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आलोचक संग संवाद: अनल पाखी

गगनदीप सृजनशीलता अपने आप में बड़ी चुनौती है, जो साहित्यकार को दिन-प्रतिदिन नवीन प्रेरक भूमि प्रदान करती है, जिससे एक कालजयी कृति का निर्माण सम्भव हो पाता है। साहित्य की विविधता का विकास मनुष्य के बौद्धिक स्तर पर आधारित है। जैसे-जैसे मानव का वैचारिक धरातल विस्तृत हुआ, साहित्यक गति में भी तीव्रता आई। आधुनिक युग …

जीवन, ज़मीन और जंगल की संघर्ष गाथा

अंकित नरवाल “आदिवासी सिर्फ बैंक है, जिसने जंगल में व्यापारियों के पैसा कमाने के लिए जंगल और जमीन की अमानत सँजो रखी है, नेताओं के वोट जुटा रखे हैं। आठ करोड़ आदिवासियों की हिमायत का दम भरने वाली सरकार को तो अब सिर्फ उद्योगपतियों का हित दिखता है। बड़े-बड़े कारखाने दिख रहे हैं। वह उदारवाद …

सत्यान्वेषण की ईमानदार कार्यवाही उर्फ़ ‘आलोचना की पक्षधरता’

अंकित नरवाल ‘आलोचना को हर हाल में गलत बनाम सही, झूठ और अपर्याप्त सच बनाम सच का रूप ग्रहण करना ही चाहिए।’–विजयदेव नारायण साही हिन्दी आलोचना के इतिहास में किसी भी तरह की ‘पक्षधरता’ के सवालों को दरअसल पार्टीगत व दलगत समीकरणों के मार्फत ही समझने की परंपरा रही है। व्यापक अर्थों में उसे सत्यान्वेषण …

निर्मल वर्मा के आलोक में

मनोज मोहन जयशंकर 1989-2019 के तीस बरसों के अंतराल में पत्रिकाओं में लिखे-छपे गद्य को ‘गोधूलि की इबारतें’ में संकलित किया है। इस गद्य पुस्तक में उनके लिखे सृजनात्मक निबंध, संस्मरण, डायरी और टिप्पणियाँ हैं। उनकी भाषा इतनी संवेदनशील और उसका प्रवाह इतना प्रांजल है कि पूरी पुस्तक को एक साँस में पढ़ लिया जा सकता है। लेखक का स्वयं कहना …

अतिक्रमण से उत्पन्न समय-सत्यों का अन्वेषण

राकेश बिहारी इह शिष्टानुशिष्टानां शिष्टानामपि सर्वथा।  वाचामेव प्रसादेन लोकयात्रा प्रवर्तते॥ (इस संसार में शिष्टों अर्थात शब्दशास्त्रियों द्वारा अनुशासित शब्दों एवं उनसे भिन्न अननुशासित शब्दों की सहायता से ही सर्वथा लोक व्यवहार चलता है।) —आचार्य दण्डी उदारीकरण और भूमंडलीकरण के नाम पर नब्बे के दशक में जिन संरचनात्मक समायोजन वाले आर्थिक बदलावों की शुरुआत हुई थी, …

क्वायर का शोक गीत

वंदना राग हर चर्च में एक क्वायर होता है.लड़के-लड़कियों का, स्त्रियों और पुरुषों का, जो आस्थावान और बे- आस्था सबको अपने धीमे गायन से आध्यात्मिक दुनिया की ऐसी गलियों में लिए चलता है कि मन भीग जाता है। उपन्यास ‘अँधेरा कोना’ पढ़ते हुए एक ऐसा ही धीमा दुःख मन को जकड़ने लगता है और फिर …