पुस्तक आँसू और रोशनी : आलोकधन्वा से संवाद से एक अंश 1 एक रात आलोकधन्वा ने मुझसे कहा : चाँदनी का वह असर है कि वह पक्षियों को भी ठीक से सोने नहीं देती वे डैनों में चोंच डालते हैं और नींद लेने की कोशिश करते हैं फिर चोंच निकालकर देखते हैं : अँधेरा तो …
(सलाम बांबे व्हाया वर्सोवा डोंगरी: सारंग उपाध्याय) जीतेश्वरी इक्कीसवीं शताब्दी के इस भयावह दौर में जब हमारे देश ने अपनी गंगा-जमुनी तहजीब को पूरी तरह से भूला दिया है, धर्म और मजहब के नाम पर जब खून के छींटे हर जगह दिखाई दे रहे हैं ऐसे अंधेरे और भयावह समय में युवा पत्रकार, लेखक सारंग …
प्रेम नंदन वत्स आज सत्य के कई रूप हो गए हैं। जहाँ तक हमारी दृष्टि जा पाती है, हम उस सत्य तक उतना ही पहुँच पाते हैं। आज कई सारी बातें आपस में धागों की तरह उलझी हुई हैं। इन उलझे हुए सत्यों के धागों के सिरों को पकड़कर सुलझाने की कोशिश है उमाशंकर चौधरी …
महेश जोशी फ़ेसबुक पर मित्रता में कभी-कभार विचित्र अनुभव होते हैं : प्रियदर्शी ठाकुर को मित्र बनाने का प्रस्ताव उन्हें स्वर्गीय जनार्दन ठाकुर का पुत्र जानकर भेजा, किन्तु निकले वे उनके छोटे भाई। लगभग चालीस वर्ष पहले जनार्दन ठाकुर अंग्रेज़ी के जाने-माने पत्रकार व पोलिटिकल कमेंटेटर थे और हम ‘नई दुनिया’ में उनके आलेखों के …
विमल कुमार प्रसिद्ध गांधीवादी पत्रकार एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने पिछले दिनों रजा फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर बोलते हुए कहा था कि जिस तरह गांधी जी का जीवन अपने में आप में एक संदेश था, उसी तरह उनकी मृत्यु भी एक संदेश थी। गांधी जी का …
विमल कुमार क्या आपने 1908 में श्रीमती प्रियंबद देवी का उपन्यास ‘लक्ष्मी’ पढ़ा? शायद नही पढ़ा होगा। यह भी संभव है आपने इसका नाम भी नहीं सुना हो। क्या आपने 1909 में श्रीमती कुंती देवी का उपन्यास ‘पार्वती’ और 1911 में श्रीमती यशोदा देवी का उपन्यास ‘सच्चा पति प्रेम’ और 1912 में श्रीमती हेमंत कुमारी …
पल्लव आत्मकथा की कसौटी क्या है? आत्मकथा कोई क्यों पढ़े? क्या उस सम्बंधित व्यक्ति के जीवन में ऐसा कुछ है जो पाठक को अपने लिए जानना आवश्यक लगता है इसलिए वह आत्मकथा पढ़े? आत्मकथा के मूल्यांकन में ये सभी सवाल खड़े होते हैं। और इनका कोई सर्वसम्मत जवाब नहीं खोजा जा सकता। जवाब कोई है …
लीलाधर मंडलोई “इतना भी कवि नहीं मैं कि तुझमें ढूंढूं अपनी प्रागैतिहासिक प्रेमिकाएं न इतना अंधविश्वासी कि बांधू तुझे किसी पिछले जन्म के उत्तरीय से मगर कुछ तो है कि स्वयं को देह और इतिहास के बाहर देखने लग जाता हूँ” (यक्षिणी पृ.18) हे कवि! यह चेतनावस्था के उदगार हैं न? देह और इतिहास से …
मनोज पाण्डेय ‘प्रमेय’ जितेन्द्र श्रीवास्तव का प्रिय शब्द है। यह शब्द सिद्धि और साधना की अपेक्षा रखता है। जीवनानुभूति को काव्यानुभूति का विषय बनाती जितेन्द्र की काव्य-मनीषा उन प्रमेयों को सतत् गढ़ने की कोशिश करती जान पड़ती है जो अनछुए हैं, अनसुलझे या अनचिह्ने हैं— किन्हीं अर्थों में उपेक्षित और बहिष्कृत भी। उनकी कविताओं से …
वीरेंद्र यादव प्रायः ऐसा कम होता है कि कोई कृति तुरंता समय के पार जाकर पाठक को उस टाइम जोन में अवस्थित कर दे जिसमें वह सचमुच जीने को अभिशप्त हो. चंदन पांडे की उपन्यासिका या लंबी कहानी ‘ वैधानिक गल्प’ का पढ़ना कोरोना कैद के पार जाकर उस वास्तविक समय को महसूस करना है, …
प्रेम शशांक ’’एक कलाकृति कुछ बताती या सिखाती नहीं, वह सिर्फ एक चमत्कारिक रहस्योद्घाटन है— जिसमें एक सत्य की तानाशाही नहीं—अनेक विरोधी-अंतर्विरोधी सत्यों का एक ऐसा यथार्थ उद्घाटित होता है, जो हमारे अपने जीवन के खंडित, बहदवास, विश्रंखलित अनुभवों को एक संगति, एक पैटर्न, एक व्यवस्था देता है।’’—निर्मल वर्मा, (शताब्दी के ढलते वर्षो में) किसी …
‘अग्निलीक’ नाटककार-कथाकार हृषीकेश सुलभ का पहला उपन्यास है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह उपन्यास इनदिनों काफी चर्चा में हैं। प्रस्तुत है उपन्यास का एक बहुत ही रोचक अंश- हृषीकेश सुलभ रेशमा की कोठरी से निकल कर जब बाज़ार की मुख्य सड़क पर आयी गुल बानो, बाज़ार में सन्नाटा था। बिजली की रोशनी थी, पर लोगबाग …
अशोक कुमार पाण्डेय राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित अशोक कुमार पांडे की पुस्तक ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ काफी चर्चा में है। इसी किताब से एक अंश पुस्तकनामा के पाठकों के लिए — दसवीं सदी आते-आते कश्मीर में राजाओं के पतन से अराजकता का माहौल आम हो गया था। 883 ईसवी में अवन्तिवर्मन की मृत्यु के …
हाल ही में कथाकार तरुण भटनागर का उपन्यास ‘बेदावा’ राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित हुआ है। इन दिनों ‘बेदावा’ चर्चा में है। उपन्यास का एक बहुत ही रोचक अंश आपके लिए पुस्तकनामा पर… (सुधीर देख नहीं सकता। वह बचपन से अंधा है। एकदम नाबीना। पर खूबसूरत मोमबत्तियाँ बनाता है। अपर्णा उससे मोमबत्तियाँ बनाना सीखती है। …