मनीषा कुलश्रेष्ठ आन्ना कारेनिना लिखे जाने के दौरान दर्ज की गईं अपनी आत्मस्वीकारोक्तियों में तॉल्स्तोय लिखते हैं— “हर बार, जब भी मैं ने अपनी गहन इच्छाओं के तहत, नैतिक स्तर पर अच्छा अभिव्यक्त करने की कोशिश की – मैं अवमानना तथा तिरस्कार से गुज़रा. फिर जब-जब मैंने मूल प्रवृत्तियों पर लिखा, मुझे प्रशंसा व प्रोत्साहन …
इरा टाक मल्लिका एक ऐसी आजाद, बुद्धिजीवी स्त्री की दास्तान है जिसने सामाजिक विडम्बनाओं के दिल दहला देने वाले घेरों के बीच अपने लिए अपने सामाजिक मूल्य स्वयं रचे। एक अलग बागीपन, एक अलग आजाद खयाली, एक अलग निश्छलता, एक अलग आत्मविश्वास। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के भारत में ऐसी स्त्री की …
विमल कुमार कहा जाता है कि ‘उपन्यास’ की अवधारणा दरअसल औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिम में विकसित हुई थी और वहां से यह भारत में आई थी लेकिन भारत में ‘गल्प’ और ‘वृतांत’ या ‘आख्यान’ की परंपरा में यह उपन्यास मौजूद रहा। आज हम जिस रूप में उपन्यास की चर्चा करते हैं उस उपन्यास शब्द …