भारतीय साहित्य में मराठी स्त्री कविता की धारा तेरहवीं शताब्दी से भक्ति भाव को लेकर शुरू हो कर क्रमशः नारीवाद को छूती हुई अपनी राह बनाती रही है। नारीवादी कविता अक्सर भाषा और भाव का सहारा लेकर समाज में प्रचलित कुसंस्कार और रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती देने का प्रयास करती है।