लीलाधर मंडलोई “इतना भी कवि नहीं मैं कि तुझमें ढूंढूं अपनी प्रागैतिहासिक प्रेमिकाएं न इतना अंधविश्वासी कि बांधू तुझे किसी पिछले जन्म के उत्तरीय से मगर कुछ तो है कि स्वयं को देह और इतिहास के बाहर देखने लग जाता हूँ” (यक्षिणी पृ.18) हे कवि! यह चेतनावस्था के उदगार हैं न? देह और इतिहास से …