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कपिल ईसापुरी

दोनों वकीलों ने फिर से काफी देर तक गरमागरम बहस की। इस बीच जज महेन्द्र के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि जज किसी अन्तिम फैसले की तरफ बढ़ने का प्रयास कर रहा है।

“आप अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हैं महेन्द्र बाबू।”जज ने महेन्द्र की आँखों में आँखें डालते हुए कहा। महेन्द्र चुप रहा तो जज ने फिर से अपनी बात दोहराई। महेन्द्र ने एक नजर अपने वकील एवं पिताजी पर डाली। वो दोनों ही उससे अपनी सफाई में बोलने के लिए कह रहे थे। उसे गीता की कसम खिलाई गयी, तो उसने कहा—

“अरे इसकी क्या जरूरत थी? वैसे भी मैं इन सब चीजों पर अब उतना विश्वाास नहीं करता हूँ। तब इसका लाभ भी क्या है।”जज ने उसे घूरती हुई निगाह से ऐसे देखा, जैसे वो किसी अधर्मी को सुन रहा हो।

“कुछ कहना चाहते हो, या…।”जज ने कुछ तेज आवाज में कहा।

“हाँ, कहने को वैसे बचा ही क्या है? मुझे जेल में डाल दिया गया है, ये जाने बिना कि ‘रितु’ की मृत्यु कैसे हुई थी। मुझे तो पहले ही अपराधी मान लिया गया है। खैर इसमें किसी की गलती भी क्या है? कानून तो ऐसे ही काम करता है। जज साहब आपको तो पता ही होगा कि जेल में दो तिहाई बन्दी बेकसूर बन्द हैं। बहुत से बन्दियों के पास पैसे भी नहीं हैं केस लड़ने के लिये। बहुत से वहाँ से निकलना भी नहीं चाहते हैं। यही ठीक भी है, बाहर निकलकर ही क्या मिल जाता है? व्यक्ति की कब जवानी ढल जाती है, कब वो बूढ़ा हो जाता है और कब मृत्यु के गाल में समा जाता है। ये उसे समझ ही नहीं आता है।

मुझे तो सभी लोग जेल में बन्द दिखायी देते हैं। बुरा मत मानिएगा, आप भी जेल में ही बन्द हैं एक तरह से जज साहब। देखिए न? आप डयूटी पर प्रतिदिन आने के लिये मजबूर हैं एकाध अपवाद को छोड़कर। रोज सुबह से शाम, फिर रात कब हो जाती है, आपको पता भी नहीं चलता होगा। आपकी इतनी उम्र व्यतीत हो गयी है और आपको ये सब पता भी नहीं चला होगा। पत्नी, बच्चे, परिवार, समाज का बोझ… अगर धर्म को मानते होंगे तो उसका बोझ, और हाँ अगर जाति को मानते होंगे वैसे मानते ही होंगे, इस देश में रहें और जाति को न मानें, ऐसा हो ही नहीं सकता,तो फिर उस जाति का, जाति-बोध का बोझ… कितने बोझ से आप दबे हुए जीवन जीते हैं प्रतिदिन।

रोज उसी जीवनचर्या को जीते-जीते ऊबे नहीं हैं आप। एक तरह की जेल है ये। ईसाई धर्म में सही कहा गया है—ईश्वर ने एडम एवं ईव को पृथ्वी पर सजा देने के लिये भेजा है। उन्हीं की हम संतान हैं न। तो एक तरह से हम सब सजा काट रहे हैं। हाँ, जेल में रहते हुए सजा का स्वरूप कुछ बदल जाता है।”महेन्द्र कुछ और बोलना चाह रहा था, लेकिन जज साहब ने झुंझलाते हुए कहा—

“तुम्हें कुछ कहना है अपनी सफाई में, या नहीं।”

“मुझे बस यही कहना है कि मैं झूठ नहीं बोलूँगा। मेरे दिमाग में रितु को मारने का कभी विचार ही नहीं आया, अगर मैं ये कहूंगा तो ये झूठ होगा। मैं जब बहुत परेशान हो गया था, तो कई बार उसको अपनी जिन्दगी से हटाना चहता था। आप तो जानते ही हैं कि हिन्दू धर्म में पत्नी से अलग होना लगभग असम्भव है। तो मैंने कई बार उसकी मौत चाही थी। सच कहूं तो कई बार उसकी हत्या करने के बारे में भी सोचा था। लेकिन कभी मैंने ऐसा किया नहीं। सच कहूं तो मुझे जेल से बहुत डर लगता था तथा उस समय भगवान, स्वर्ग-नरक को भी बहुत मानता था, इसलिए भी ऐसा कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था।

उस दिन भी ऐसा ही हुआ। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था। उसने उस दिन सारी हदें पार कर दी थीं। मेरे मन में उसकी हत्या का विचार अवश्य आया था। अब तक का सबसे जोरदार विचार था वो। मैं उसके पीछे भी शायद एक बार इसी भाव के वश में होकर दौड़ा था, लेकिन मैंने उसे मारा नहीं।

उस दिन भी ऐसा ही हुआ। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था। उसने उस दिन सारी हदें पार कर दी थीं। मेरे मन में उसकी हत्या का विचार अवश्य आया था। अब तक का सबसे जोरदार विचार था वो। मैं उसके पीछे भी शायद एक बार इसी भाव के वश में होकर दौड़ा था, लेकिन मैंने उसे मारा नहीं।

लेकिन ये भी सच है कि मुझे उसके मरने का बहुत अफसोस नहीं हुआ था उस समय। जो अफसोस हुआ था, वो जेल जाने के डर से ही संभवत: उपजा था। मेरे मन में यही विचार आ जा रहे थे कि मेरे मारे बिना ही वो मेरे रास्ते से हट गयी, एक तरह से कई बार मुझे राहत सी भी महसूस हुई थी। ऐसा भी लगा था कि चलो रोज-रोज की झंझट समाप्त हुई।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे उसकी मौत का बिल्कुल भी दुख नहीं हुआ हो। अरे साहब क्यों नहीं होगा? इतने वर्षों तक साथ रहने से किसी से भी थोड़ा बहुत लगाव तो हो ही जाता है। मैं भी एक इंसान ही तो हूँ। खासकर जब शौर्या मुझसे नाराज हुयी, तो मुझे ‘रितु’की मौत का ज्यादा अफसोस हुआ। पहले रितु मुझसे लड़ा करती थी, अब उसकी माँ कानून की लड़ाई लड़ रही है। क्या फर्क पड़ता है इस सबसे? मैं तो लड़ाई लड़ते-लड़ते ऊब गया हूँ। जेल में रहें या बाहर, सजा तो दोनों जगह ही काटनी है।”उसने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए अपनी बात पूरी की। हाँ, एक चालाकी वो अवश्य कर गया था बोलते-बोलते। जब वो रितु से लगाव की बात कर रहा था, तो वो कहना चाह रहा था कि इतने वर्षों में तो कुत्ते से भी लगाव हो जाता है। लेकिन वो कुत्ता शब्द बोलते-बोलते रह गया था।

वो ये भी बोलते-बोलते रह गया था कि सभी पति-पत्नि कभी न कभी एक-दूसरे की हत्या करने की अवश्य सोचते होंगे। कम से कम परस्पर एक-दूसरे की मृत्यु तो अवश्य चाहते होंगे। रोजाना उसी व्यक्ति का चेहरा देखते-देखते ऊब पैदा होना लाजिमी है। सम्पूर्ण प्रकृति में मनुष्यों से इतर ऐसे सम्बन्ध देखने को प्राय: नहीं मिलते हैं अर्थात् पति-पत्नि का स्थायी साथी रहना अप्राकृतिक सम्बन्ध है। ऐसे सम्बन्ध को ढोने के भार से ऐसे विचारों का उपजना स्वाभाविक है। उसके मुँह से ये शब्द निकलते-निकलते रह गए कि जज साहब आप ईमानदारी से बताइए, क्या आपने कभी अपनी पत्नी की मृत्यु की दुआ नहीं मांगी है? या फिर उसकी हत्या के बारे में नहीं सोचा है?

“तो क्या जेल में ही रहना चाहते हो? तुम्हारा व्यवहार भी अजीब है, तुम जेल में भी सबसे बुरे अपराधी, उस गैंगरेप के आरोपी को दोस्त बनाए हुए हो। तुम तो ऐसा व्यवहार कर रहे हो, जैसे तुम कोई जन्मजात अपराधी हो।”जज ने कुछ खीजते हुए कहा।

“अब ये तो आपको सोचना है कि मुझे आप कहाँ रखना चाहते हैं। जहाँ तक आलोक की बात है, तो मैं इतना नीच भी नहीं हूँ कि पूर्ण रूप से तिरस्कृत व्यक्ति से दो बातें भी न करूँ। जेल में आने से पहले उसने क्या किया, उससे मुझे कोई फर्क नहीं पडता है। मैं ये जानता हूँ कि वो एक तर्कशील एवं बुद्धिमान व्यक्ति है तथा जेल में सजा काट रहा है। हम सब परिस्थितियों के गुलाम हैं। उसके अनुसार उसे परिस्थितियों ने अपराधी एवं शैतान बना दिया था। अब वो वैसा नहीं रहा है, वो तो जेल से बाहर आकर एक अच्छा व्यक्ति भी बनना चाहता है।

वैसे अच्छा व्यक्ति बनकर ही क्या बदल देगा? दुनिया में बस एक अच्छे व्यक्ति की संख्या और बढ़ जाएगी।…वैसे वो अच्छा व्यक्ति बन चुका है और अगर वो जेल से छूटा तो स्वयं को सभी के सामने साबित करने के लिए भी कमर कस चुका है।…बस उसका छूटना मुश्किल है। जज साहब ये तो आप जानते ही हैं न कि वो छूट नहीं पाएगा। इस पर तो आप भी खुश हो जाएंगे कि वो ईश्वर तथा पुनर्जन्म में पूर्ण विश्वास करता है तथा प्रतिदिन नियम से घंटों पूजा करता है। वो शायद सच्चाई जानते हुए भी ईश्वर की कृपा से छूटना चाहता है।”महेन्द्र ने फिर से एक बार अपने को रोक लिया था। वो यह भी कहना चाहता था कि उसे उम्र कैद है और इसमें उसका भी थोड़ा सा स्वार्थ छिपा है। अगर उसे भी उम्रकैद हो गयी, तो उसे लम्बे समय तक एक साथी मिल जाएगा।

वैसे अच्छा व्यक्ति बनकर ही क्या बदल देगा? दुनिया में बस एक अच्छे व्यक्ति की संख्या और बढ़ जाएगी।…वैसे वो अच्छा व्यक्ति बन चुका है और अगर वो जेल से छूटा तो स्वयं को सभी के सामने साबित करने के लिए भी कमर कस चुका है।…बस उसका छूटना मुश्किल है। जज साहब ये तो आप जानते ही हैं न कि वो छूट नहीं पाएगा। इस पर तो आप भी खुश हो जाएंगे कि वो ईश्वर तथा पुनर्जन्म में पूर्ण विश्वास करता है तथा प्रतिदिन नियम से घंटों पूजा करता है। वो शायद सच्चाई जानते हुए भी ईश्वर की कृपा से छूटना चाहता है।”महेन्द्र ने फिर से एक बार अपने को रोक लिया था। वो यह भी कहना चाहता था कि उसे उम्र कैद है और इसमें उसका भी थोड़ा सा स्वार्थ छिपा है। अगर उसे भी उम्रकैद हो गयी, तो उसे लम्बे समय तक एक साथी मिल जाएगा।

कोई कैसा भी हो, कभी-कभी बातचीत करने का मन तो करता ही है। ये बात भी उसके मुँह को आते-आते रह गयी कि बड़े जज बन रहे हो, तुम्हारे ही दूसरे जज भाई ने उससे दुर्दान्त एवं जघन्य अपराधियों को छोटी सी सजा देकर जेल से रिहा कर दिया था, जो उस गैंगरेप के मुख्य आरोपी थे। और मेरे द्वारा उससे थोड़ी बातचीत करना ही एक गुनाह हो गया। इस सबमें जज लोगों की इन्सानियत कहाँ गायब हो गयी थी।

“अरे…कुछ सफाई में कहना भी चाहते हो कि यही सब बकवास।”जज झुंझलाहट में कुछ और कहना चाह रहा था, लेकिन कुछ सोचकर रुक गया।

“मैं इतनी देर से सफाई ही तो दे रहा हूँ जज साहब। आप क्या सुनना चाह रहे हैं? देखिए साहब, मैं स्पष्ट आदमी हूँ, सारी बातें खोलकर रखता हूँ। जेल जाने से पहले हर समय जेल का भय सताता रहता था। लेकिन धीरे-धीरे चीजें स्पष्ट होती गयीं। अब जेल का वैसा भय नहीं रहा है। सच कहूँ तो जज साहब जेल बहुत बुरी जगह नहीं है, यह आपको आत्मविश्लेषण का अवसर प्रदान करती है। आप दुनिया की अंधी दौड़ से अलग होकर सोचते हैं। आप जिन्दगी में चल रहे बेवजह के दोहराव से परिचित होते हैं। जिन्दगी की ऊब को महसूस करते हैं। कुल मिलाकर जेल में भी दूसरी जगहों की तरह कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। यह भी सच है कि मुझे रितु के न होने का कई बार काफी दुख होता है। लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ? मैंने उसे नहीं मारा है, मैं बेकसूर हूँ।”वो कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन जज के गुस्से से भरे हुए चहेरे को देखकर चुप हो गया। सभी लोग उसकी सफाई देने के तरीके से काफी निराश नजर आ रहे थे।


(भारतीय ज्ञानपीठ से शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास से एक अंश।)


कपिल ईसापुरी : जन्म : उत्तरप्रदेश के अमरोहा जिले केे एक ग्रामीण परिवार में।
शिक्षा : बी. टेक. (आई.ई.टी., लखनऊ), MJMC (पत्रकारिता), लखनऊ।
अध्यापन कार्य : कुछ समय तक भारतीय सिविल सेवा के छात्रों को दर्शन-शास्त्र विषय का अध्यापन।
सरकारी पद : डिप्टी जेलर के पद पर बरेली, लखनऊ एवं बाराबंकी की जेल पर तैनात रह चुके हैं। वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर sGST के पद पर उ.प्र. में कार्यरत्।
प्रकाशन : वर्ष 2013 में ‘फरिश्ता’ उपन्यास आया, जो का$फी चॢचत रहा। वर्ष 2019 में ‘फरिश्ता’ का भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशन। लेखक ने PK फिल्म मेकर्स पर कॉपीराईट का केस दिल्ली हाईकोर्ट में कर रखा है। लेखक के अनुसार PK फिल्म उन्हीं के उपन्यास पर आधारित है। वर्ष 2018 में उपन्यास ‘अपराधी’ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित और अपने मौलिक विषय-वस्तु के कारण चर्चित-प्रशंसित।
लेखन : ‘बूढ़ा’, ‘सफर का अन्त ‘अभागी’ एवं ‘पतन’ (कहानियाँ); लेखक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर सैकड़ों आलेख विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित। सम्मान : एड्स दिवस पर राज्य एड्स नियन्त्रण सोसायटी (2008); लखनऊ द्वारा ‘स$फर का अन्त’ (कहानी) को पुरस्कृत किया गया। लेखक से इस ईमेल पर संपर्क किया जा सकता है—kapilisapuri74@gmail.com


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