विमल कुमार
क्या आपने अपने शहर में या अपने मोहल्ले में किसी 75 वर्ष की महिला को शादी रचाते हुए देखा है? शायद नहीं देखा होगा। वैसे, आमतौर पर विदेशों में इस तरह की शादियां होती हैं लेकिन भारतीय समाज में ऐसा लगभग न के बराबर होता है पर अपवाद स्वरूप कुछ ऐसी शादियां हुई होंगी लेकिन उसका फिलहाल हमको आपको स्मरण नही हो रहा होगा। लेकिन हिंदी की दुनिया में एक ऐसी शादी हुई थी जिसमें 75 वर्ष की एक महिला दुल्हन बनी थी भले ही उसने पारंपरिक रूप से दुल्हन की वेशभूषा न पहनी हो। उस महिला ने अपने मित्र से इस उम्र में शादी की जबकि उनकी उम्र तक आते आते लोग परलोकवासी हो जाते हैं। लेकिन यह शादी मनुष्य की जिजीविषा और साहश्चर्य तथा आपसी सहयोग भावना का एक अप्रतिम उदाहरण हैं। यूं तो हिंदी लेखकों की अनेक प्रेम कथाएं मौजूद है लेकिन यह प्रेम कथा कुछ अलग ही किस्म की थी जो ऊपर से रूमानी प्रेम कथा की तरह बिल्कुल नहीं थी ।इसमें किसी का घर तोड़ने या गैर कानूनी कदम उठाने का प्रसंग नहीं था बल्कि यह एक परिपक्व नैतिक मानवीय और गरिमा पूर्ण संबंधों की कहानी थी।
हिंदी जगत में अज्ञेय या रेणुजी, धर्मवीर भारती या मोहन राकेश या राजेंद्र यादव की प्रेम कथाओं के चर्चे सुनने को मिलते रहे। इन सब की प्रेम कथाएं अलग थी लेकिन इस 75 वर्ष की महिला की प्रेम कथा सबसे भिन्न थी।
हाल ही में रजा फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित कृष्णा सोबती की गिरधर राठी द्वारा लिखित जीवनी आई है जिसमे इस प्रेम कथा को बड़े ही शालीन गंभीर और गरिमा पूर्ण अंदाज में पेश किया गया है। इस कथा को पारंपरिक तौर पर “प्रेम कथा” भी नहीं कहा जा सकता। अज्ञेय रेणु और निर्मल वर्मा की प्रेम कथाएं ऐसी नहीं थी जिसमें उन्होंने 75 वर्ष की उम्र में किसी महिला से शादी की हो। अज्ञेय ने इला डालमिया से सहजीवन व्यतीत किया था जबकि रेणुजी ने 35 वर्ष की उम्र में ही लतिका रेणु से तीसरी शादी की थी। निर्मल वर्मा की दूसरी शादी जब हुई वे साठेक वर्ष के रहे होंगे लेकिन इस हिंदी की लेखिका ने 75 वर्ष की उम्र में शादी की जबकि इस उम्र में जीवन के कुछ वर्ष ही बचे होते हैं।
इस जीवनी में कृष्णा सोबती और उनके पति शिव नाथ की दिलचस्प गाथा लिखी हुई है। इस गाथा के पीछे संयोग भी एक बड़ा कारण है जिसके कारण उन दोनों में एक तरह की आत्मीयता और निकटता भी पैदा हुई। यूं तो कहा जाता है कि जोड़ियां आसमान में बन कर आती हैं लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि पति पत्नी की जन्म तिथि और जन्म वर्ष एक हो। संभव है कि आपको जन्म वर्ष और जन्म तिथि एक होने वाले कई दंपति आपको मिल जाएंगे लेकिन यह संयोग तो बहुत वायरल है कि दंपति की माता का नाम भी एक ही हो और यह तीनों संयोग किसी एक व्यक्ति के साथ घटे। लेकिन कृष्णा जी और शिवनाथ जी के साथ ऐसा ही हुआ।
गिरधर राठी ने लिखा है, “क्या ही संयोग है कि दोनों की जन्म तिथि और जन्म वर्ष एक ही है 18 फरवरी 1925 और दोनों की माताओं का नाम भी एक है दुर्गा देवी। लाहौर में दोनों पढ़े, शिमला और दिल्ली के रग-रग से दोनों वाकिफ, रिहाईश से कभी-कभी बेहद नजदीक और आसपास और कभी ऐन एक ही पते पर। मिलने-जुलने घूमने-फिरने खाने-पीने और भौतिक संस्कृति गतिविधियों के लगभग एक से कभी-कभी ऐन वही अड्डे। फिर भी परिचय बरसो और दशकों बाद, बावजूद इसके कई जाने पहचाने व्यक्ति दोनों के दोस्त मगर यह दोनों परस्पर अपरिचित अपरिचय के विंध्याचल को पार करके दोनों किस तरह मिले इसका कुछ कुछ ब्यौरा दोनों ने दिया है। संस्मरणों में और बातचीत में। कुछ परिचितों मित्रों ने भी।
“कृष्णा सोबती और शिवनाथ के संदर्भ में संयोग अभिरुचियों और मानवीय भावनात्मक साझेदारी ने अधिक भूमिका निभाई बनिस्बत किस्मत ने।वैसे भी कृष्णा जी भाग्यवादी महिला नहीं थी बल्कि विवेकवान तर्कशील आधुनिक और प्रगतिशील विचारों की उन्मुक्त महिला थी जिनकी मित्रता कृष्ण बलदेव वैद निर्मल वर्मा अशोक बाजपाई प्रयाग शुक्ल आदि जैसे लोगों से थी। जिन्होंने हम हशमत पढ़ी है वे उनके पुरुषों से मित्रता भाव को जानते हैं। शिवनाथ जी भी इसी भाव के कारण उनके जीवन में आए ।
बहुत कम लोग जानते हैं कि शिवनाथ जी भी डोगरी के जाने-माने लेखक निबंधकार और आलोचक थे। उन्हें भी कृष्णा सोबती की तरह साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। हिंदी समाज में कृष्णा सोबती और शिवनाथ की प्रेम कथा इतनी गोपनीय रही कि बाहरी लोगों को इसके बारे में जानकारी बहुत कम थी क्योंकि जिन लोगों ने कृष्णा जी को 75 वर्ष की उम्र तक अविवाहित देखा उन्होंने यह मान लिया था कि उनके जीवन में कोई प्रेमी नहीं है। अगर होता तो कृष्णा जी ने अब तक इस उम्र में इस से विवाह कर लिया होता। इस उम्र में वह अब क्या खाक विवाह करेंगी। कृष्णा जी ने इस विवाह की खबर पद्मा सचदेव तक को नहीं दी जिस से पद्मा जी रूष्ट हो गईं। ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्णा जी और शिवनाथ जी में लोगों ने मैत्री भाव अधिक पाया क्योंकि इन दोनों ने अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं किया। अमृता प्रीतम ने अपने प्रेम का जिक्र बार बार किया चाहे वह साहिर के साथ उनका प्रेम हो या इमरोज के साथ लेकिन कृष्णा जी ने अपने प्रेम की चर्चा समाज में लिखकर यह बोलकर नहीं की। वैसे उनके अंतरंग कुछ मित्रों को इसकी भनक लगी होगी लेकिन 75 वर्ष की उम्र में उनके इस प्रेम को रूमानी नजर से किसी ने कभी नहीं देखा।
यह बहुत कम लोगों को पता होगा शिव नाथ जी का 1947 में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया था लेकिन तब जम्मू कश्मीर का भारत में विलय नहीं हो पाया था इसलिए उन्हें सिविल सेवा का वह कैडर नहीं मिला और उनकी सेवा को भारतीय डाक सेवा में तब्दील कर दिया गया। शिवनाथ जी भारतीय डाक सेवा के शीर्ष पद प्रधान महानिदेशक से सेवानिवृत्त हुए और भारतीय डाक सेवा बोर्ड के सदस्य भी रहे। इस तरह शिवनाथ जी कृष्णा सोबती के लिए योग्य जीवन नायक साबित हुए क्योंकि उनकी भी डोगरी साहित्य में कुछ कुछ वैसी ही हस्ती मानी जाती रही है जैसा हिंदी की दुनिया में कृष्णा सोबती की। इस बात को तो और भी कम लोग जानते हैं कि शिवनाथ नाथ जी ने कुछ दिनों तक ऑल इंडिया रेडियो में भी नौकरी की और डोगरी सेवा के वह प्रमुख रहे। इस सेवा को स्थापित किया। इतना ही नहीं 1948 में जब बापू की हत्या हुई थी तो उन्होंने रेडियो से उसका आंखों देखा हाल भी सुनाया था।
गिरधर राठी ने इस जीवनी में कृष्णा जी और शिवनाथ जी के जीवन के तमाम पहलुओं को लिखा है जिससे पाठकों को पहली बार इस प्रेम कथा की मुक्कमिल तस्वीर दिखाई देगी।
इस प्रेम कथा के बीज 1947 48 में भी गए होंगे, यह दावे के साथतो नहीं कहा जा सकता लेकिन दोनो की वाकफियत उन दिनों से थी।
राठी जी ने लिखा है, “शिवनाथ ने पहली दिल्ली यात्रा 1944 में की थी। जम्मू के प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज के कुछ छात्र इंडियन साइंस कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने पहुंचे थे। वायसराय लॉर्ड वेवल के उद्घाटन भाषण के अलावा वहीं उन्होंने मेघनाद साहा शांति स्वरूप भटनागर और सत्येंद्र नाथ बोस आदि वैज्ञानिकों के भाषण सुने। दिल्ली दर्शन का यह मेरा पहला अनुभव बड़ा सुहाना था और लुभावना भी।”
शिवनाथ जी दूसरी बार 11 दिसंबर 1947 के दिन दिल्ली से डोगरी भाषा में पहला समाचार बुलेटिन प्रसारित करने पहुंचे और दिलचस्प है किउनकी रिहाइश कर्जन रोड (कस्तूरबा गांधी मार्ग के) वेस्टर्न हाउस में ऑल इंडिया रेडियो के हॉस्टल में हुई। कृष्णा सोबती का घर अतुल ग्रोव रोड टेलीग्राफ लेन, कनॉट प्लेस उनके दायरे में ही था। 1948 में सिरोही जाने से पहले तक कृष्णा जी जिन जगहों में अक्सर जाती रहती थी शिवनाथ जी भी वहां आते जाते थे।”
शिवनाथ जी को 30 जनवरी 1948 का दिन याद था, ” सुबह से ही तबीयत कुछ गिरी गिरी सी उचटती हुई थी। शाम 5:30 बजे चपरासी एक खबर की चीट लेकर आया। फ्लैश फ्लैश फ्लैश गांधीजी शॉट एट थ्री। वर्स्ट फीयर्ड। 6:00 बजे से यह समाचार प्रसारित होने लग पड़ा। 6:30 बजे मैंने भी रुआंसी आवाज में खबरों का पढ़ना निपटाया।”
राठी जी ने लिखा है, “पहले पहल खबर प्रसारित करने वालों में शुमार हुए 23 वर्षीय शिवनाथ अगले दिन गांधी जी की अंतिम यात्रा देखी। कृष्णा जी ने बहनों भाइयों के साथ तिलक ब्रिज के आसपास वह यात्रा देखी थी। उनके घर पहुंची उस खबर का उनका ब्यौरा पठनीय है। उनकी नानी समेत 50 लोग उनके घर में शरण लिए हुए थे।”
शिवनाथ जी लिखते हैं, उन दिनों दिल्ली में साहित्य और अदब नामक संस्थाएं थी। उनकी गोष्ठियां भी होती थी। मैं तीन बैठकों में गया। एक मीटिंग फिरोजशाह रोड पर। चंद्रगुप्त विद्यालंकार (जो सारिका के संपादक रहे) के घर पर हुई जिसमें उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार ने साहित्य और राजनीति पेपर पढ़ा जिस पर गर्मागर्म बहस हुई इसकी अंग्रेजी पर टिप्पणी भी हुई। इस बैठक में डॉ नगेंद्र भी थे और लाहौर कॉलेज में मेरे प्रोफेसर नंदा भी जिन्होंने पंजाबी नाटक पर पेपर पढ़ा था। वह पंजाबी नाटक लिखने वाले पहले आदमी थे। एक बैठक मोहिनी राव के घर पर हुई जिसमें सत्यवती मलिक(अज्ञेय की सास)और उनकी पुत्री कपिला भी आई थी और उनके पुत्र(केशव मलिक भी)। राजनीति विषय पर मन्मथ नाथ गुप्त ने भी अपने विचार रखे थे। तीसरी बैठक हुई जिसमें के एल श्रीधरनी ने भाषण दिया।”
क्या इनमे से कुछेक में कृष्णा जी नहीं नहीं रही होंगी? गिरिधर राठी ने यह अनुमान व्यक्त किया है।
शिवनाथ जी 62 से 67 तक और 68 के बाद भी दिल्ली में रही। 1981 में वे आनंद लोक सोसायटी के पूर्वाशा अपार्टमेंट में आ गए। इसी जगह कृष्णा जी भी रहती थी। 83 में शिवनाथ जी की पत्नी का निधन हो गया। उनके पुत्र का निधन पहले ही हो गया था। तब वह जीवन में नितांत अकेले हो गए।
शिवनाथ जी मयूर विहार के आनंदलोक सोसायटी में पूर्वाशा में फ्लैट खरीद कर बी ब्लॉक में 505 नंबर में आ गए। कृष्ण जी भी कुछ साल बाद बी 503 फ्लैट खरीदकर आ गई और दोनों पड़ोसी हो गए।
शिवनाथ जी ने कृष्णा जी की डार से बिछुड़ी के बाद शिमला इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी के जयदेव जी के साथ मिलकर मित्रो मरजानी के कुछ पन्नो और “ऐ लडकी” का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया था।
राठी जी ने लिखा है, “कृष्णा जी और शिव नाथ जी की पहली मुलाकात कब कैसे हुई? पद्मा सचदेव का कहना है कि किसी साहित्यिक कार्यक्रम में दोनों मिले थे। जब श्रीनाथजी जाने लगे तो पद्मजा जी ने उनसे कहा कि कृष्णा जी को भी साथ ले जाएं जो वही रहती हैं। इसके कुछ दिन बाद शिवनाथ जी ने जम्मू के पास एक शहर का के बारे में जानकारी मांगी। वह वहां गई या नहीं, पता नहीं लेकिन उस रोमांटिक संभावित यात्रा के बाद दोनों में दोस्ती होती गई। खुद पदमा जी शिवनाथ की पहली पत्नी लक्ष्मी से परिचित हैं ।जब कृष्णा जी से शिवनाथ जी का विवाह हुआ तब तक पदमा जी को पता नहीं लग सका। इस पर वे खिन्न भी हैं।” मुझे पता होता तो मैं बहन की तरह उस नव दंपति का वैसा ही स्वागत करती जैसा पंडित रविशंकर का किया दूसरे विवाह पर अपने घर में थाल सजाकर आरती उतारकर”
कृष्णा जी से पदमा जी की निकटता नहीं हो सकी। “वे अपने को बहुत कुछ मानती थी उनके पास मैं उस तरह उन्मुक्त भाव से कभी भी जाकर नहीं मिल सकती थी जैसे मैं दीदी लता मंगेशकर से मिल लेती थी।” दरअसल कृष्णा जी किसी को मित्र बनाने में सोच समझकर कदम उठाती थी। लेकिन उनके पुरुष मित्रों का बड़ा दायरा था। लेखिकाओं में निर्मला जैन से उनकी निकट की मित्रता थी।
एक लेखक का कहना कि प्रसिद्ध लेखक नरेश मेहता ने भी कृष्णा सोबती से ‘मित्रता’ का प्रस्ताव किया था और उन्होंने ‘सारिका’ में “अपरिभाषित बांधवी” शीर्षक से एक संस्मरण भी लिखा था जिस पर कृष्णा जी ने बड़ी कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी और उनके “मैत्री” के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। कृष्णा जी को नरेश मेहता का यह व्यवहार पसंद नहीं आया। हिंदी के एक वरिष्ठ लेखक ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि कृष्ण जी और नरेश मेहता के बीच कुछ पत्राचार भी हुए थे और नरेश मेहता ने उन पत्रों में कृष्णा जी को “अंतरंग संबोधन” भी किया था लेकिन वह पत्र आज तक प्रकाशित नहीं हो सके और सारे पत्र नरेश मेहता की पत्नी के पास थे। गिरिधर राठी को भी ये पत्र नहीं मिल सके जिससे नरेश मेहता और कृष्णा जी के संबंधों पर प्रकाश पड़ता। कृष्णा जी के जीवन में कई और पुरुष आए, ऐसा अनुमान लगाया जाता है लेकिन उसका कोई ठोस प्रमाण आज नहीं है जिसके आधार पर कोई निष्कर्ष निकला जाए क्योंकि कृष्णा जी भी अपने बारे में कुछ बताती नहीं थी।
राठी जी का भी कहना है कि, “कृष्णा जी ने अपने निजी जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं बताया।”
कहा जाता है कि कोलकाता में भी कोई व्यक्ति थे जिनसे कृष्णा जी का लंबा पत्र व्यवहार था और लेकिन वे पत्र भी प्रकाशित नहीं हो पाए और आज उन पत्रों के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है।
यह भी कहा जाता है कि कृष्णा जी की सगाई एक बार अफ्रीका में रहने वाले एक भारतीय से भी हुई थी और वह ट्यूनीशिया भी गई थी लेकिन वह किस मकसद से वहां गई और क्यों लौट आईं, इसके बारे में भी अभी तक रहस्य बना हुआ है।
निर्मला जैन ने भी कृष्णा जी का विवाह किसी व्यक्ति से करने की पेशकश की थी लेकिन वह मामला आगे नहीं बढ़ा।
कृष्ण जी की मित्रता कई पुरुषों से रही। स्वदेश दीपक जी उनके बहुत अच्छे मित्र थे और एक बार जब से वे बहुत बीमार पड़े तो कृष्णा जी उन्हें देखने अंबाला भी गईं थी लेकिन कृष्णा जी की किसी व्यक्ति से कोई भावनात्मक संबंध बना हो इसका प्रमाण नहीं मिलता है।
हिंदी के एक अन्य लेखक ने नाम न बताने की शर्त पर कहां कि संभव है कृष्णा जी को अपने जीवन में पुरुषों से बुरा अनुभव रहा हो इसलिए वे विवाह से कतराती रहीं हों या फिर वह इतनी उन्मुक्त विचारों वाली थी की उन्ही अपनी स्वतंत्रता के खोने का भय हो। कृष्ण जी की कहानी ‘सूरजमुखी अंधेरे में’ “में जो नायिका है वह बचपन में बाल यौन शोषण शिकार होती है। अगर यह नायिका खुद लेखिका है तो संभव है कि उनको पुरुषों पर से विश्वास उठ गया हो और यह कारण है कि वह किसी के अंतरंग नहीं होना चाहती थी। उनके मन मस्तिष्क पर ऐसा कोई प्रभाव पड़ा हो लेकिन कुछ लेखकों ने जब भी कृष्णा जी से पूछा कि क्या सूरज अंधेरे की नायिका आप है,तो उन्होंने इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया। इन सारी घटनाओं से पता चलता है कि कृष्णा जी की जीवन में रहस्य के कई पर्दे थे जो आज तक खुल नहीं पाए और किसी को भी इस हकीकत का पता नहीं चल पाया कि आखिर कृष्णा जी 75 वर्ष की आयु तक अविवाहित क्यों रही। वैसे, यह उनका निजी फैसला था। यह स्त्री का अधिकार है। वह विवाह करे या नहीं।समाज को इस पर अधिक सोच विचार करने की जरूरत नहीं है। लेकिन जीवनी पढ़ते पाठक के मन में या प्रश्न उठते हैं। हिंदी में जीवनियां लिखते हुए एक अदृश्य सेंसरशिप काम करती है और ऐसे प्रसंगों से अनावश्यक विवाद खड़ा भी होता है और लोगों का ध्यान लेखक के साहित्य की बजाय साहित्येतर प्रसंगों पर टिक जाता है। लेकिन शिवनाथ जी कृष्णा जी की शादी एक गंभीर गरिमापूर्ण और शालीन संबंधों की परिणति थी।शादी भी कानूनी ढंग से। अदालत के रजिस्ट्रार ने अपार्टमेंट में आकर शादी की रजिस्ट्री की मुहर लगाई।
कृष्ण जी की शोकसभा में उनके मित्र, राजेंद्र कॉल जो सी बी आई के वरिष्ठ अधिकारी थे, ने शादी के बारे में जो कहा उसे गिरिधर राठी के शब्दों में सुनिए, “कृष्णा जी की पहली स्मृति सभा में राजेंद्र कॉल ने मंच से बताया था। एक दिन कृष्णा जी का फोन आया, आप हम उस समय आ सकते हैं पूछा जरूर कोई खास बात मानो 75 वर्ष की कृष्णा जी एक छोटी सी लड़की की तरह लजा गई हों। बोली, लीजिए आप इनसे बात कीजिए। शिवनाथ जी ने सीधे कहा अपनी परिचित कोमल आवाज में’, हम लोग शादी कर रहे हैं। विवाह की तारीख 24 नवंबर सन 2000 लेकिन विवाह का सर्टिफिकेट लिया गया 16 जनवरी 2004 को। जिस किसी से पूछा तारीखें किसी को याद नहीं थी । (यह सूचना कृष्णा सोबती शिवनाथ फाउंडेशन के मुकदमे के कागजात से)
जीवनी के अनुसार कृष्णा सोबती की छोटी मां ने भी हंगरी में इसी उम्र में फिर शादी की थी । वह अपने पहले पति को नाजियों के हाथों गंवा चुकी थीं। कृष्ण सोबती का जीवन भी एक उपन्यास की तरह हैं जिस पर कृष्णानामा लिखे जाने की जरूरत है। [‘दुनिया इन दिनों’ ‘से साभार]
दूसरा जीवन [कृष्ण सोबती की जीवनी] : गिरधर राठी। पृष्ठ : 279, मू. 280 रुपये [पेपरबैक]। सेतु प्रकाशन, नोएडा।
विमल कुमार : वरिष्ठ कवि पत्रकार। कविता कहानी उपन्यास व्यंग्य विधा में 12 किताबें। गत 36 साल से पत्रकार। 20 साल से संसद कवर। चोरपुराण पर देश के कई शहरों में नाटक। ‘जंगल मे फिर आग लगी है’ और ‘आधी रात का जश्न’ जैसे दो नए कविता-संग्रह में बदलते भारत मे प्रतिरोध की कविता के लिए चर्चा में। आप लेखक से इस ईमेल पते पर संपर्क कर सकते हैं— arvindchorpuran@yahoo.com