण है, कोई चाहे तो कह सकता है लगभग पैतृक.” “लियो निकोलाएविच तोल्स्तोय पहुंच गए हैं” नेक्रासोव ने बोत्किन को लिखा. “कितना रुचिकर इंसान, कितना बुद्धिमान! एक आकर्षक, ऊर्ज्वस्वी, निस्वार्थ युवा, एक वास्तविक बाज! शायद एक चील! मैं उसके लेखन की अपेक्षा उसे अधिक पसंद करता हूं. और ईश्वर जानता है, यही पर्याप्त है! वह सुन्दर नहीं है, लेकिन उनका चेहरा अत्यथिक आकर्षक है, एकदम प्रभाशाली और सौम्य. उनकी दृष्टि प्रेमस्पर्शी है. मैं उन्हें बहुत पसंद करता हूं.” “वह प्रथम श्रेणी के व्यक्ति हैं” द्रुझ्निन ने लिवेन्त्स्वेव को लिखा, “और एक सच्चे रूसी अधिकारी, आश्चर्यजनक वृत्तान्तों से परिपूर्ण. लेकिन वह निस्सार शब्दों से घृणा करते हैं और घटनाओं के प्रति उनके विचार ठोस हैं….” और उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, “तोल्स्तोय ने एक एकांतवासी की भांति व्यवहार किया. उदाहरणार्थ वह नहीं जानते कि सेंसर कमिटी क्या थी और किस मंत्रालय के साथ वह संबद्ध थी. फिर उन्होंने हमें बताया कि वह अपने को साहित्य का व्यक्ति नहीं मानते….”
उनके सहयोगियों ने इस नवदीक्षित की सरलता को पूर्णरूप से मोहक पाया. यह कैसे संभव था कि इतना प्रतिभाशाली एक साहित्यिक व्यक्ति इतना साधारण था? सबसे पहली बात जो उन्हें करनी थी वह वैचारिक झगड़ों से परिचित करवाना था जिसने राजधानी के विशिष्ट वर्ग को दो भागों में बाट रखा था. एक कैंप ’पाश्चात्य विचारों से प्रभावित था जो यह मानता था कि रूस पश्चिम की अपेक्षा पिछड़ा देश था और सोचता था कि उसे योरोप के आदर्शों का अनुसरण करते हुए आत्मोन्नति करना चाहिए. दूसरे कैंप में स्लैवोफिल्स थे., जो योरोप की सभी प्रकार की बौद्धिक श्रेष्ठता को अस्वीकार करते थे और मानते थे कि रशियन भी अद्वितीय और विशिष्ट थे. दोनों कैंपों के बीच अधिकांश अनिर्णीत मध्यमार्गी दोलायमान होते रहते थे. ’दि कण्टेम्पोररी में पक्के पाश्चात्यवादियों ने बहुमत बना रखा था. कुछ अंशदाता, यद्यपि, पहले ही कम प्रसिद्ध चीजों पर दृष्टि डालने के बजाय साहित्यिक समीक्षाएं अधिक देखते थे. विरोधी संपादक अच्छे लेखकों के लिए बढ़कर बोली लगाते थे. यह तुच्छ प्राणि-संग्रह स्वार्थपूर्ण हलचल, अहमन्यता और ईर्ष्या से भरी हुई थी. तोल्स्तोय ने अनुभव किया कि वह बिल्कुल भिन्न जाति से संबन्ध रखते हैं. युद्ध की वीभत्सता के बाद वह केवल एक चीज चाहते थे, एक अच्छा समय. विचारों की बाजीगरी उनके लिए अच्छी है जो असमर्थ हैं अथवा परितृप्त. आनंद की उनकी रुचि ने तुर्गनेव को आहत किया, जो अत्यंत परिष्कृत और हृदय के मामले में झुके हुए थे. एक या दो बार वह अपने अतिथि के साथ आमोद-प्रमोद के लिए गए और भौंचक घर लौटे. वह नहीं समझ पाए कि ’सेवोस्तोपोल’ का लेखक उदासीन होकर पीते, जिप्सियों के साथ गाते और नित्य वेश्यालयों में जाते हुए इतना नीचे कैसे गिर सका. निश्चित ही बाद में तोल्स्तोय ने शहर के रात्रि जीवन पर पश्चाताप प्रकट किया था. “पाब्लोस्क गया” उन्होंने अपनी डायरी में लिखा. (पाब्लोस्क सेण्ट पीटर्सबर्ग से बाहर १७ मील दूर एक आनंद स्थल था. डयरी लिखने की तिथि थी मई १४, १८५६) “घृणित. लड़कियां, हास्यास्पद संगीत, लड़कियां, यांत्रिक बुलबुलें, लड़कियां, गर्मी, सिगरेट का धुआं, लड़कियां, वोद्का, चीज़, चीख और शोर, लड़कियां, लड़कियां, लड़कियां. सभी ऎसा दिखाने का प्रयत्न कर रहे थे कि वह अच्छा समय बिता रहे हैं और लड़कियों को पसंद कर रहे हैं, लेकिन सब व्यर्थ.” और अपने परिधान पर गर्वित, “नशे में धुत्त, घिनावने” “विशुद्ध अफसरों” जैसा आचरण करते नागरिकों से उन्हें खीझ हुई. यद्यपि वह सैन्य वृत्ति को नापसंद करने का दावा करते थे, उन्हें शहरी लोगों की ड्रेस सूट से घृणा हुई जिन्होंने न कभी संतरी की ड्यूटी की थी अथवा अपने साथी को अपने बगल में गोली लगने पर गिरते देखा था. लोग बिना पैसे के उतने ही घृणित थे, जितने “जिनके पास होता है.” तुर्गनेव दूसरी श्रेणी से संबन्ध रखते थे. उनके द्वारा प्रभावित किए जाने के बाद तोल्स्तोय उनकी ओर उन्मुख हुए और प्रतिशोधी कटुता के बिना उनकी आलोचना की. इस अतिपक्व व्यक्ति की कैसी तुच्छता! उनके खूबसूरत कपड़े, उनका परफ्यूम, स्त्रियों के साथ उनके प्रेमालाप, उन्हें रिझाने की उनकी उत्सुकता विज्ञान के भविष्य पर उनका विश्वास, उनका शालीन डिनर. वह अपने कुक को एक हजार रूबल देते थे और हमेशा अपनी प्रतिभा की डींग हांकते थे. यह दिखाने के लिए कि वह उन मनस्वियों, कमजोरपेशियों वाले सज्जनों से भिन्न थे. तोल्स्तोय अपने बालों को माथे से पीछे की ओर झाड़ते, मौज में नीचे झुकी हुई मूंछे रखते, जो उनके मुख की एक निश्चित और गंभीर मुद्रा प्रकट करती. और इसी प्रकार फरवरी १५, १८५६ के एक फोटोग्राफ में वह कठोरतापूर्वक खड़े, हाथों को छाती से बांधे उदासीन भंगिमा में भद्र सहकर्मियों के साथ दिखाई दे रहे थे. उनमें तुर्गनेव, आस्त्रोव्स्की, द्रुझ्निन, ग्रिगोरिविच और गोंचारोव थे.
एक सुबह युवा कवि फेत, जो इवान तुर्गनेव के अत्यंत प्रशंसक थे, उनसे मिलने आए और रिबन से सुसज्जित, सेंट एनी (St. Anne) पुरस्कार से सम्मानित एक तलवार हॉल में लटकी देखकर अचंभित हुए.
“यह तलवार किसकी है?” उन्होंने नौकर जखार से पूछा.
नौकर धीमी आवाज में हॉल के बायीं ओर के दरवाजे की ओर इशारा करते हुए फुसफुसाया:
“यह काउण्ट तोल्स्तोय की है. वह हमारे साथ ठहरे हुए हैं.”
फेत स्टडी में गए जहां तुर्गनेव “पीटर्सबर्ग फैशन” में चाय पी रहे थे. वह विश्राम वाली स्थिति में थे. चेहरा शांत और उनकी भावाकृति भद्र थी, लेकिन वह दरवाजे की ओर सरसरी दृष्टि से देख रहे थे. “जितना समय मैंने उनके साथ व्यतीत किया” फेत ने लिखा, “हमने धीमें स्वर में बातें कीं, जिससे काउण्ट जाग न जाएं, जो दूसरे कमरे में सो रहे थे. ’पूरे समय ऎसे ही…’ तुर्गनेव ने मुस्कराते हुए कहा. “यह सेवास्तोपोल से अपनी बैटरी से सीधे यहां आए, मेरे साथ आकर रहने लगे और सिर के बल रंगरेलियों में डूब गए. लाम्पट्य, जिप्सियां, रात-भर जुआ और फिर मृत व्यक्ति की भांति अपरान्ह के दो बजे तक सोना. पहले मैंने इन्हें रोकने का प्रयत्न किया, लेकिन अब मैंने सब छोड़ दिया है.”
चूंकि तुर्गनेव मार्या तोल्स्तोय के प्रति आकर्षित थे, जिनसे वह देहात में एक वर्ष पहले मिले थे. उन्होंने अपने अतिथि के असभ्य व्यवहार के प्रति अपनी खीझ को कुछ समय तक दबाए रखा. लेकिन जितना ही उन्होंने अपने को रोका तोल्स्तोय उन्हें भड़का कर उतना ही आनंदित होने लगे. उनके झगड़े, जो पहले विनोदी थे, तेजी से द्वेष में परिवर्तित हो गए. जिस क्षण दूसरे वहां उपस्थित होते, तब भी वे एक-दूसरे को सहन नहीं कर पाते थे. तोल्स्तोय सभी का विरोध करते. यह उनका स्वभाव बन गया था. यह ऎसा था, मानो जान-बूझकर किया गया विरोध था. मानो वह स्वयं को ही अपना अस्तित्व सिद्ध करते थे. ऎसा प्रतीत होता मानो वह कहना चाहते, “मैं सोचता हूं—प्रत्येक का विरोध—इसीलिए मेरा अस्तित्व है.” एक से अधिक अवसरों पर फेत विस्मय में, दोनों व्यक्तियों के बीच भौंडे दृश्यों के साक्षी रहे. लेखकों के मध्य विश्वास के अभाव के रहते तोल्स्तोय की टिप्पणियों से आहत तुर्गनेव रोष और बेतहाशा अंग संचालन सहित बड़बड़ाना शुरू कर देते, जबकि तोल्स्तोय अत्यंत शांत, अपनी जलती भूरी आंखों से शुष्कतापूर्वक उन्हें चिढ़ाते रहते.
“मैं यह विश्वास करने से इंकार करता हूं कि आपके शब्द सही दृढ़ धारणा को अभिव्यक्त करते हैं. मैं अपने हाथ में खंजर अथवा तलवार थामें यहां खड़ा हूं, और कहता हूं, “जब तक मैं जीवित हूं…कोई भी इस कमरे में प्रविष्ट नहीं हो सकेगा.” यही दृढ़ विश्वास है. “लेकिन आप सभी एक-दूसरे से अपने वास्तविक विचार छुपाने का प्रयास करते हैं, और उसे ही दृढ़ धारणा कहते हैं.”
“फिर, आप हम सबके साथ क्यों आए?” तुर्गनेव क्रोध में चिचियाते स्वर में चीखे. “यह स्थान आपके लिए नहीं है. प्रिंसेज के पास जाओ—.”
“मुझे आपसे पूछने की आवश्यकता नहीं कि मुझे कहां जाना है.” तोल्स्तोय ने प्रत्युत्तर दिया, “और यहां अथवा कहीं अन्यत्र मेरी उपस्थिति आपकी निरर्थक बकवाद को वास्तविक दृढ़ धारणा में नहीं बदलने वाली.”
’दि कंटेम्पोरेरी’ के लिए सहयोग करने वाले ग्रिगोरिविच तथा दूसरे लोगों ने नेक्रासोव के अपार्टमेण्ट के दृश्य का वर्णन किया है. “तुर्गनेव चीखे और अपनी गर्दन पकड़ ली और मरणासन्न चिंकारा जैसी अपनी आंखों सहित फुसफुसाए, “मैं और अधिक नहीं सह सकता! मुझे ब्रोंकाइटिस है.’ और लंबे डग भरते हुए तीनों कमरों में इधर से उधर होने लगे. ’ब्रोकांइटिस’ तोल्स्तोय बुड़बुड़ाए. ’ब्रोंकाइटिस’ एक काल्पनिक बीमारी है. ब्रोंकाइटिस एक धातु है.’ नेक्रासोव, गृहस्वामी, गले तक उछलते हृदय से वहां खड़े थे. वह तुर्गनेव को खो देने से जितना भयभीत थे उतना ही तोल्स्तोय को खो देने से भी थे, क्योंकि दोनों ही ’दि कंटेम्पोररी’ के लिए बहुमूल्य वरदान थे. और उन्होंने मध्यस्थता करना चाहा. हम सभी अपनी समझ रखते हैं और नहीं जानते क्या कहना है. तोल्स्तोय अप्रसन्न बीच के कमरे में पूरी तरह फैलकर सोफे पर लेटे हुए थे. तुर्गनेव अपने शार्ट कोट की जेबों में हाथ डाल उसके पुछल्ले को फैलाए आगे-पीछे चहल-कदमी कर रहे थे. अनर्थ रोकने की कोशिश करते हुए मैं, सोफा के निकट गया और बोला, “प्रिय मित्र, तोल्स्तोय, इतना अधिक उत्तेजित मत हो. आप जानते हैं कि तुर्गनेव आपको प्रेम और आदर करते हैं.” “मैं उन्हें अनुमति नहीं दूंगा.” नथुने फुलाते हुए तोल्स्तोय ने कहा. “वह निरंतर यह सब कुछ इसलिए करते हैं जिससे मुझे उत्तेजित कर सकें. इस समय सोद्देश्य मेरे सामने अपनी लोकतांत्रिक जांघो को हिलाते-डुलाते उन्हें देखो.”
यह जानकर कि तुर्गनेव जार्ज सैंड के प्रशंसक थे, एक बार, नेक्रासोव के यहां डिनर के समय उन्होंने यह घोषणा की कि यदि उनकी नायिकाएं वास्तव में अस्तित्व में थीं, यह आवश्यक होगा कि उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, “उन्हें जल्लाद की गाड़ी पर कोड़े बरसाते हुए सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों पर घसीटा जाना चाहिए.” तुगनेव ने विरोध करना प्रारंभ किया और उन्हें कटूक्तियों की बौछार मिली कि तीन दिनों तक वह अस्वस्थ रहे. “मैंने तोल्स्तोय से झगड़ा किया” उन्होंने अपने मित्र बोत्किन को लिखा, “शिक्षा का अभाव एक या दूसरे रूप में प्रदर्शित होता ही है—नेक्रासोव के घर डिनर के समय उन्होंने जी. सैंड के विषय में जो अप्रिय और आपमानजनक बातें कहीं उन्हें मैं दोहरा नहीं सकता. बहस बहुत गर्म थी. एक शब्द में, उसने हम सबमें खीज उत्पन्न की और स्वयं को दुष्टतम अवस्था में प्रदर्शित किया.” “ केवल जार्ज सैंड को लेकर युवा अफसर की विद्वेषपूर्ण झुंझलाहट नहीं थी. उसने निर्वासित क्रान्तिकारी हर्जेन पर भी आक्रमण किया, जिनकी पत्रिका ’दि बेल’ चोरी से सरहद तक ले जायी जाती है. और शेक्सपीयर और होमर को वह ’शब्दाडंबर गढ़ने वाला’ कहता है. लेकिन उसके हंगामें और उपहास को ’दि कंटेम्पोरेरी’ के मित्र क्षमा कर देते हैं और उनकी कृपा उसे उत्तेजित करती है.”
पाश्चात्यों से मोहभंग हो जाने के बाद उन्होंने स्लावोफिल्स से जुड़ने का निर्णय किया. वह मिल्युतिन और कवेलिन से मिलने गए और अक्साकोव गोर्बुनोव और किरेएव्स्की से मित्रता की. ऊपरी तड़क-भड़क में आवेष्टित पश्चिमी सभ्यता के ऊपर अच्छी प्राचीन रूसी परम्पराओं की श्रेष्ठता पर उनकी बातों को सुना और जल्दी ही अनुभव किया कि वे उनके विरोधियों की अपेक्षा बेहतर नहीं थे. “उनके विचार बहुत ही संकीर्ण और अवास्तविक थे.” ऑर्थोडॉक्स धर्म के प्रति उनके लगाव के कारण भी उन्होंने उन्हें नापसंद किया. “जिसकी सत्यता के निरर्थक विकृतरूप और ऎतिहासिक अननुरूपता के कारण” वह निंदा करते थे. और अंत में वह इसलिए भी उनका सम्मान नहीं करते थे क्योंकि वे सरकार द्वारा संरक्षित थे, जबकि सेंसर ने पाश्चात्यों को दबा रखा था. निश्चित रूप से वह यह तय नहीं कर सके कि उन्हें किधर जुड़ना चाहिए. उन्होंने तय किया किसी से भी नहीं. ’ऎसा क्यों? बहुत सरल : पाश्चात्य और स्लावोफिल्स में एक कमी सामान्य थी—वे बुर्जुआ थे, ईश्वरविहीन धर्म के पुजारी.’
वह इन पेशेवर लेखकों की अपेक्षाकृत सुखद स्थितियों, सार्वभौम संस्कृति, मेज के प्रेम के आनंद (शराब) और उनकी परिष्कृत शिष्टाचार भावना के प्रभुत्व के प्रति अपमान के रूप में उन्हें ठेस पहुंचाना चाहते. यह भूलकर कि वह स्वयं भयंकर पियक्कड़ और कुछ बदनाम घरों के सदस्य थे. वह उन पर “निर्नैतिक, अधिकांश को क्षुद्र स्वभाव वाले दुश्चरित्र, व्यक्ति” होने का आरोप लगाते. जिसने दृढ़धारणा की रक्षा में अपने एक बाल का भी उत्सर्ग नहीं किया वह तुर्गनेव पर आक्रमण कर रहे थे. अपने समय के प्रत्येक लेखक से अपनी प्रथम रचना पर शाबासी पाकर, उन्होंने उनकी “साहित्यिक उपेक्षा” की भर्त्सना की. उनके लिए रूस में केवल आभिजात्यता और सामान्य लोग ही उपयुक्त सम्मान की चीज थे. वह पहले वर्ग के सदस्य थे और परवर्ती के प्रति आकर्षित थे. इन्हीं दो यथार्थ तत्वों के बीच एक तीसरा स्वयं प्रवेश करता है, एक बिल्कुल नया और कृत्रिम, निरर्थक और अविश्वसनीय प्राणी, ’बुद्धिजीवी’—–बुद्धिजीवी अनुभव से नहीं पुस्तकों से पोषित होता है. वह मानता है कि अनुसरणकर्ताओं को निर्देश देना उसका अधिकार है और वह कभी संघर्ष नहीं करता अथवा कभी खेत नहीं जोतता. अधिकांश समय उसका पेन कुछ भी नहीं, बल्कि अयथार्थ रचता रहता है.
तोल्स्तोय की बातचीत और उनकी डायरी में ’असत्य’ शब्द की बहुत अधिक पुनरावृत्ति हुई है. जल्दी ही उन्होंने तुर्गनेव का अपार्टमेण्ट छोड़ दिया. ऑफीसर्स स्ट्रीट के ग्राउण्ड फ्लोर के अंधेरे अपार्टमेण्ट में शिफ्ट होने के बाद भी उन्होंने अपने मित्र से मिलने पर उन्हें दुखी करना जारी रखा. अचानक अत्यधिक सतही बातों के बीच तुर्गनेव तीक्ष्ण क्षुरिका की भांति स्वयं को बिंधा अनुभव करते और समझते कि तोल्स्तोय पुनः संघर्ष पर उतारू हैं. “इवान सेर्गीविच तुर्गनेव ने मुझसे कहा,” गार्शिन ने लिखा, “कि उन्होंने कभी इस प्रकार की तीक्ष्ण झगड़ालू द्वेषी टिप्पणियां अनुभव नहीं कीं, जो किसी व्यक्ति में यदि यथेष्ट आत्मनियंत्रण नहीं तो उसे पागल करने के लिए पर्याप्त हों.” इस प्रकार के दृश्यों के बाद तुर्गनेव बिखर जाते, उनकी आंखें भर आतीं, और वह मित्रो से शिकायत करते.” “उसके पास सद्भावना प्रदर्शन के लिए एक भी स्वाभाविक शब्द नहीं हैं.” हलके से वह कराहे, “वह सदैव अपने को पोज करते हैं, और मैं उस जैसे बौद्धिक कुलीन व्यक्ति के असंतोषजनक हास्यास्पद ढोंग को रंचमात्र भी समझ नहीं पाता—आप उन जैसों पर शिक्षा का कैसा भी रोगन पेंट करें उनकी बुद्धिहीनता सदैव प्रकट होती रहेगी—और यह सब अशिष्टता वे केवल ध्यानाकर्षित करने के लिए करते हैं.”
एक दिन वह इस मनोवृत्ति पर पानाएव से चर्चा कर रहे थे और पानाएव ने टिप्पणी की, “आप जानते हो, तुर्गनेव, आपको इस प्रकार प्रलाप करते हुए सुनकर मैं सोचता हूं कि आप उनसे ईर्ष्या करते हैं बशर्तें कि मैं आपको अच्छी तरह नहीं जानता.”
“मैं उनसे क्यों ईर्ष्या करूंगा? कयों? मुझे एक कारण बताओ.” तुर्गनेव चीखे.
और अकस्मात वह ठहाका लगाकर हंस उठे.
यदि तुर्गनेव झुंझलाते हुए घर चले जाते, उनका युवक सहकर्मी “प्रेम में पड़ी स्त्री” की भांति कुत्तों की तरह उनके पीछे दौड़ लेता. मेल-मिलाप उतना ही आवश्यक था जितना झगड़ा. एक भी बलि के बिना जल्लाद क्या ऊब से मर नहीं जाएगा? अपनी मित्रता के ऊंच-नीच को सतर्कतापूर्वक विस्तार से उन्होंने अपनी डायरी में दर्ज किया है. “फरवरी ७, १८५६- “तुर्गनेव के साथ झगड़ा” “फरवरी १३, “तुर्गनेव के यहां डिनर. हमने बनाया.” “मार्च १२, “तुर्गनेव के साथ झगड़ा. मैं सोचता हूं, इस बार अच्छी बात के लिए.” “अप्रैल २०, “तुर्गनेव से मिलने गया, और उनसे बहुत मनोरंजक बातें कीं.” “अप्रैल २५, “तुर्गनेव के यहां जाना आनंदकर था. कल दिन भर के लिए बुक किया जाना चाहिए.” मई ५, “सभी का अपमान किया. तुर्गनेव घर चले गए—मैं अवसाद में हूं.” और अंत में जब बहुत विक्षुब्ध तुर्गनेव एकांतवास के लिए अपने देहात स्पास्कोए वाले घर चले गए अनुतप्त एकांतवासी (तोल्स्तोय ) ने ऑण्ट ट्वायनेट को लिखा, “अब वह चले गए, और मैं अनुभव करता हूं कि मुझे उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए था. यद्यपि हम कुछ और नहीं केवल तर्क-वितर्क करते थे. उनके बिना ऊब से पीड़ित हूं.”
उन्हें पीटर्सबर्ग पसंद नहीं था. वह अपने साथी लेखकों के साथ सहज अनुभव नहीं करते थे, भले ही उनकी धारणाएं कुछ भी क्यों न हों और वह बाहर अपनी इच्छा के बजाए अपनी आदत के कारण बाहर जाया करते थे. उन पर सदा कृपालु उनके वरिष्ठों ने उन्हें शिल्प विद्यालय में स्थानांतरित कर दिया, जहां अपनी उपस्थिति की आवश्यकता उन्होंने अनुभव नहीं की. मिलटरी करियर के रूप में उनकी मिलटरी यूनीफार्म बची थी. उनके खाली समय का प्रत्येक क्षण साहित्य के लिए समर्पित था. जनवरी १२, १८५६ सेवास्तोपोल का तीसरा रेखाचित्र (सेवास्तोपोल इन अगस्त) ’दि कंटेम्पोररी’ में प्रकाशित हुआ. पहली बार एल.एन.टी. के स्थान पर लेखक का पूरा नाम, “काउण्ट लियो तोल्स्तोय” प्रकाशित हुआ. सम्पादक का नोट था कि एल.एन.टी. के इनीशियल्स से पूर्व में प्रकाशित ’चाइल्डहुड’ ’ब्वायहुड’ ’सेवास्तोपोल इन दिसम्बर’ और अन्य दूसरी कहानियां इसी लेखक की थीं. ’यूथ’ पर कार्य करते हुए उन्होंने कुछ छोटे वृत्तांत लिखे – ’दो हुस्सार’, ’दि स्नो स्टार्म’, ’ ’ए लैंड लार्ड्स मार्निंग’ और यह सिद्ध करने के लिए कि वह किसी विद्यालय अथवा पार्टी से संबद्ध नहीं, उन्होंने अपनी कुछ पाण्डुलिपियां ’दि कंटेम्पोररी’ के कुछ पाश्चात्यों को दिया और कुछ कात्कोव की प्रतिक्रियावादी पत्रिका ’रशियन हेराल्ड’ को. चूंकि जीवन निर्वाह के लिए वह अपने लेखन पर निर्भर नहीं थे, उन्हें जनता, आलोचकों अथवा सहकर्मियों की परवाह नहीं करनी थी. वह वह कर सकते थे जो वह चाहते थे. दरवाजा तोड़ना, मेज पर मुक्का मारना, ऊंचा और सच बोलना. कूटनीति उन्हें नहीं आती थी और चाटुकारिता तो बिल्कुल ही नहीं. और यह पूर्णतया सच है कि जो उनके व्यवहार से उत्तेजित होते, वे उनकी कला के वशीभूत होते थे. नए कार्य के स्वागत पर कभी कोई असत्य टिप्पणी नहीं होती थी. यह जानकर उन्हें निराशा होती कि उनके विरोधी उनसे कहीं अधिक सुयोग्य थे.
रूपसिंह चन्देल का परिचय : 12 मार्च- 1951 को कानपुर, उ.प्र. के गांव (नौगवां गौतम) में जन्म । शिक्षा – कानपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में पी-एच.डी.। अब तक ६५ पुस्तकें प्रकाशित: जिनमें १२ उपन्यास, १५ कहानी संग्रह, ३ संस्मरण पुस्तकें, ३ किशोर उपन्यास,१० बाल कहानी संग्रह, ३ आलोचना पुस्तकें सहित–यात्रा संस्मरण, लघुकथा संग्रह, साक्षात्कार पुस्तक (साहित्यकार,सवांद और विचार— हिन्दी,पंजाबी और कन्नड़ के ९ साहित्यकारों के साक्षात्कार), शोधपूर्ण जीवनी (दॉस्तोएव्स्की के प्रेम); महान रूसी लेखक लियो तोल्स्तोय के अंतिम और अप्रतिम उपन्यास – हाजी मुराद का अनुवाद, ’तोलस्तोय का अंतरंग संसार’ (तोल्स्तोय पर उनके परिजनों, मित्रों, लेखकों, रंगकर्मियों आदि के ३० संस्मरणों का अनुवाद.) और हेनरी त्रायत लिखित तोल्स्तोय की जीवनी ’तोल्स्तोय’(८०० पृष्ठ) का अनुवाद।