गति और ठहराव, द्रुत और विलंबित, राग-रंग और शोक, शुद्धता और मिलावट तथा अपेक्षा और मोहभंग की कई समानांतर, विरोधी और पूरक लकीरों से ही आज के समय की छवि मुकम्मल होती है। अपने समय, समाज और सभ्यता की समीक्षा करते हुए एक बेहतर दुनिया के स्वप्न की रचना ही साहित्य और कला का वास्तविक …
कविता जनाना मुसाफिरखाने में हीरा कबसे मुंह ढांके पड़ी है… न जाने उसे किसकी प्रतीक्षा है… ट्रेन की तो बिलकुल नहीं… पता है उसे कि ट्रेन के आने में अभी कई घंटे का वक्त है… तबतक हीरा करे भी तो क्या करे, सिवाय इंतजार के…. लालमोहन अबतक तो पहुँच चुका होगा फारबिसगंज… क्या अबतक उसकी …
फणीश्वरनाथ रेणु रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया. सदा साइरेन की तरह गूंजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई. साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका ‘आंचर’ भी उड़ गया. उस संकरी पगडंडी पर, जिसके दोनों और झरबेरी के …
कुमार मंगलम किसी भी रचनाकार के उत्तर जीवन में मूल्यांकन के कई पड़ाव आते रहते हैं किंतु जन्मशती वर्ष एक ऐसे अवसर के रूप में हमारे सामने होता है जहाँ उस रचनाकार के अवदानों का सम्पूर्ण मूल्यांकन होता है और साथ ही हम एक कृतज्ञता स्मरण के भाव से भरे रहते हैं। आज ऐसा ही …
ज्योति चावला यह कहानी एक मुसीबत से शुरू होती है या फिर कहिए एक जिम्मेदारी से। अभी ढूंढने निकली हूं एक लडकी को जो गायब है पिछले कुछ दिनों से। जिसे किसी ने नहीं देखा है इन बीते कुछ दिनों में और घरवालों का दावा यह कि कल तक तो वह यहीं थी। कल रात …
शैलजा सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से हिन्दी के फलक पर एक बड़ी इबारत लिखी जा रही है। इबारत लिखने का काम कर रही है सहारनपुर से प्रकाशित हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका ‘शीतलवाणी’। इस साहित्यिक त्रैमासिक का सफ़र यूँ तो करीब 40 साल पुराना है लेकिन गत 12 वर्षों में …