आओ देखें ‘बुनकरों की दुनिया’

कमल मिश्र ‘बुनकरों की दुनिया : पांच कहानियां और प्रार्थना’, हिंदी के अतिरिक्त तेलगु और अंग्रेजी में भी एक साथ वर्ष 2018 में प्रकाशित हुयी है. हिंदी संस्करण की बात करें तो इसकी चार कहानियों और प्रार्थना का मूल से हिंदी में अनुवाद अभय कुमार नेमा ने, और ‘हम्ब्रीलमाय का करघा’ कहानी का अनुवाद वीणा …

थेथर स्त्री की कथा ‘हादसे’

विभा ठाकुर हिन्दी साहित्य स्त्री आत्मकथा की दृष्टि से विशेष संपन्न नही है फिर भी जितनी संख्या मे आज उनकी उपस्थिति दर्ज की गई है वह सराहनीय है। कारण आत्मकथा में सामाजिक जीवन के साथ व्यक्तिगत जीवन के अनकहे निजी प्रसंगों को विशेष कर स्त्रियों के लिए लिखना जोखिम भरा होता है। क्योंकि मर्दवादी समाज …

केदारनाथ सिंह से एक मुकम्मल भेंट

डॉ. सुलोचना दास कवि केदारनाथ सिंह, इस नाम से हिंदी पट्टी का विरला ही कोई होगा जो परिचित न हो। किंतु परिचित होना और जानना एक बात नहीं है। एक कवि को जानने के लिए पहले उसके व्यक्तित्व को जानना, उससे रू-ब-रू होना आवश्यक है। चकिया, बलिया जिला के अन्तर्गत आने वाला एक छोटा-सा गांव …

आलोचक संग संवाद: अनल पाखी

गगनदीप सृजनशीलता अपने आप में बड़ी चुनौती है, जो साहित्यकार को दिन-प्रतिदिन नवीन प्रेरक भूमि प्रदान करती है, जिससे एक कालजयी कृति का निर्माण सम्भव हो पाता है। साहित्य की विविधता का विकास मनुष्य के बौद्धिक स्तर पर आधारित है। जैसे-जैसे मानव का वैचारिक धरातल विस्तृत हुआ, साहित्यक गति में भी तीव्रता आई। आधुनिक युग …

आपका बंटी : सबका बंटी

कविता ‘आपका बंटी’ पर लिखने का यह मतलब कदापि नहीं कि मैं इसे ही मन्नूजी की सर्वश्रेष्ठ कृति मानती हूँ बल्कि यह मेरे लिए व्यक्तिगत पसंद और चुनाव का मामला ज्यादा है. वरना चाहे ‘महाभोज’ हो या उनकी कहानियां या उनकी अन्य रचनाएं सभी उत्कृष्टता के मानक पर खरी उतरती हैं. यही नहीं मन्नू जी …

एक दबी पड़ी संभावना का पूर्ण प्रस्फुटन

संजीव कुमार बात इससे शुरू करें कि जब एक लेखक किसी कालजयी कहानी के पात्रों और परिस्थितियों को उठाकर एक और कहानी लिखने की कोशिश करता है तो उसके सामने किस तरह की चुनौतियाँ होती हैं। कम-से-कम तीन तो बहुत साफ़ हैं। एक, अपने पाठक को यह ‘परतीत’ करा पाना कि हर तरह से मुकम्मल …

तीसरी कसम उर्फ़ महुआ घटवारिन को डूबना होगा…

कविता जनाना मुसाफिरखाने में हीरा कबसे मुंह ढांके पड़ी है… न जाने उसे किसकी प्रतीक्षा है… ट्रेन की तो बिलकुल नहीं… पता है उसे कि ट्रेन के आने में अभी कई घंटे का वक्त है… तबतक हीरा करे भी तो क्या करे, सिवाय इंतजार के…. लालमोहन अबतक तो पहुँच चुका होगा फारबिसगंज… क्या अबतक उसकी …

नैना जोगिन

फणीश्वरनाथ रेणु रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया. सदा साइरेन की तरह गूंजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई. साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका ‘आंचर’ भी उड़ गया. उस संकरी पगडंडी पर, जिसके दोनों और झरबेरी के …

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में स्त्री-परिचय : रोहिणी अग्रवाल

प्रस्तुति : प्रज्ञा तिवारी हिंदी समालोचना के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है श्रीमति रोहिणी अग्रवाल जी का। प्रस्तुत है हिंदी के महान लेखक श्री फ़णीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में स्त्री विमर्श पर रोहिणी अग्रवाल एवं प्रज्ञा तिवारी की बातचीत के कुछ विशेष अंश : प्रज्ञा: अपनी कहानी तीसरी कसम में रेणु ने स्त्री के …

पत्रिकाओं में रेणु की उपस्थिति

कुमार मंगलम किसी भी रचनाकार के उत्तर जीवन में मूल्यांकन के कई पड़ाव आते रहते हैं किंतु जन्मशती वर्ष एक ऐसे अवसर के रूप में हमारे सामने होता है जहाँ  उस रचनाकार के अवदानों का सम्पूर्ण मूल्यांकन होता है और साथ ही हम एक कृतज्ञता स्मरण के भाव से भरे रहते हैं। आज ऐसा ही …

कोहवर

ज्योति चावला यह कहानी एक मुसीबत से शुरू होती है या फिर कहिए एक जिम्मेदारी से। अभी ढूंढने निकली हूं एक लडकी को जो गायब है पिछले कुछ दिनों से। जिसे किसी ने नहीं देखा है इन बीते कुछ दिनों में और घरवालों का दावा यह कि कल तक तो वह यहीं थी। कल रात …

क्या मैथिलीशरण गुप्त का सही मूल्यांकन नही हुआ?

विमल कुमार रज़ा फाउंडेशन ने गत दिनों जैनेंद्र, नागार्जुन, कृष्णा सोबती और रघुवीर सहाय की जीवनियां प्रकाशित की। इस कड़ी में रजनी गुप्त द्वारा लिखी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी ‘कि याद जो करें सभी’ हाल ही में आई है। इन दिनों लखनऊ में एक बैंक मे कार्यरत रजनी जी की कहानियों और उपन्यासों से …

प्रतिरोध की नाट्ययात्रा का सूत्रधार

बालमुकुन्द आज के इस दौर में, जब एक नाट्य विधा के रूप में नुक्कड़ नाटकों की धार कमजोर हुई है, नुक्कड़ नाटकों के मसीहा सफ़दर हाश्मी को याद करना महज अपनी स्मृति को खंगालना या अपने नायकों के यशोगान की रस्मअदायगी भर नहीं है। यह प्रतिरोध की संस्कृति और उसकी ताकत को फिर से रेखांकित …

स्वीकृति और अस्वीकृति के द्वंद्व की कथा

अनिल अविश्रांत युद्ध में राजवंशों के जय-पराजय के रक्तिम वृतान्तों  के बीच इतिहास के ध्वांशेषों में कई बार बहुत सुन्दर प्रेम कथाओं की भी झलक मिलती है। इतिहास चाहे इन्हें महत्व न दे लेकिन जब एक साहित्यकार की दृष्टि इन पर पड़ती है तो ‘राजनटनी’ जैसी रचना जन्म लेती है। गीताश्री ने बारहवीं सदी के …