पुस्तक अंश

साहित्य की सही रेसिपी

धर्मपाल महेंद्र जैन इन दिनों साहित्य में रस नहीं रहा, निचुड़ गया है। साहित्य क्विंटलों में छप रहा है और सौ-दो सौ ग्राम के पैकेट में बिक रहा है। जगह-जगह पुस्तक मेलों में बिक रहा है पर रसिकों को मज़ा नहीं आ रहा। साहित्य को सर्वग्राही होना चाहिये, समोसे जैसा होना चाहिये। जहाँ प्लेटें उपलब्ध हों वहाँ …

गंगेश्वरी

भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित विश्वविख्यात  सितारवादक पंडित रविशंकर की आत्मकथा ‘राग माला’ से एक अंश. वह सारा संसार जहाँ बनारस में मैं पैदा हुआ था एक ऐसे भारत की तरह था जो दो हज़ार वर्ष पूर्व का था। कुछ मोटरगाडिय़ों, साइकिलों और आधुनिकता के छोटे-बड़े चिह्नïों को छोड़, जो मेरी चारों तरफ थे, हर वस्तु …