मनोज पाण्डेय ‘प्रमेय’ जितेन्द्र श्रीवास्तव का प्रिय शब्द है। यह शब्द सिद्धि और साधना की अपेक्षा रखता है। जीवनानुभूति को काव्यानुभूति का विषय बनाती जितेन्द्र की काव्य-मनीषा उन प्रमेयों को सतत् गढ़ने की कोशिश करती जान पड़ती है जो अनछुए हैं, अनसुलझे या अनचिह्ने हैं— किन्हीं अर्थों में उपेक्षित और बहिष्कृत भी। उनकी कविताओं से …