मनोज मोहन जयशंकर 1989-2019 के तीस बरसों के अंतराल में पत्रिकाओं में लिखे-छपे गद्य को ‘गोधूलि की इबारतें’ में संकलित किया है। इस गद्य पुस्तक में उनके लिखे सृजनात्मक निबंध, संस्मरण, डायरी और टिप्पणियाँ हैं। उनकी भाषा इतनी संवेदनशील और उसका प्रवाह इतना प्रांजल है कि पूरी पुस्तक को एक साँस में पढ़ लिया जा सकता है। लेखक का स्वयं कहना …
पूनम अरोड़ा कोई भी कृति नितांत रूप से एक व्यक्तिगत यात्रा होती है. एक ऐसी यात्रा जिसकी राह पर चलते-चलते हम अनजाने में ही कुछ छोटे कंकड़ (स्मृतियाँ) अपने सामान के साथ रख लेते हैं या कभी किसी ध्वनि के साथ अपने अतीत में खो जाते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर वे स्मृतियाँ …