अंकित नरवाल ‘आलोचना को हर हाल में गलत बनाम सही, झूठ और अपर्याप्त सच बनाम सच का रूप ग्रहण करना ही चाहिए।’–विजयदेव नारायण साही हिन्दी आलोचना के इतिहास में किसी भी तरह की ‘पक्षधरता’ के सवालों को दरअसल पार्टीगत व दलगत समीकरणों के मार्फत ही समझने की परंपरा रही है। व्यापक अर्थों में उसे सत्यान्वेषण …