राजेन्द्र शर्मा
सूफी संगीत में अपनी अलग पहचान बनाने वाली रूहानी सिस्टर्स आज सूफी संगीत का पर्यायवाची बन गई है।रूहानी सिस्टर्स की सबसे खास बात यह है कि वह अपने सूफी संगीत, बुलंद आवाज़, ताल और अपनी रुहानी आवाज़ से लोगों की रूह को छू लेती है।रुहानी सिस्टर्स को आम तौर पर लोग सगी बहनें मानते है जबकि ऐसा है नही ।दोनों से एक जागृति लूथरा प्रसन्ना तथा दूसरी नीता पांडे नेगी ।यह बात अलग है कि सूफी संगीत की मिठास ने उन्हें दो जान होते हुए भी एक रुह के रुप में गूंथ दिया है और यह पिछले बारह साल में हुआ है, उससे पहले तो नीता और जागृति एक दूसरे को जानतीतक नही थी।
दिल्ली के रोहिणी इलाके के सैक्टर 13 में रहने वाले स्टेट बैक में मैनेजर प्रेम नाथ लूथरा और उनकी पत्नी संतोष लूथरा।दोनों में से किसी एक को भी संगीत का कोई तकनीकी ज्ञान नही परन्तु एक श्रोता के तौर पर संगीत से बेहद आत्म लगाव। लूथरा दम्पति कामना करते कि उनकी बेटी जागृति को ऊपर वाला सुरीला सुर बख्सें ,वह भी स्टेज पर गाये ।इसी कामना से संगीत की छोटी मोटी तालिम भी कराई और जागृति दुर्गा पूजा,देवी जागरण में गाहे बगाहे भजन भी गाती तो दोनों लूथरा दम्पति गद गद हो जाते।
उधर करोल बाग में स्क्रीन प्रिटिंग का व्यवसाय करने वाले बाल किशन पांडे जो उत्तराखंड के मूल निवासी है,दिन भर काम कर केशव पुरम स्थित घर लौटते तो पहाड लोकगीत सुनकर ही अपनी थकान मिटाते।बाल किशन पांडे को भी संगीत की कोई तकनीकी जानकारी नही परन्तु उन्हें भी एक श्रोता के तौर पर संगीत से बेहद लगाव। एक अच्छी बात यह कि बाल किशन पांडे की पत्नी नीलम पांडे के पिता उत्तराखंड के लोक गाय। पांडे दम्पति भी यही कामना करते कि ईश्वर उनकी बेटी नीता के गले को अपने सुरीले सुरों से नवाज दें। इसी कामना में नीता जब सातवीं कक्षा में आई तो उसका दाखिला गंधर्व महाविधालय में कराया गया।
पढाई के साथ साथ अपने अपने तरीके से संगीत का थोडा बहुत तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर जागृति लूथरा और नीता पांडे दिल्ली विश्वविधालय में पहुंची। बात वर्ष 2008 की है। एक दिन नीता पांडे और जागृति लूथरा की मुलाकात हुई । दोनों में एक समानता दोंनों संगीत की दीवानी, दोनों के प्रेरणा स्त्रोत उस्ताद नुसरत फतेह अली । नीता उस समय एम ए की छात्रा थी तथा जागृति एम फिल कर रही थी। मित्रता परवान चढी । दोनों रोज मिलती,खूब बतियाती। एक दिन कालेज की कैंटीन में चाय पीते हुए दोनों के दिमाग में अनायास ही ख्याल आया कि संगीत में क्या कुछ अलग किया जा सकता है। इसी सवाल के तारतम्य में यह भी ख्याल आया कि गाने में सिंगल तो बहुतेरे गायक गायकी करते हैं, लेकिन महिलाओं में जुगलबंदी नहीं के बराबर। क्यों न महिलाओं की जुगलबंदी का एक ग्रुप तैयार किया जायें।
इस विचार को मूर्तरुप देने के लिये दोंनों ने तीन छात्रायें ओर तलाश की और कुल पांच छात्राओं का ग्रुप तैयार हो गया। यह ग्रुप कुछ ही समय सक्रिय रहा। ग्रुप की तीन लडकियॅा कैरियर की तलाश में ग्रुप छोड गयी। ग्रुप में रह गयी केवल नीता पांडे और जागृति लथूरा। दोनों की समान सोच,दोनों में गजब का जज्बा, जुनून। नीता और जागृति ने कुछ नया करने की मंशा से सूफी गायन को अपनाया। दोंनों की मेहनत रंग लायी। साल 2009 में आईसीसीआर से इनप्लानमेंट मिला और साल 2010 में दिल्ली इंटरनैशनल आर्ट फेस्टिवल में जुगलबंदी की पहली प्रस्तुति दी।
नीता पांडे और जागृति लूथरा अभी अपने पांव जमा ही रही थी कि दोनों की शादियां हो गयी। हांलाकि दोनों को ही पति संगीत प्रेमी मिले । जागृति का विवाह तो संगीत घराने में ही हुआ । जागृति के पति बांसुरी वादक है जो बांसुरी वादक राजेन्द्र प्रसन्ना जी के पुत्र है और विवाह के उपरांत जागृति लूथरा हो गयी जागृति लूथरा प्रसन्ना । नीता पांडे का विवाह संगीत घराने में तो नही हुआ किन्तु नीता पांडे के पति रजनीश नेगी भी संगीत प्रेमी और इस बात के प्रबल पक्षधर कि यदि पत्नी कुछ रचनात्मक करना चाहती है तो उसे हर संभव सहयोग देना चाहिए । विवाह के उपरांत नया परिवार, उसमें अपने आप को समायोजित करना ,घर परिवार ,बच्चे की जिम्मेदारियॉ । इन सब सामाजिक दायित्वों ने जागृति और नीता एकदम कुशल गृहणी बना दिया गया और संगीत पीछे छूट गया ।
जागृति और नीता तो मानो संगीत के लिए ही बनी थी । संगीत से दूर कैसे रह सकती थी । जैसे ही अपने घर परिवार में व्यवस्थित हुई ,बेटा बडा हुआ ,तुरन्त ही अपनी नियत दुनिया में लौटी । दोनों ने संगीत में पीएच डी की । जागृति ने बारहवी कक्षा के बाद ही कैराना घराने की केतकी बनर्जी से संगीत की तालिम ली थी । संगीत की दुनिया में दुबारा लौटने पर जागृति ने केतकी बनर्जी से अनुमति लेकर आगे की तालिम बनारस घराने के राजन साजन मिश्रा के पुत्र रितेश मिश्रा से प्रारम्भ की । नीता पांडे ने दिल्ली घराने के खलीफा उस्ताद इकबाल हुसैन से तालिम शुरु की । दोनों ने अलग अलग घरानों से संगीत की तालिम पायी किन्तु दोनों की आंखों में कुछ कर गुजरने का ख्वाब हिलारे मार रहा था । वे बताती है कि शास्त्रीय संगीत की विधिवत तालिम के बिना शुद्व गायन की परिकल्पना भी संभव नही है ।
संगीत की विधिवत तालिम के बाद सपनों का साकार करने का समय आ गया था । जागृति और नीता कुछ विशेष कर अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थी ।इसके लिए वर्ष 2008 की तरहा ही 2016 में भी दोनों के प्रेरणा स्तोत्र नुसरत फतेह अली खान ही थे । तय किया कि वे सूफी संगीत की दिशा में ही काम करेंगी । दो महिलाओं के लिए सूफी संगीत की दिशा में काम करना आसान नही था । दरअसल सूफी संगीत को हमेशा मर्दो की आवाज और पुरुष गायकी से जोडकर देखा जाता रहा है । दिशा तय करने के बाद भी दोनों आंशकित कि लोग हमें पंसद भी करेंगे या नही लेकिन दोंनो में कुछ कर गुजरने का जज्बा उबाल मार रहा था । दोनों ने फैसला किया कि अगर हमें कुछ करना है तो यही करना है । इसी फैसले के साथ ही “रुहानी सिस्टर्स ” की जुगलबंदी अस्तित्व में आई ।
जागृति बताती है कि सूफी गायन में यह बेहद जरुरी है कि उर्दू, पर्शियन, पंजाबी, हिंदी, बृज भाषा का ज्ञान बेहतर हो । यदि आपको भाषा बोलनी नहीं आएगी और शब्दों का तल्लफुज एकदम सटीक नहीं होगा तो सुनने वाले पकड लेगें । इस चीज को दिमाग में रखते हुए उन्होनें रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद सखावत हुसैन से तालीम ली।
इसके बाद तो रुहानी सिस्टर्स की सौलह सौलह घंटों की मेहनत रंग लाई ।उन्होंने गायी सूफी कव्वाली भरदे झोली मेरी सरकारे मदीना अली, यह जो हल्का-हल्का सुरूर है,दमादम मस्त कलंदर आदि ने रंग जमा दिया । देश भर में अपने शो कर चुकी रुहानी सिस्टर्स देश बाहर भी अपने सूफी गायन का जादू बिखेर चुकी है । वर्ष 2019 में उनका पहला एल्बम ‘बेदर्दां’ टी सीरिज ने लांच किया । बेदर्दां के बारे में वे बताती है कि यह बाबा बुल्ले शाह की कविता से लिया गया है,हमने कविता को एक गीत के रुप में इस उददेश्य से प्रस्तुत किया कि श्रोता सरल, सहज तरीके से बाबा बुल्ले शाह की कही बात को समझ सकें।
सूफी संगीत में कई बदलाव करने वाली रूहानी सिस्टर्स ने आज सूफी संगीत को आम लोगों से जोड़ दिया है। वे बताती है कि केवल ख़ुदा और मौला लग जाने से कोई भी संगीत सूफी नहीं हो जाता। सूफी का मतलब क्या है और सूफी क्या है यह लोगों तक पहुंचाना आसान काम नही है, इसके लिये हमने बहुत मेहनत की । नीता बताती है, “लोगों को सूफी कविताओं की भाषा आसानी से समझ नहीं आती। हमें सूफी संगीत को आम लोगों तक पहुंचाना था। हमने भाषा को साधारण कर दिया, साथ ही क्लासिकल संगीत को भी, जिससे लोगों को यह ना लगे कि सूफी और क्लासिकल समझना बेहद मुश्किल है।”
सूफी गायकी के बारे में कहा जाता है कि आत्मा से परमात्मा का मिलन। जागृति लूथरा प्रसन्ना और नीता पांडे नेगी ने यह कर दिखाया है । संगीत में जब बेहतर साथ हो, आत्मीयता जब रूह के जरिए एक-दूसरे में उतरती चली जाती है, तो रूहानी सिस्टर्स बनती हैं। इसीलिए ये रूहानी सिस्टर्स को द फीमेल व्यास ऑफ सूफिज़्म कहा जाता है ।
राजेन्द्र शर्मा : सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में जन्म. 1984 -1985 में नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, दिनमान के लिए रिपोर्टिग तत्पश्चात उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर विभाग में नौकरी, वर्तमान में वाणिज्य कर अधिकारी खण्ड -09 नोएडा के पद पर कार्यरत। इस बीच कुछ कवितॉए, कुछ लेख, कुछ संस्मरण विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा त्रैमसिक साहित्यिक पत्रिका शीतल वाणी के सहायक सम्पादक । भारतीय शास्त्रीय संगीत में विशेष रूचि व लेखन. राजेंद्र जी से इस ईमेल पते पर संपर्क किया जा सकता है— pratibimb22@gmail.com