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दिल्ली के दिल का एक रास्ता यहां से भी गुजरता है…!

सारंग उपाध्याय मनुष्य सभ्यता के पास विस्थापन के दर्द पुराने हैं और पलायन के घाव आज भी हरे. जो उजड़कर बसे उनकी जमीन खो गई और जो बसे-बसाए थे वे अपने ही घर में बंजारे हो गए. यह बंजारापन आज भी बदस्तूर है. कोई आपसे ये पूछे की आप कहां से हैं—तो बेधड़क कह देना हम …