इन दिनों पठन-पाठन

प्रेम से बाहर न समय था ना कोई दुनिया

(सलाम बांबे व्हाया वर्सोवा डोंगरी: सारंग उपाध्याय) जीतेश्वरी इक्कीसवीं शताब्दी के इस भयावह दौर में जब हमारे देश ने अपनी गंगा-जमुनी तहजीब को पूरी तरह से भूला दिया है, धर्म और मजहब के नाम पर जब खून के छींटे हर जगह दिखाई दे रहे हैं ऐसे अंधेरे और भयावह समय में युवा पत्रकार, लेखक सारंग …

स्त्री प्रश्न : हिंदी नवजागरण के अंतर्विरोध

विमल कुमार “स्त्री पुरुष में समानता है, ऐसा समझना भूल है। अपने देशवासियों को इससे बचना चाहिए पर यह ना समझना चाहिए कि मजदूरों को वोट का अधिकार देने का विरोधी हूं… स्त्रियों को गृह कार्य की शिक्षा दी जानी चाहिए पर ऐसी शिक्षा नहीं जो उन्हें गृह कार्य के धर्म कर्तव्यों से जरा भी …

साधारण के स्वप्न, संघर्ष और स्वप्नभंग की त्रासद कथा

पंकज मित्र एक निम्न मध्यम वर्गीय आदमी का सपना होता है एक घर का। यह सपना वैसा नहीं है कि “इक घर बनाऊँगा तेरे घर के सामने”। यह घर कहीं भी बन सकता है खासतौर पर जब यह सपना कई पीढ़ियों से देखा जा रहा हो। घर बदर आदमी कुंदन दुबे के लिए यह सपना …

हिंदी का पहला घर फोर्ट विलियम कॉलेज

विमल कुमार आज हम लोग जिस हिंदी को बोलते सुनते हैं और जिस में साहित्य का सृजन करते हैं, उस हिंदी की कहानी कोलकाता के एक कालेज से हुई थी जिसका नाम फोर्ट विलियम कॉलेज था। वह हिंदी का पहला घर था।तब किसी ने कल्पना नही की होगी कि कालांतर में हिंदी के कई घर …

क्या हिंदी नवजागरण स्त्री विरोधी था?

विमल कुमार क्या आपने 1908 में श्रीमती प्रियंबद देवी का उपन्यास ‘लक्ष्मी’ पढ़ा? शायद नही पढ़ा होगा। यह भी संभव है आपने इसका नाम भी नहीं सुना हो। क्या आपने 1909 में श्रीमती कुंती देवी का उपन्यास ‘पार्वती’ और 1911 में श्रीमती यशोदा देवी का उपन्यास ‘सच्चा पति प्रेम’ और 1912 में श्रीमती हेमंत कुमारी …

एक आत्मिक बंधन

पल्लवी प्रकाश I seem to have loved you in numberless forms, numberless times…In life after life, in age after age, forever. –Tagore रवीन्द्रनाथ टैगोर यहाँ प्रेम की जिस शाश्वतता की बात करते हैं, उसी की अगली कड़ी है सोलमेट. सोलमेट, यानी आत्मा का अनिवार्य साथी. वह संबंध, जहाँ आत्मा का आत्मा से सीधा जुड़ाव हो …

औरतें खुदकुशी क्यों करती हैं?

शशिभूषण द्विवेदी ‘पुस्तकनामा’ के स्तम्भ ‘इन दिनों पठन-पाठन’ के लिए कथाकार शशिभूषण द्विवेदी से हमने उनके द्वारा इन दिनों पढ़ी जा रही किताबों पर प्रतिक्रियाएँ मांगी थी और उन्होंने एक बड़ी समीक्षा ज्ञानपीठ से प्रकाशित सुरेश गौतम के उपन्यास ‘प्रेम कथा : रति जिन्ना’ पर लिखने का वादा किया भी था। दिनांक 22 अप्रैल को …

क्या ग्रियर्सन देवनागरी लिपि के विरोधी थे?

विमल कुमार भारतीय वांग्मय, भाषा और साहित्य के निर्माण में विदेशी विद्वानों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। सर विलियम जोन्स  से लेकर मैक्समूलर और जॉर्ज ग्रियर्सन ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन हिंदी साहित्य के जो पाठ्यक्रम बने, उसमें इन तीनों विद्वानों की चर्चा आमतौर पर नहीं है लेकिन जब कोई शोधार्थी …

महामारी में हत्या

शशिभूषण द्विवेदी कई बार कुछ किताबें भविष्यवाणी की तरह होती हैं। स्कॉटलैंड में जन्में और पले-बढ़े पीटर मे का ‘लॉकडाउन’ एक ऐसा ही उपन्यास है जो 2005 में बर्डफ्लू की महामारी के परिप्रेक्ष्य में लिखा गया था। अब कोविड-19 महामारी के दौर में यह नए रूप में नए संदर्भों के साथ सामने आया है। पीटर …

स्याह गलियों का रोज़नामचा

“ये बार डांसर…हाड़-मांस की नहीं बनी. ये तो सिर्फ नखरों से बनीं हैं. कुछ ख़ास बारों में ये आ कर आपकी बगल में बैठ जाएँगी और कहेंगी- हेल्लो हेन्सम, क्या मैं तुम्हारा सेल इस्तेमाल कर सकती हूँ या हाय स्वीटी तुम कैसे हो? और स्वाभाविक है कि आप उत्तेजित हो जायेंगे”