वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय जी के जन्मदिन पर विशेष प्रस्तुति डॉ. अर्चना त्रिपाठी सुप्रसिद्ध आलोचक पाण्डेय जी एक व्यक्ति नहीं एक संस्था हैं । ज्ञान के जीते जागते इनसाइक्लोपिडिया । ऐसे अप्रितम महापुरुष जन्म से नहीं कर्म से बनते हैं । पाण्डेय जी ने शिक्षण- संस्थाओं को सींचा है उसका उर्ध्वगामी विकास किया है । …
विमल कुमार प्रसिद्ध गांधीवादी पत्रकार एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने पिछले दिनों रजा फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर बोलते हुए कहा था कि जिस तरह गांधी जी का जीवन अपने में आप में एक संदेश था, उसी तरह उनकी मृत्यु भी एक संदेश थी। गांधी जी का …
विमल कुमार (मैं क्या करूं, ऐ मुसलमानों! मैं खुद अपने आप को नहीं पहचानता। न मैं ईसाई हूँ, यहूदी न अग्निपूजक और नहीं मुसलमान। ना मैं पूरब का हूं ना पश्चिम का, ना धरती का न सागर का न मैं प्रकृति द्वारा गढ़ा गया हूं और ना ही मंडरानेवाला आसमान से आया हूं। न …
मनीषा कुलश्रेष्ठ आन्ना कारेनिना लिखे जाने के दौरान दर्ज की गईं अपनी आत्मस्वीकारोक्तियों में तॉल्स्तोय लिखते हैं— “हर बार, जब भी मैं ने अपनी गहन इच्छाओं के तहत, नैतिक स्तर पर अच्छा अभिव्यक्त करने की कोशिश की – मैं अवमानना तथा तिरस्कार से गुज़रा. फिर जब-जब मैंने मूल प्रवृत्तियों पर लिखा, मुझे प्रशंसा व प्रोत्साहन …
इरा टाक मल्लिका एक ऐसी आजाद, बुद्धिजीवी स्त्री की दास्तान है जिसने सामाजिक विडम्बनाओं के दिल दहला देने वाले घेरों के बीच अपने लिए अपने सामाजिक मूल्य स्वयं रचे। एक अलग बागीपन, एक अलग आजाद खयाली, एक अलग निश्छलता, एक अलग आत्मविश्वास। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के भारत में ऐसी स्त्री की …
सिनीवाली लियो तोलस्तोय की बहुचर्चित कृति ‘युद्ध और शांति’ के प्रकाशन के डेढ़ सौ साल हो चुके हैं। इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी न तो इसकी लोकप्रियता कम हुई है और न ही इसकी प्रासंगिकता। उनकी विभिन्न कृतियों में उनके दार्शनिक विचारों ने हर पीढ़ी को प्रभावित किया है। तोलस्तोय अपने जीवन …
पल्लव आत्मकथा की कसौटी क्या है? आत्मकथा कोई क्यों पढ़े? क्या उस सम्बंधित व्यक्ति के जीवन में ऐसा कुछ है जो पाठक को अपने लिए जानना आवश्यक लगता है इसलिए वह आत्मकथा पढ़े? आत्मकथा के मूल्यांकन में ये सभी सवाल खड़े होते हैं। और इनका कोई सर्वसम्मत जवाब नहीं खोजा जा सकता। जवाब कोई है …
सारंग उपाध्याय कला उम्मीदों का सवेरा है. कला के औजार ही मनुष्यता को निखारते हैं और उसकी आत्मा संवारते हैं. कला इतिहासकार आर्नल्ड हाउजर ने ठीक कहा है- ”कला उन्हीं की मदद करती है जो उससे मदद मांगते हैं, जो अपने विवेक के संशय, अपने संदेहों और अपने पूर्वग्रहों के साथ उसके पास आते हैं. …
हरिशंकर शाही “और तुम्हारी वह ज़बरदस्त चुटिया क्या हुई?” “तुम्हारी दाढ़ी के काम आई गई?” टोपी ने जलकर कहा। हिंदी साहित्य की किताबों में तमाम एक से बढ़कर एक कहानियाँ हैं, उपन्यास हैं, और कथाएँ हैं जो कहीं तो आत्म-कथा हैं तो कहीं आंखों देखी कथा और या किसी ऐतिहासिक काल की कथाएँ हैं। यह …
इश्राकुल इस्लाम माहिर मण्टो ने कहा है कि “ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं अगर आप उससे वाकिफ नहीं तो मेरे अफसाने पढ़िये और अगर आप उन अफसानों को बरदाश्त नहीं कर सकते इसका मतलब है कि ज़माना नाकाबिले–बरदाश्त है।” साहिर लुधियानवी का मशहूर शे’र है– दुनिया ने तज्रिबातो–हवादिस की शक्ल में …
विमल कुमार क्या आप ग्लोरिया स्टायनेम को जानते है? शायद नही जानते होंगे। सेकंड सेक्स की मशहूर लेखिका सिमोन द बुआ की तरह वह भारत के हिंदी जगत में नही जानी जाती है। वह जर्मन ग्रीयर और केट मिलेट की तरह भी शायद जानी जानी होंगी लेकिन पिछले कुछ सालों से हिंदी में स्त्रीवादी लेखन …
पूनम अरोड़ा कोई भी कृति नितांत रूप से एक व्यक्तिगत यात्रा होती है. एक ऐसी यात्रा जिसकी राह पर चलते-चलते हम अनजाने में ही कुछ छोटे कंकड़ (स्मृतियाँ) अपने सामान के साथ रख लेते हैं या कभी किसी ध्वनि के साथ अपने अतीत में खो जाते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर वे स्मृतियाँ …