कथाकार शंकर को राजकमल चौधरी सम्मान

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चौथे राजकमल चौधरी स्मृति कथा सम्मान हेतु वरिष्ठ कथाकार और ‘परिकथा’ के संपादक शंकर का चयन हुआ है। कवि-संपादक विष्णु चंद्र शर्मा द्वारा मित्रनिधि के माध्यम से प्रारम्भ किया गया यह सम्मान दो वर्ष के अंतराल में प्रदान किया जाता है। सम्मान के संयोजके के अनुसार समारोह सितंबर माह में राजधानी में आयोजित होगा। यह सम्मान अब तक इब्बार रब्बी, पंकज बिष्ट और विजेन्द्र को प्रदान किया जा चुका है।

इस बार के निर्णायक वरिष्ठ आलोचक जानकी प्रासाद शर्मा का कहना है – वरिष्ठ कथाकार शंकर विगत पाँच दशकों से सृजनरत हैं। आठवें दशक के साथ शुरूआत करने वाले प्रगतिशील धारा के कहानीकारों में उनका अहम मक़ाम है। अब तक उनके छह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 1988 में प्रकाशित पहले कहानी-संग्रह ‘पहिए’ ने उन्हें एक व्यापक जन सरोकारों के कथाकार के रूप में शिनाख़्त दी। इसके बाद ‘मरता हुआ पेड़’ (2001), ‘जगो देवता जगो’ (2019), ‘एक बटा एक’ (2021), ‘बत्तियाँ’ (2022) और ‘सैल्यूट’ (2023) संग्रह प्रकाश में आये। सत्तर के दशक की उनकी आरंभिक कहानियों में प्रतिरोध का जो स्वर विद्यमान है, वह आगे की यात्रा में और प्रखर होता गया है। उनके पास नये बनते हुए सामाजिक यथार्थ की जटिलताओं को समझने की अंतर्दृष्टि है। विशेषतया बदलते हुए कृषि-संबंधों को अपने जाने-पहचाने पात्रों के जीवन के माध्यम से तरजीह देने वाले चंद श्रेष्ठ कहानीकारों में उनका शुमार किया जाता है। एक वस्तुपरक दृष्टि और प्रयोजन के साथ सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का निरीक्षण और उसकी प्रभावशाली कलात्मक अभिव्यक्ति उनकी कहानियों की बड़ी विशेषता है। वे अपनी रचनाओं में कथा-कथन के नये प्रयोगों के प्रति स्वयं को खुला रखते हुए कहानी के माध्यमगत वैशिष्ट्य का पूरा ध्यान रखते हैं। निश्चय ही उनके लेखन ने कहानी की सृजन परंपरा में कुछ नये आयामों का इज़ाफ़ा किया है। शंकर के रचनाकार व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि वे विगत पचास वर्षों से लघु पत्रिका आंदोलन से जुड़े रहे हैं।नियतकालीन और अनियतकालीन सभी साहित्यिक लघु पत्रिकाओं ने जनतांत्रिक साहित्यिक संस्कृति की फ़िज़ा बनाने में जो योगदान दिया, वह अविस्मरणीय है। इस फ़िज़ा के निर्माण की प्रक्रिया में हमारे समय के अन्य प्रतिबद्ध लेखक-संपादकों भाँति शंकर की भी अहम भूमिका रही है।




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