अपने अंत:पुर से बाहर आती स्‍त्री

[स्‍त्रीवाद, स्‍त्री-चिंतन और कविता के आयाम] कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय-भाग 2 ओम निश्‍चल ‘कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय’  जहां स्‍त्री कविता का एक विहंगम अध्‍ययन अनुशीलन था वहीं उसके पीछे स्‍त्रीवाद की वैचारिकी और स्‍त्री चिंतन की अपनी सुचिंतित भूमिका रही है। केवल भारतीय स्त्रीचिंतकों के बलबूते आज की कविता में स्‍त्रीवाद इतना मुखर नहीं हुआ …

क्या मृत्यु भी एक कला है?

विमल कुमार प्रसिद्ध गांधीवादी पत्रकार एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने पिछले दिनों रजा फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर बोलते हुए कहा था कि जिस तरह गांधी जी का जीवन अपने में आप में एक संदेश था, उसी तरह उनकी मृत्यु भी एक संदेश थी। गांधी जी का …

कविता में स्‍त्री प्रत्‍यय

ओम निश्‍चल जैसे जैसे कविता कला व संगीत में लोकतांत्रिकता का प्रसार हुआ है, स्‍त्री की महत्‍ता को संज्ञान में लिया गया है, वह सार्वजनिक क्षेत्र में अपने सामर्थ्‍य के ज्ञापन के साथ सामने आई है। वह अन्‍य सार्वजनिक सेवाओं की तरह ही कविता कला की दुनिया में भी हस्‍तक्षेप के साथ दर्ज हो रही …

क्या हिंदी नवजागरण स्त्री विरोधी था?

विमल कुमार क्या आपने 1908 में श्रीमती प्रियंबद देवी का उपन्यास ‘लक्ष्मी’ पढ़ा? शायद नही पढ़ा होगा। यह भी संभव है आपने इसका नाम भी नहीं सुना हो। क्या आपने 1909 में श्रीमती कुंती देवी का उपन्यास ‘पार्वती’ और 1911 में श्रीमती यशोदा देवी का उपन्यास ‘सच्चा पति प्रेम’ और 1912 में श्रीमती हेमंत कुमारी …

क्या आपने रूमी की शायरी पढी है?

विमल कुमार       (मैं क्या करूं, ऐ मुसलमानों! मैं खुद अपने आप को नहीं पहचानता। न मैं ईसाई हूँ, यहूदी न अग्निपूजक  और नहीं मुसलमान। ना मैं पूरब का हूं ना पश्चिम का, ना धरती का न सागर का न मैं प्रकृति द्वारा गढ़ा  गया हूं और ना ही मंडरानेवाला आसमान से आया हूं। न …

‘परम प्रेम’ का तिलिस्मी शीशा : आन्ना कारेनिना

मनीषा कुलश्रेष्ठ आन्ना कारेनिना लिखे जाने के दौरान दर्ज की गईं अपनी आत्मस्वीकारोक्तियों में तॉल्स्तोय लिखते हैं— “हर बार, जब भी मैं ने अपनी गहन इच्छाओं के तहत, नैतिक स्तर पर अच्छा अभिव्यक्त करने की कोशिश की – मैं अवमानना तथा तिरस्कार से गुज़रा. फिर जब-जब मैंने मूल प्रवृत्तियों पर लिखा, मुझे प्रशंसा व प्रोत्साहन …

डॉ. केदारनाथ सिंह के कक्षा-व्याख्यान के आलोक में ‘उषा’ कविता

प्रस्तुतकर्ता : उदयभान दुबे [‘उषा’ शमशेर बहादुर सिंह की एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण और बहुचर्चित कविता है। मैंने हाल ही में फेसबुक पर इस कविता पर एक चर्चा सुनी जिसमें डॉ. गोपेश्वर सिंह, डॉ. रामजन्म शर्मा, डॉ. सुरेश शर्मा और डॉ चंद्रा सदायत भाग ले रहे थे। यूट्यूब पर भी इस कविता के संबंध में …

वह बोरिस पास्तरनाक और रिल्के से एक साथ प्रेम करती थी

विमल कुमार आपको जानकर शायद थोड़ा आश्चर्य लगे रूस की वह कवयित्री शादीशुदा होने के बाद भी अपने समय के दो बड़े लेखकों के साथ एक ही समय में प्रेम करती थी जबकि उसने प्रेम विवाह किया था। उससे पहले भी युवावस्था में भी उसके मन में एक पुरुष के लिए प्रेम अंकुरित हुआ था …

हिमयुगी चट्टाने : यहाँ से फ़िनलैंड को देखो

राकेश मिश्र प्रो. जी. गोपीनाथन की पहचान एक वरिष्ठ भाषा वैज्ञानिक, अनुवादक और नवोन्मेषी शिक्षाशास्त्री की रही है । महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रूप में उन्होंने भाषा प्रौद्योगिकी और अनुवाद प्रौद्योगिकी जैसे विषय शुरू कर हिन्दी भाषा के परंपागत अध्ययन-अध्यापन को जैसे एक नई उड़ान दी थी । एक अनुवादक …

एक आत्मिक बंधन

पल्लवी प्रकाश I seem to have loved you in numberless forms, numberless times…In life after life, in age after age, forever. –Tagore रवीन्द्रनाथ टैगोर यहाँ प्रेम की जिस शाश्वतता की बात करते हैं, उसी की अगली कड़ी है सोलमेट. सोलमेट, यानी आत्मा का अनिवार्य साथी. वह संबंध, जहाँ आत्मा का आत्मा से सीधा जुड़ाव हो …

क्योंकि निर्बंध जीना है उन्हें एक मनुष्य की तरह..!

सारंग उपाध्याय एक रचना अपने में संपूर्ण है. एक सृजन हर प्रतिक्रिया से परे. एक सुंदर फूल खिलने में पूर्ण है तो एक बहती नदी का सौंदर्य उसके होने में. स्वयं में पूर्ण. एक कविता संपूर्ण जीवन को लेकर अभिव्यक्त हुई. जीवन से भरा मन और भावों से भरा जीवन. जीवन किताबों में कहां?कविता जीवन …

जीवन, ज़मीन और जंगल की संघर्ष गाथा

अंकित नरवाल “आदिवासी सिर्फ बैंक है, जिसने जंगल में व्यापारियों के पैसा कमाने के लिए जंगल और जमीन की अमानत सँजो रखी है, नेताओं के वोट जुटा रखे हैं। आठ करोड़ आदिवासियों की हिमायत का दम भरने वाली सरकार को तो अब सिर्फ उद्योगपतियों का हित दिखता है। बड़े-बड़े कारखाने दिख रहे हैं। वह उदारवाद …

मल्लिका : हिंदी के इव और एडम की दास्‍तान

इरा टाक मल्लिका एक ऐसी आजाद, बुद्धिजीवी स्‍त्री की दास्‍तान है जिसने सामाजिक विडम्‍बनाओं के दिल दहला देने वाले घेरों के बीच अपने लिए अपने सामाजिक मूल्‍य स्‍वयं रचे। एक अलग बागीपन, एक अलग आजाद खयाली, एक अलग निश्‍छलता, एक अलग आत्‍मविश्‍वास। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के भारत में ऐसी स्‍त्री की …

यह दौर महिला उपन्यासकारों का है

विमल कुमार कहा जाता है कि ‘उपन्यास’ की अवधारणा दरअसल औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिम में विकसित हुई थी और वहां से यह भारत में आई थी लेकिन भारत में ‘गल्प’ और ‘वृतांत’ या ‘आख्यान’ की परंपरा में यह उपन्यास मौजूद रहा। आज हम जिस रूप में उपन्यास की चर्चा करते हैं उस उपन्यास शब्द …