प्रेम शशांक ’’एक कलाकृति कुछ बताती या सिखाती नहीं, वह सिर्फ एक चमत्कारिक रहस्योद्घाटन है— जिसमें एक सत्य की तानाशाही नहीं—अनेक विरोधी-अंतर्विरोधी सत्यों का एक ऐसा यथार्थ उद्घाटित होता है, जो हमारे अपने जीवन के खंडित, बहदवास, विश्रंखलित अनुभवों को एक संगति, एक पैटर्न, एक व्यवस्था देता है।’’—निर्मल वर्मा, (शताब्दी के ढलते वर्षो में) किसी …