Tag Archives: शिवना प्रकाशन

वर्ष 2021 तथा 2022 के लिए शिवना प्रकाशन के प्रतिष्ठित सम्मानों की घोषणा

‘अंतर्राष्ट्रीय शिवना सम्मान’ हरि भटनागर तथा नीलेश रघुवंशी को, ‘शिवना कृति सम्मान’ अवधेश प्रताप सिंह, ओमप्रकाश शर्मा तथा आदित्य श्रीवास्तव को शिवना प्रकाशन द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित सम्मानों की घोषणा कर दी गयी है। शिवना प्रकाशन द्वारा पिछले कुछ वर्षों से दिये जा रहे इन सम्मानों का साहित्य जगत् को बेसब्री से इंतज़ार रहता …

पठनीय और विचारणीय उपन्यास: रूदादे-सफ़र

डॉ. सीमा शर्मा पंकज सुबीर वर्तमान साहित्य जगत् में एक सुपरिचित नाम हैं और अपनी किसी-न-किसी रचना, कभी उपन्यास तो कभी कहानी के कारण चर्चा में बने रहते हैं। इन दिनों अपने नवीनतम प्रकाशित उपन्यास ‘रूदादे-सफ़र’ को लेकर चर्चा में हैं। उपन्यास ‘रूदादे-सफ़र’ का दूसरा संस्करण मेरे पास है। यह अलग बात है कि इसका …

अंतरंगता के रंग

राकेश कुमार कलाएँ मानव सभ्यता की समृद्धि का पैमाना होती हैं और समय को जाँचने-परखने वाली आँख भी। अक्सर आलोचक-समीक्षक अपनी सुविधा की दृष्टि से कलाओं को चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, साहित्य आदि विभिन्न विधाओं और उपविधाओं में बाँट देते हैं, पर कला और साहित्य तो जीवन की भाँति सीमाओं और रूढ़ियों का अतिक्रमण करते हैं …

सांप्रदायिक दंगों के कारणों की पड़ताल करता है– ‘जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था’

दीपक गिरकर हिंदी के सुपरिचित कथाकार पंकज सुबीर का धार्मिक दंगों की पृष्ठभूमि पर लिखा उपन्यास ‘जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था’ इन दिनों काफी चर्चा में है। इस उपन्यास के पूर्व पंकज जी के दो उपन्यास और 5 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इस उपन्यास में कथाकार ने धर्म, धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिक दंगों, विघटनकारी और …

सामाजिक सरोकारों की कहानियों का अनूठा संग्रह

दीपक गिरकर “प्रवास में आसपास” सुपरिचित प्रवासी कथाकार डॉ. हंसा दीप का दूसरा कहानी संग्रह है। डॉ. हंसा दीप टोरंटो में कई वर्षों से रह रही हैं। वे अमेरिकी-कनाडा संस्कृति से अच्छी तरह से परिचित होने के बावजूद अपनी भारतीय संस्कृति तथा भारतीय रीति-रिवाजों को नहीं भूली हैं। भारत के मेघनगर (जिला झाबुआ, मध्यप्रदेश) में …

साहित्य की सही रेसिपी

धर्मपाल महेंद्र जैन इन दिनों साहित्य में रस नहीं रहा, निचुड़ गया है। साहित्य क्विंटलों में छप रहा है और सौ-दो सौ ग्राम के पैकेट में बिक रहा है। जगह-जगह पुस्तक मेलों में बिक रहा है पर रसिकों को मज़ा नहीं आ रहा। साहित्य को सर्वग्राही होना चाहिये, समोसे जैसा होना चाहिये। जहाँ प्लेटें उपलब्ध हों वहाँ …