मेरी बात

रुहानी सिस्‍टर्स दो जान एक रुह

सूफी संगीत में अपनी अलग पहचान बनाने वाली रूहानी सिस्टर्स आज सूफी संगीत का पर्यायवाची बन गई है।रूहानी सिस्टर्स की सबसे खास बात यह है कि वह अपने सूफी संगीत, बुलंद आवाज़, ताल और अपनी रुहानी आवाज़ से लोगों की रूह को छू लेती है।रुहानी सिस्टर्स को आम तौर पर लोग सगी बहनें मानते है जबकि ऐसा है नही ।दोनों से एक जागृति लूथरा प्रसन्‍ना तथा दूसरी नीता पांडे नेगी ।

आपका बंटी : सबका बंटी

कविता ‘आपका बंटी’ पर लिखने का यह मतलब कदापि नहीं कि मैं इसे ही मन्नूजी की सर्वश्रेष्ठ कृति मानती हूँ बल्कि यह मेरे लिए व्यक्तिगत पसंद और चुनाव का मामला ज्यादा है. वरना चाहे ‘महाभोज’ हो या उनकी कहानियां या उनकी अन्य रचनाएं सभी उत्कृष्टता के मानक पर खरी उतरती हैं. यही नहीं मन्नू जी …

एक दबी पड़ी संभावना का पूर्ण प्रस्फुटन

संजीव कुमार बात इससे शुरू करें कि जब एक लेखक किसी कालजयी कहानी के पात्रों और परिस्थितियों को उठाकर एक और कहानी लिखने की कोशिश करता है तो उसके सामने किस तरह की चुनौतियाँ होती हैं। कम-से-कम तीन तो बहुत साफ़ हैं। एक, अपने पाठक को यह ‘परतीत’ करा पाना कि हर तरह से मुकम्मल …

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में स्त्री-परिचय : रोहिणी अग्रवाल

प्रस्तुति : प्रज्ञा तिवारी हिंदी समालोचना के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है श्रीमति रोहिणी अग्रवाल जी का। प्रस्तुत है हिंदी के महान लेखक श्री फ़णीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में स्त्री विमर्श पर रोहिणी अग्रवाल एवं प्रज्ञा तिवारी की बातचीत के कुछ विशेष अंश : प्रज्ञा: अपनी कहानी तीसरी कसम में रेणु ने स्त्री के …

वह एक और मन रहा राम का जो न थका

वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय जी के जन्मदिन पर विशेष प्रस्तुति डॉ. अर्चना त्रिपाठी सुप्रसिद्ध आलोचक पाण्डेय जी एक व्यक्ति नहीं एक संस्था हैं । ज्ञान के जीते जागते इनसाइक्लोपिडिया । ऐसे अप्रितम महापुरुष जन्म से नहीं कर्म से बनते हैं । पाण्डेय जी ने  शिक्षण- संस्थाओं को सींचा है उसका उर्ध्वगामी विकास किया है । …

अपने अंत:पुर से बाहर आती स्‍त्री

[स्‍त्रीवाद, स्‍त्री-चिंतन और कविता के आयाम] कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय-भाग 2 ओम निश्‍चल ‘कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय’  जहां स्‍त्री कविता का एक विहंगम अध्‍ययन अनुशीलन था वहीं उसके पीछे स्‍त्रीवाद की वैचारिकी और स्‍त्री चिंतन की अपनी सुचिंतित भूमिका रही है। केवल भारतीय स्त्रीचिंतकों के बलबूते आज की कविता में स्‍त्रीवाद इतना मुखर नहीं हुआ …

कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय

ओम निश्‍चल जैसे जैसे कविता कला व संगीत में लोकतांत्रिकता का प्रसार हुआ है, स्‍त्री की महत्‍ता को संज्ञान में लिया गया है, वह सार्वजनिक क्षेत्र में अपने सामर्थ्‍य के ज्ञापन के साथ सामने आई है। वह अन्‍य सार्वजनिक सेवाओं की तरह ही कविता कला की दुनिया में भी हस्‍तक्षेप के साथ दर्ज हो रही …

डॉ. केदारनाथ सिंह के कक्षा-व्याख्यान के आलोक में ‘उषा’ कविता

प्रस्तुतकर्ता : उदयभान दुबे [‘उषा’ शमशेर बहादुर सिंह की एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण और बहुचर्चित कविता है। मैंने हाल ही में फेसबुक पर इस कविता पर एक चर्चा सुनी जिसमें डॉ. गोपेश्वर सिंह, डॉ. रामजन्म शर्मा, डॉ. सुरेश शर्मा और डॉ चंद्रा सदायत भाग ले रहे थे। यूट्यूब पर भी इस कविता के संबंध में …

यह दौर महिला उपन्यासकारों का है

विमल कुमार कहा जाता है कि ‘उपन्यास’ की अवधारणा दरअसल औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिम में विकसित हुई थी और वहां से यह भारत में आई थी लेकिन भारत में ‘गल्प’ और ‘वृतांत’ या ‘आख्यान’ की परंपरा में यह उपन्यास मौजूद रहा। आज हम जिस रूप में उपन्यास की चर्चा करते हैं उस उपन्यास शब्द …